SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ ] तिलोयपण्णत्ती [४. १२८३ रिसहेसरस्स भरहो सगरो भजिएसरस्स पश्चक्खं । मघवा सणक्कुमारो दो चक्की धम्मसंतिविचाले ॥ १२८३ मह संतिकुंथुमरजिण तित्थयरा ते च चकवाहिते । एको सुभउमचकी मरमल्लीमंतरालम्मि ॥ १२८४ मह पउमचळवट्टी मल्लीमुणिसुब्वयाण विश्चाले । सुन्वयणमीण मज्ो हरिसेणो णाम चहरो ॥ १२८५ जयसेणचक्कवट्टी णमिणमिजिणाणमंतरालम्मि । तह बम्हदत्तणामो चकवई मिपासविश्वाले ॥ १२८६ घउसहियतीस कोट्ठा कादचा तिरियरूवपंतीए । उड्डेणं बे कोटा कादूर्ण पढमकोटेसु ॥ १२८७ पण्णरसेसु जिणिंदा णिरंतरं दोसु सुण्णया तत्तो। तीसु जिणा दो सुण्णा इगि जिण दो सुण्ण एक जिणो' ॥१२८८ दो सुण्णा एक जिणो इगि सुण्णो इगि जिणो य इगि सुण्णो । दोगिण जिणा इदि कोट्ठा णिहिट्ठा तित्थकत्ताणं ॥ १२८९ दो कोटेसुं चक्की सुण्णं तेरससु चकिणी छक्के । सुण्ण तिय चकि सुणं चक्की दो सुण्ण चक्कि सुण्णोय ॥ १२९० चकी दो सुपणाई छखंडवईण चक्कबहीणं । एदे कोट्ठा कमसो संदिट्ठी एकदो मंका ॥ १२९१ 1011111111111111111111111111111010 |2|2|3101010101010102010 12/0/01010101010101010101010/२२२२२२/0/01 पंच सया पण्णाधियचउस्सया दोसुहरिदपणसीदी । दुविहत्ता चउसीदी चालं पणतीस तीसं च ॥ १२९२ दंड ५००। ४५०। ८५। ८४ । ४०।३५।३०। भरत चक्रवर्ती ऋषभेश्वरके समक्ष, सगर चक्रवर्ती अजितेश्वरके समक्ष, तथा मघवा और सनत्कुमार ये दो चक्रवर्ती धर्मनाथ और शान्तिनाथके अन्तरालमें हुए ह । शान्तिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ, ये तीन चक्रवर्ती होते हुए तीर्थकर भी थे । सुभौम चक्रवर्ती अरनाथ और मल्लिनाथ भगवान्के अन्तरालमें, पद्म चक्रवर्ती मल्लि और मुनिसुव्रतके अन्तरालमें, हरिषेण नामक चक्रधर सुव्रत और नमिनाथके मध्यमें, जयसेन चक्रवर्ती नमिनाथ और नेमिनाथ जिनके अन्तरालमें, तथा ब्रह्मदत्त नामक चक्रवर्ती नेमिनाथ और पार्श्वनाथ तीर्थंकरके अन्तरालमें हुए हैं ॥ १२८३-१२८६ ॥ तिरछी पंक्तिके रूपमें चौंतीस कोठा, और ऊर्ध्वरूपसे दो कोठा बना करके इनमेंसे ऊपरके पन्द्रह प्रथम कोठोंमें निरन्तर तीर्थंकर, इसके आगे दो कोठोंमें शून्य, तीन कोठोंमें तीर्थकर, दोमें शून्य, एकमें जिन, दोमें शून्य, एकमें तीर्थंकर, दोमें शून्य, एक जिन, एक शून्य, एक जिन, एक शून्य और दो जिन, इसप्रकार ये तीर्थंकरोंके कोठे निर्दिष्ट किये गये हैं। इनसे नीचेके कोठों से दोमें चक्रवर्ती, तेरहमें शून्य, छहमें चक्रवर्ती, फिर तीन शून्य, चक्रवर्ती, शून्य, चक्रवर्ती, दो शून्य, चक्रवर्ती, शून्य, चक्रवर्ती और फिर दो शून्य, ये छह खण्डोंके अधिपति चक्रवर्तियोंके क्रमशः कोठे हैं जिनमें संदृष्टि के लिये क्रमशः एक और दो अंक ग्रहण किये गये हैं ॥ १२८७-१२९१ ।। ( संदृष्टि मूलमें देखिये ) भरतादिक चक्रवर्तियोंकी उंचाई क्रमसे पांचसौ, पचास अधिक चारसौ, दोसे भाजित १ द ब सुण्णं. २ द ब जिणा. ३. द व सुण्णो. ४ द ब इगि. ५ द तित्थकत्तीणं. ६ द व सुष्णा. ७ दब प्रत्योः अधस्तनकोष्ठेषु सर्वत्र २स्थाने १इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy