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________________ २९०.] तिलोयपण्णत्ती विउणा पंचसहस्सा तिण्णि सयाई हवंति विउलमदी । छाधियणउदिसदा णं वादी पउमप्पहे देवे ॥ १११६ वि १०३००, वा ९६००। पुव्वधरा तीसाधियदोणिसहस्सा हवंति सिक्खगणा । चोदाल सहस्साणिं दो लक्खा णवसया वीसा ।। १११७ पु २०३०, सि २४४९२०, णव य सहस्सा ओही केवलिणो एकरससहस्साणि । तेवण्णसयब्भहिया वेकुव्वी दस सहस्साणि ॥१११८ ओ ९०००, के ११०००, वे १५३००, एक्काणउदिसयाइं पण्णासासंजुदाइ विउलमदी । अट्ठ सहस्सा छस्सयसहिदा वादी सुपासजिणे ॥ १११९ वि ९१५०, वा ८६००। चत्तारि सहस्साई देवे चंदप्पहम्मि पुवधरा । दोलक्खदससहस्सा चत्तारि सयाई सिक्खगणा ॥ ११२० पु ४०००, सि २१०४००, बे अट्ठरस सहस्सा छच्च सया अट्ठ सग सहस्साई । कमसो मोहीकेवलिवेउवीविउलमदिवादी ॥ ११२१ ओ २०००, के १८०००, वे ६००, वि ८०००, वा ७०००। तिगुणियपंचसयाई पुव्वधरा सिक्खयाई इगिलक्खा । पणवण्णसहस्साई अब्भहियाइं पणसएहिं ॥ ११२२ पु १५००,सि १५५५०० । ऋद्धिके धारक सोलह हजार आठसौ, विपुलमति पांच हजारके दुगुणे अर्थात् दश हजार तीनसौ, और वादी छयानबैसौ थे ॥ १११४-१११६ ॥ पद्म--- पूर्व. २३००, शि. २६९०००, अ. १००००, के. १२०००, विक्रिया. १६८००, विपुल. १०३००, वादी ९६००। सुपार्श्वजिनके सात गणोंमेंसे पूर्वधर दो हजार तीस, शिक्षकगण दो लाख चवालीस हजार नौसौ बीस, अवधिज्ञानी नौ हजार, केवली ग्यारह हजार, विक्रियाऋद्धिके धारक तिरेपनसौ अधिक दश हजार, अर्थात् पन्द्रह हजार तीनसौ, विपुलमति एकानबैसौ पचास, और वादी आठ हजार छहसौ थे ॥ १११७-१११९ ॥ सुपार्श्व-पूर्व. २०३०, शिक्षक २४४९२०, अव. ९०००, के. ११०००, विक्रिया. १५३००, विपुल. ९१५०, वादी ८६०० । चन्द्रप्रभदेवके सात गणोंमेंसे पूर्वधर चार हजार, शिक्षकगण दो लाख दश हजार चारसौ, और अवधिज्ञानी, केवली, विक्रियाधारी, विपुलमति तथा वादी क्रमसे दो हजार, अठारह हजार, छहसौ, आठ हजार और सात हजार थे ॥ ११२०-११२१ ॥ चन्द्रप्रभ- पूर्व. ४०००, शि. २१०४००, अवधि. २०००, के. १८०००, विक्रिया. ६००, विपुल. ८०००, वादी ७०००। श्रीपुष्पदन्त तीर्थकरके सात गणोंमेंसे पूर्वधर पांचसौके तिगुणे अर्थात् पन्द्रहसौ, शिक्षक एक लाख पचवन हजार पांचसौ, अवधिज्ञानी चौरासीसौ, केवली सात हजार पांचसौ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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