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________________ -४. १११५ ] उत्थो महाधियारो [ २८९ पंचसयन्भहियाई दोणि सहस्साई दोंति पुव्वधरा । दो सिक्खगलक्खाईं तीससहस्साइ पण्णासा ॥। ११०८ पु २५००, सि २३००५०, अडणउदिसया ओही केवलिणो विउणभडसहस्त्राणि । वेकुन्त्रिसहस्लाई भवंति एक्कूणवीस्राणि ॥ ११०९ ओ ९८०० के १६०००, वे १९०००, इगिवीससहस्साइं पण्णाधियछस्सया य विडलमदी । एकं चेय सहस्सा वादी अभिनंदणे देवे ॥ १११० वि २१६५०, वा १००० । दोणि सहस्सा चसय देवे सुमदिप्पहुम्मि पुव्वधरा । अड्डाइजं लक्खा तेदालस्याणि सिक्खगा पण्णा ॥ ११११ पुव्व २४००, सि २५४३५०, एकरसतेरसाईं कमे' सहस्त्राणि ओहिकेवलिणो । अट्ठरससहस्त्राणि चत्तारि सयाणि वेकुब्वी ॥ १११२ ओ ११०००, के १३०००, वे १८४००, विउमदी य सहस्सा दससंखा चडसएहिं संजुत्ता । पण्णासजुदसहस्सा दस चउसयमधिय वादिगणा ॥ १११३ वि १०४००, वा १०४५० । दोणि सहस्सा तिसया पुग्वधरा सिक्खया दुवे लक्खा । ऊणत्तारं सहस्सा ओहिंगणा दससहस्साणिं ॥ १११४ पुत्र २३००, सि २६९०००, भो १००००, चडवकेताडिदाई तिष्णि सहस्साणिं होंति केवलिणो । अट्ठसएहिं जुत्ता बेकुब्वी सोलससहस्सा ॥ १११५ के १२०००, वे १६८००, अभिनन्दन जिनके सात गणोंमेंसे पूर्वधर दो हजार पांचसौ, शिक्षक दो लाख तीस हजार पचास, अवधिज्ञानी अट्ठानबेसौ, केवली दुगुणे आठ हजार अर्थात् सोलह हजार, विक्रियाऋद्धिके धारक एक कम बीस हजार अर्थात् उन्नीस हजार, विपुलमति इक्कीस हजार छहसौ पचास, और वादी केवल एक हजार ही थे ।। ११०८ - १११० ॥ अभिनन्दन -- पूर्व. २५००, शिक्षक २३००५०, अव. ९८००, विक्रिया. १९०००, त्रिपु. २१६५०, वादी १००० । सुमति प्रभुके सात गणों से पूर्वघर दो हजार चारसौ, शिक्षक अढाई लाख तेतालीस सौ पचास, अवधिज्ञानी ग्यारह हजार, केवली तेरह हजार, विक्रियाऋद्धिके धारक अठारह हजार चारसौ, विपुलमति दश हजार चारसौ, और वादी दश हजार चार सौ पचास थे ॥ ११११-१११३ ॥ सुमति - पूर्व. २४००, शिक्षक २५४३५०, अव. ११०००, के. १३०००, विक्रि. १८४००, विपुल. १०४००, वादी १०४५० । पद्मप्रभजिनके सात गणोंमेंसे पूर्वधर दो हजार तीन सौ शिक्षक दो लाख उनहत्तर हजार, अवधिज्ञानी दश हजार, केवली चारसे गुणित तीन हजार अर्थात् बारह हजार, विक्रिया १ द ब कमेण २ ब चउकं. TP. 37 Jain Education International . केवली १६०००, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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