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तिलोयपण्णत्ती
[४. १००८
।। णरतिरियाण विचित्तं सह सोदण दुक्खसोक्खाई। कालत्तयगिप्पण्णं जं जाणइ तं सरणिमित्तं ॥ १००८
। सरणिमित्तं गदं। . सिरमुहकंधप्पहुदिसु तिलमसयप्पहुदिभाई दट्टणं । जं तियकालसुहाई जाणइ तं वेंजणणिमित्तं ॥ १००९ }
। वेंजणणिमित्तं गई। ( करचरणतलप्पहुदिसु पंकयकलिसादियाणि दट्टणं । जं तियकालसुहाई लक्खइ तं लक्खणणिमित्तं ॥ १०१०)
। लक्खणणिमित्तं गदं। । सुरदाणवरक्खसणरतिरिएहि छिण्णसत्थवत्थाणि । पासादणयरदेसादियाणि चिण्हाणि दट्टणं ॥ १०११ कालत्तयसंभूदं सुहासुहं मरणविविहदव्वं च । सुहदुक्खाई लक्खइ चिण्हणिमित्तं ति तं जाणइ ॥ १०१२,
। चिण्हणिमित्तं गदं । वातादिदोसचत्तो पच्छिमरते मुयंकरविपहुदि। णियमुहकमलपविढे देक्खिय सउणम्मि सुहसउणं ॥ १०१३ घडतेल्लब्भंगादि रासहकरभादिएसु आरुहणं । परदेसगमणसव्वं जं देक्खइ असुहसउणं तं ॥ १०१४) जं भासइ दुक्खसुहप्पमुहं कालत्तए वि संजादं । तं चिय सउणणिमित्तं चिण्हो मालो त्ति दोभेदं ॥ १०१५
मनुष्य और तिर्यंचोंके विचित्र शब्दोंको सुनकर कालत्रयमें होनेवाले दुख-सुखको जानना यह स्वरनिमित्त है ॥ १००८ ॥
स्वरनि मित्त समाप्त हुआ। सिर, मुख और कंधे आदिपर तिल एवं मशे आदिको देखकर तीनों कालके सुखादिकको जानना, यह व्यञ्जननिमित्त है ॥ १००९ ॥
व्यञ्जननिमित्त समाप्त हुआ। हस्ततल और चरणतलादिकमें कमल, वज्र इत्यादि चिह्नोंको देखकर कालत्रयमें होनेवाले सुखादिको जानना, यह लक्षणनिमित्त है ॥ १०१० ॥
.लक्षणनिमित्त समाप्त हुआ। देव, दानव, राक्षस, मनुष्य और तिर्यंचोंके द्वारा छेदे गये शस्त्र एवं वस्त्रादिक तथा प्रासाद, नगर और देशादिक चिह्नोंको देखकर त्रिकालभावी शुभ, अशुभ, मरण, विविध प्रकारके द्रव्य और सुख-दुखको जानना, यह चिह्ननिमित्त है ॥ १०११-१०१२ ॥
चिह्ननिमित्त समाप्त हुआ। वात-पित्तादि दोषोंसे रहित व्यक्ति सोते हुए रात्रिके पश्चिम भागमें अपने मुखकमलमें प्रविष्ट चन्द्र-सूर्यादिरूप शुभ स्वप्नको; और घृत व तैलकी मालिश आदि, गर्दभ व ऊंट आदिपर चढ़ना, तथा परदेशगमनादिरूप जो अशुभ स्वप्नको देखता है, इसके फलस्वरूप तीन कालमें होनेवाले दुख-सुखादिकको बतलाना यह स्वप्ननिमित्त है। इसके चिह्न और मालारूपसे दो भेद हैं ।
१ एषा गाथा द-पुस्तक एव. २ द ब पहुदिआदि. ३ द ब छंदसस्थ'. ४ द वालादिदोस ५द खरभादिएसु. ६द व चिण्हा मालोट्टिदो भेदं.
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