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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. १४७५
तप्पढमपवेसम्म य वीसाधियइगिसयं पि परमाऊ । सगहत्थो उस्सेहो णराण चउवीस पुट्ठट्ठी ॥ १४७५ जादो सिद्धो वीरो तद्दिवसे गोदमो परमणाणी । जादो तरिस सिद्धे सुधम्मसामी तदो जादो ॥। १४७६ तमि कदकम्मणासे जंबूसामि नि केवली जादो । तत्थ वि सिद्धिपवण्णे केवलिणो णत्थि अणुबद्धा || १४७७ बासी वासाणं गोदमपहुदीण णाणवंताणं । धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडरूवेणं ॥ १४७८ कुंडलगिरिम्मि चरिमो केवलणाणीसु सिरिधरो सिद्धो । चारणरिसीसु चरिमो सुपासचंदाभिधाणो य ॥ १४७९ पण्णसमणेसु चरिमो चद्दरजसो णाम ओहिणाणीसुं । चरिमो सिरिणामो सुदविणय सुसीलादिसंपण्णो ॥ १४८० मधरेसुं चरिमो जिणदिक्खं धरदि चंदगुप्तो य । तत्तो मउडधरा र्डे पव्व णेव गेण्डंति ॥ १४८१ णंदी य दिमित्तो बिदिओ भवराजिदो तइजो थे । गोवद्वणो चउत्थो पंचमभो भद्दबाहु ति ॥ १४८२ पंच इमे पुरिसवरा चउदसपुण्वी जगम्मि विक्खादा । ते बारसभंगधरा तित्थे सिरिवमाणस्स ॥ १४८३ पंचाण मेलिदाणं कालपमाणं हवेदि वाससदं । वीदम्मिय पंचमए भरहे खुदकेवली णत्थि ॥ १४८४ | चोइसपुग्वी ।
इस दुष्षमाकालके प्रथम प्रवेशमें मनुष्योंकी उत्कृष्ट आयु एकसौ बीस वर्ष, उंचाई त हाथ और पृष्ठभागकी हड्डियां चौबीस होती हैं ॥। १४७५ ॥
जिस दिन भगवान् महावीर सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञानको प्राप्त हुए । पुनः गौतमके सिद्ध होनेपर उनके पश्चात् सुधर्मस्वामी केवली हुए ॥ ९४७६ ॥
सुधर्मस्वामीके कर्मनाश करने अर्थात् मुक्त होनेपर जम्बूस्वामी केवली हुए । पश्चात् जम्बूस्वामी भी सिद्धिको प्राप्त होनेपर फिर कोई अनुबद्ध केवली नहीं रहे || १४७७ ॥
गौतमादिक केवलियों के धर्मप्रवर्तन कालका प्रमाण पिण्डरूपसे बासठ वर्ष है || १४७८ ॥ केवलज्ञानियोंमें अन्तिम श्रीधर कुण्डलगिरिसे सिद्ध हुए, और चारणऋषियोंमें अन्तिम सुपार्श्वचन्द्र नामक ऋषि हुए ॥ १४७९ ॥
प्रज्ञाश्रमणोंमें अन्तिम वज्रयश और अवधिज्ञानियोंमें अन्तिम श्रुत, विनय एवं सुशीलादिसे सम्पन्न श्री नामक ऋषि हुए || १४८० ॥
मुकुटधरोंमें अन्तिम चन्द्रगुप्तने जिनदीक्षा धारण की। इसके पश्चात् मुकुटधारी प्रव्रज्याको ग्रहण नहीं करते || १४८१ ॥
प्रकार
नन्दी, द्वितीय नन्दिमित्र, तृतीय अपराजित, चतुर्थ गोवर्द्धन और पंचम भद्रबाहु, इसये पांच पुरुषोत्तम जगमें ' चौदहपूर्वी ' इस नामसे विख्यात हुए । वे बारह अंगों के धारक पांचों श्रुतकेवली श्रीवर्धमान स्वामी के तीर्थमें हुए || १४८२–१४८३ ॥
इन पांचों श्रुतकेवलियोंका काल मिलाकर सौ वर्ष होता है। पांचवें श्रुतकेवलीके पश्चात् फिर भरतक्षेत्र में कोई श्रुतकेवली नहीं हुआ ॥ १४८४ ॥
चौदह पूर्वधारियोंका कथन समाप्त हुआ ।
१ द ब 'पवेसि सव्विय २ द ब णाणिस्स ३ द धरिदि ४ द ब दो. ५ द ब अवराजिदं तई जाई. ६ द ब वीरम्मि.
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