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तिलोयपण्णत्ती
[४. १३३८
दोतीरवीहिरूंदें दोद्दोजोयणपमाणमेकका तेसुं महंधयारे ण सकदे तब्बलं गंतुं ॥ १३३८ उवदेसेण सुराणं काकिणिरयणेण तुरिदमालिहियं । ससहररविबिंबाणि सेलगुहाउभयभित्तीसुं॥ १३३८ एकेकजोयणतरलिहिदाणं ताण दिति उज्जोवे । वञ्चेदि सडंगबलं उम्मग्गणिमग्गसरियंतं ॥ १३४० ताण सरियाण गहिरं जलप्पवाई सुदूरवित्थिण्णं । उत्तरिढुं पि ण सक्का सयलबलं चकवट्टीणं ॥ १३४१ सुरउवएसबलेणं वडइरयणेण रइदसंकमणे । आरुहदि सडंगबलं ताभो सारयाओ उत्तरांदे ।। १३४२ सेलगुहाए उत्तरदारा गं णिस्सरेदि बलसहिदो । णइपुव्ववेदिदारे गंतुं गिरिणंदणस्स मज्झम्मि ॥ १३४३ तस्थ य पसत्थलोहे णाणातरुमंडणे विउले । चित्तहरे चक्कहरा खंधावारं णिवेसंति ॥ १३४४ आणाए चक्कीणं सेणवई अवरभागमेच्छमहि । साहिय छम्मासेहिं खंधावारं समल्लियइ ।। १३४५ णिग्गरछते चक्की गिरिवणवेदीय दारमग्गेण । मज्झम्मि मेच्छखंडप्पसाहणटुं बलेण जुदा ॥ १३४६ मेच्छमहिं पहिदेहि तोह सह मेच्छणरवई सम्वे । कुलदेवदाबलेणं जुझं कुब्वंति घोरयरं ॥ १३४७
दोनों तीरकी वीथियोंमेंसे प्रत्येकका विस्तार दो दो योजनप्रमाण है। उनमें महा अन्धकारके होनेसे चक्रवर्तीका सैन्य आगे जाने के लिये समर्थ नहीं होता है ॥ १३३८ ॥
तब देवोंके उपदेशसे विजयाच पर्वतकी गुफाकी दोनों भित्तियोंपर काकिणी रत्नसे शीघ्र ही चन्द्रमण्डलों और सूर्यमण्डलोंको लिख दिया ॥ १३३९ ॥
एक एक योजनके अन्तरालसे लिखे हुए उन बिंबोंके प्रकाश देनेपर षडंग बल उन्मग्ननिमग्न नदियों तक जाता है ॥ १३४० ॥
उन नदियोंके गहरे और दूर तक विस्तीर्ण जलप्रवाहको उतरने के लिये चक्रवर्तियोंका सकल सैन्य समर्थ नहीं होता ।। १३४१ ॥
तब देवके उपदेशबलसे बढ़ई रत्नके द्वारा पुलकी रचना करनेपर षडंग बल पुलपर चढ़ता है और उन नदियोंको पार करता है ॥ १३४२ ॥
___ इसप्रकार आगे गमन करते हुए नदीके पूर्व वेदीद्वारसे पर्वतवनके मध्यमें पहुंचने के लिये चक्रवर्ती सैन्यसहित विजया की गुफाके उत्तरद्वारसे निकलता है ॥ १३४३ ॥
वहां चक्रवर्ती प्रशस्त शोभाको प्राप्त, विस्तृत एवं मनोहर तथा नाना वृक्षोंसे मंडित वनमें सैन्यको ठहराते हैं ॥ १३४४ ॥ . पुनः चक्रवर्तियोंकी आज्ञासे सेनापति पश्चिमभागके म्लेच्छखण्डको वशमें करके छह मासमें पड़ावमें सम्मिलित होजाता है ॥ १३४५॥
पश्चात् मध्यम म्लेच्छखण्डको सिद्ध करनेके लिये चक्रवर्ती सैन्यसहित पर्वतीय वनवेदीके द्वारमार्गसे निकलते हैं ॥ १३४६ ॥
___ उस समय म्लेच्छमहीकी ओर प्रस्थित हुए उनके साथ सब म्लेच्छ राजा कुलदेवताओंके बलसे अतिशय घोर युद्ध करते हैं । १३४७॥
. १द पमाणमेककं. २ द ब तब्बलं भयभित्तीसु. ३ द ब ससिकर. ४ द ब तसंडणे. ५ द बपहिरे हिं.
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