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________________ ३५२ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. १५९३ एदे तेसट्टिणरा सलागपुरिसा तइज्जकालम्मि। उप्पजति हु कमसो एक्कोवहिओमकोडकोडीए ॥ १५९३ १००००००००००००००। एक्को णवरि विसेसो बादालसहस्सवासपरिहीणो। तचरिमम्मि राणं आऊ इगिपुब्वकोरिपरिमाणं ॥ १५९४ पणवीसभहियाणि पंच सयाणि धणूणि उच्छेहो। चउसट्टी पुट्ठी णरणारी देवअच्छरसरिच्छा॥ १५९५ । दुस्समसुसमो सम्मत्तो। तत्तो पविसदि तुरिमं णामेणं सुसमदुस्समो कालो । तप्पढमम्मि णराणं आऊ वासाण पुवकोडीभो ॥१५९६ ताहे ताणं उदया पंचसयाणि धणूणि पत्तेक्क । कमसो माऊउदया कालबलेणं पड्डेति ॥ १५९७ ताहे एसा वसुहा वणिजइ अवरभोगभूमि त्ति। तचरिमम्मि णराणं एक्कं पल्लं भवे आऊ॥ १५९८ उदएण एक्ककोसं सम्वणरा ते पियंगुवण्णजुदा । तत्तो पत्रिसदि कालो पंचमओ सुसमणामेणं ।। १५९९ तस्स पढमप्पवेसे आउप्पहुदीणि होति पुब्वं । कालसहावेण तहा व ते मणुवतिरियाणं ॥ १६०० ये तिरेसठ शलाकापुरुष एक कोडाकोड़ी सागरोपमप्रमाण इस तृतीय कालमें क्रमसे उत्पन्न होते हैं ॥ १५९३ ॥ १०००००००००००००० ! यहां विशेषता एक यह है कि यह काल एक कोडाकोड़ी सागरोपमोंमेंसे ब्यालीस हजार वर्ष हीन होता है । इस कालके अन्तमें मनुष्योंकी आयु एक पूर्वकोटिप्रमाण, उंचाई पांचसौ पच्चीस धनुष और पृष्ठभागकी हड्डियां चौंसठ होती हैं। इस समय नर-नारी देव एवं अप्सराओंके सदृश होते हैं ।। १५९४-१५९५ ।। __दुष्षमसुषमाकालका वर्णन समाप्त हुआ। इसके पश्चात् सुषमदुष्षमा नामक चतुर्थ काल प्रविष्ट होता है। इसके प्रारम्भमें मनुष्योंकी आयु एक पूर्वकोटि वर्षप्रमाण होती है ॥ १५९६ ॥ उस समय उन मनुष्योंकी उंचाई पांचसौ धनुषप्रमाण होती है । पुनः क्रमसे उत्तरोत्तर आयु और उंचाई प्रत्येक कालके बलसे बढ़ती ही जाती हैं ॥ १५९७ ॥ उस समय यह पृथिवी जघन्य भोगभूमि कही जाती है । इस कालके अन्तमें मनुष्योंकी आयु एक पल्यप्रमाण होती है ॥ १५९८ ॥ उस समय वे सब मनुष्य एक कोस ऊंचे और प्रियंगु जैसे वर्णसे युक्त होते हैं । इसके पश्चात् पांचवां सुषमा नामक काल प्रविष्ट होता है ॥ १५९९ ॥ उस कालके प्रथम प्रवेशमें मनुष्य-तिर्यञ्चोंकी आयुप्रभृति पूर्वके ही समान होती हैं, परन्तु कालस्वभावसे वे उत्तरोत्तर बढ़ती जाती हैं ॥ १६०० ॥ १द बपरिहीणा. २ द ब 'हियाणं. ३ ब पवदंते. ४ द बतादे हेसा. ५ दब पुवई. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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