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________________ २९६ ] तिलोय पण्णत्ती [ ४. ११६१ इगिसयर हिदसहस्त्रं वेकुब्वी पणसयाणि विउलमदी । चत्तारिसया वादी गणसंखा वडमाणजिणे ॥ ११६ १ वे ९००, वि ५००, वा ४०० । णभचणवछक्कतियं पुव्वधरा सव्वतित्थकत्ताणं । पणपंचपणणभा णभणभदुगअंककमेण सिक्खगणा ।। ११६२ सव्वपुण्वधरांककमेण जाणिजइ ३६९४० । सव्व सि २०००५५५ । गयणंबरछस्सतदुक्का सब्वे वि ओहिणाणीओ । केवलणाणी सव्वे गयणंवरभट्ठपंचभट्ठेका ।। ११६३ सव्वभही १२७६०० । सव्वके १८५८०० । आयासणभणवपणेदुदुअंककमेण सब्ववेकुब्बी । पंचंबरणवयचऊपणमेकं चिय सब्वविउलमदी | ११६४ सव्वचे २२५९०० । सव्ववि १५४९०५ । भणभतिछक्केकं अंककमे होंति सब्ववादी णं । सत्तगणाणं अंबररयणटुचउक्कभढदोणि ॥। ११६५ सव्ववादिगणा ११६३०० । सव्वगणा २८४८००० । पणास सहसाणि लक्खाणि तिष्णि उसहणाहस्स | अजियस्स तिष्णि लक्खा वीससहस्त्राणि विरदीओ ॥ ११६६ ३५०००० । ३२०००० । तेरह सौ, केवल सातसौ, विक्रियाऋद्धिधारी सौ कम एक हजार अर्थात् नौसौ, विपुलमति पांचसौ, और वादी चारसौ थे ।। ११६०-११६१ ॥ वर्धमान - पूर्व. ३००, शि. ९९००, अ. १३००, के. ७००, विक्रि. ९००, विपु. ५००, वा. ४०० । सब तीर्थंकरों के शून्य, चार, नौ, छह और तीन इतने अंकप्रमाण पूर्वधर; तथा पांच, पांच, पांच, शून्य, शून्य, शून्य और दो इतने अंकप्रमाण शिक्षकगण थे । ११६२ ॥ सब पूर्वधरोंको अंकक्रमसे जानना चाहिये ३६९४० । सर्व शिक्षक २०००५५५ । सब अवधिज्ञानी शून्य, शून्य, छह, सात, दो और एक इतने अंकप्रमाण; तथा सब केवली शून्य, शून्य, आठ, पांच, आठ आर एक इतने अंकप्रमाण थे | ११६३ ॥ सर्व अवधिज्ञानी १२७६००, सर्व केवली १८५८०० । सर्व विक्रियाऋद्धिधारी अंकक्रमसे शून्य, शून्य, नौ, पांच, दो और दो अंकप्रमाण; तथा सर्व विपुलमति पांच, शून्य, नौ, चार, पांच और एक अंकप्रमाण थे | ११६४ ॥ सर्व विक्रियाधारी २२५९००, सर्व विपुलमति १५४९०५ । सर्व वादी अंक क्रमसे शून्य, शून्य, तीन, छह, एक और एक अंकप्रमाण थे । इन उपर्युक्त सातों गणोंकी संख्या तीन शून्य, आठ, चार, आठ और दो इन अंकों प्रमाण होती है ।। ११६५ ।। सर्व वादी ११६३०० । सातों गण २८४८००० । ऋषभनाथ तीर्थंकरके तीर्थमें तीन लाख पचास हजार और अजितनाथ के तीथमें तीन लाख बीस हजार आर्यिकाएं थीं ॥। ११६६ ॥ ३५०००० । ३२०००० । १ द 'णवपण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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