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________________ २१८ ] तिलोयपण्णत्ती [४.८०३ २४२३२२/२१/२०१९१८१७१६ १५ १४ १३१२/११/१० ७२/७२/७२/७२ ७२/ ७२ ७२/७२/७२/७२/७२ ७२ ७२ ७२ । बिदियसाला सम्मत्ता। ततो चउत्थउववणभूमीए असोयसत्तवण्णवणं । चंपयचदवणाणं पुवादिदिसासु राजंति ॥ ८.३ विविहवणसंडमंडणविविहणईपुलिणकीडणगिरीहि विविहवरवाविआहिं उववणभमी रम्माओ ॥ ८०५ एक्काए उववणखिदिए तरवो यसोयसत्तदला । चंपयचदा सुंदरभूदा चत्तारि चत्तारि ॥ ८०५ चामरपहुदिजुदाणं चेत्ततरूणं हवंति उच्छेहाँ। णियणियजिणउदएहिं बारसगुणिदेहिं सारिच्छा ॥ ८०६ ६०००। ५४००। ४८०० । ४२०० । ३६०० । ३०००।२४००।१८०० । १२०० । १०८० । ९६० । ८४० । ७२० । ६०० । ५४० । ४८० । ४२० । ३६० । ३००। २४०। १८० १२० । २७ । २१। अणिमयजिणपडिमाओ अट्टमहापाडिहेरसंजुर्ता । एक्केक्कस्सि चेत्तहमम्मि चत्तारि चत्तारि ॥ ८०७ भववणवाविजलेणं सित्ता पेच्छंति एक्कभवजाई । तस्स णिरिक्षणमेत्ते सत्तभवातीदभाविजादीओ ॥८०८ सालत्तयपरिअरिया पीढत्तयउवरि माणथंभा य । चत्तारो चत्तारो एकेके चेत्तरुक्खम्मि ॥ ८.९ इसके आगे चौथी उपवनभूमि होती है, जिसमें पूर्वादिक दिशाओंके क्रमसे अशोकवन, सप्तपर्णवन, चम्पकवन और आम्रवन, ये चार वन शोभायमान होते हैं ॥ ८०३ ॥ ये उपवन भूमियां विविध प्रकारके वनसमूहोंसे मण्डित, विविध नदियोंके पुलिन, और क्रीडापर्वतोंसे तथा अनेक प्रकारकी उत्तम वापिकाओंसे रमणीय होती हैं ॥ ८०४ ॥ एक एक उपवनभूमिमें अशोक, सप्तच्छद, चम्पक और आम्र, ये चार चार सुन्दर वृक्ष होते हैं ॥ ८०५॥ ___ चामरादिसे सहित चैत्यवृक्षोंकी उंचाई बारहसे गुणित अपने अपने तीर्थंकरोंकी उंचाईके सहश होती है ।। ८०६॥ एक एक चैत्यवृक्षके आश्रित आठ महाप्रातिहार्योसे संयुक्त चार चार मणिमय जिनप्रतिमायें होती है ।। ८०७॥ . उपवनकी वापिकाओंके जलसे अभिषिक्त जनसमूह एक भवजातिको देखते हैं और उसके निरीक्षणमात्रके होने पर अर्थात् वापीके जलमें निरीक्षण करनेपर सात अतीत व अनागत भवजातियोंको देखते हैं ॥ ८०८ ॥ एक एक चैत्यवृक्षके आश्रित तीन कोटोंसे वेष्टित व तीन पीठोंके ऊपर चार चार मानस्तम्भ होते हैं ॥ ८०९ ।। ... १ व उववणभूमी व. ५६ सालसत्तयपरिहरिया. २ द पच्चयभूदा सुंदरभूया. ३ द व उच्छेहो... ४ द व संजुत्तो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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