________________
-४. ५२५]
चउत्थो महाधियारो
[२०७
भरहो सगरो मघवो सर्णकुमारो य संतिकुंथुअरा । तह य सुभोमो पउमो हरिजैयसेणा य बम्हदत्तो य ॥५१५ छक्खंडपुढविमंडलपसाहणा कित्तिभरियभुवणयला । एदे बारस जादा चक्कहरा भरहखेत्तम्मि ॥५१६ विजयो अचल सुधम्मो सुप्पहणामो सुदसणो णंदी। तह णंदिमित्त रामो पउमो णव होंति बलदेवा ॥ ५१७ तह य तिविठ्ठदुविट्ठा सयंभु पुरिसुत्तमो पुरिससीहो । पुंडरियदत्तणारायणा य किण्हो हुवंति णव विण्ड्ड ॥ ५१८ अस्सग्गीवो तारयमेरकमधुकीडभा तह णिसुंभो । बलिपहरणरावणो जरसंधो य णव य पढिसत्त ॥ ५१९ भीमावलिजियसत्तू रुद्दो वइसाणलो य सुपइहो । तह अचल पुंडरीओ अजियधर अजियणाभिपेडाला ॥ ५२० सच्चइसुदो य एदे एक्कारस होति तित्थयरकाले । रुद्दा रउद्दकम्मा अहम्मवावारसंलग्गा ॥ ५२१ सब्वट्ठसिद्धिठाणा अवइण्णा उसहधम्मपहुदितिया। विजया णंदणअजिया चंदप्पह वइजयंतादु ॥ ५२२ अपराजियाभिधाणा अरणमिमल्लीओ गेमिणाहो य । सुमई जयंतठाणा आरणजुगला य सुविहिसीयलया ॥ ५२३ पुप्फोत्तराभिधाणा अणंतसेयंसवडमाणजिणा । विमलो य संदाराणदपाणदकप्पा य सुव्वदा पासा ॥ ५२४ हेटिममज्झिमउवरिमगेवज्जादागदा महासत्ता । संभवसुपासपउमा महसुक्का वासुपुज्जजिणो ॥ ५२५ -
भरत, सगैर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभौम, पद्म, हरिषेण, जयसेन" और ब्रह्मदत्त, ये छह खण्डरूप पृथिवीमण्डलको सिद्ध करनेवाले और कीर्तिसे भुवनतलको भरनेवाले बारह चक्रवर्ती भरत क्षेत्रमें उत्पन्न हुए ॥ ५१५-५१६ ॥
विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शने, नन्दी', नन्दिमित्र, राम और पद्म, ये नौ भरत क्षेत्रमें बलदेव हुए ॥ ५१७ ॥
___ तथा त्रिपृष्ट, द्विपृष्ठे, स्वयम्भ , पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, ( पुरुष-) पुण्डरीक, (पुरुष-) दत्त, नारायण ( लक्ष्मण ) और कृष्णे, ये नौ विष्णु ( नारायण ) हैं ॥ ५१८ ॥
__ अश्वग्रीव, तारके, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भे, बलि', प्रहरण, रावण और जरासंध, ये नौ प्रतिशत्रु हैं ॥ ५१९ ॥
___ भीमावलि, जितशत्रु, रुदै, विश्वानलं, सुप्रतिष्ठे, अचल, पुण्डरीक, अजितंर्धर, अजितनाभि, पीठे और सात्यकिसुत, ये ग्यारह तीर्थंकरकालमें रुद्र होते हैं। ये सब अधर्मपूर्ण व्यापारमें संलग्न होकर रौद्रकर्म किया करते हैं ।। ५२०-५२१ ॥
ऋषभ और धर्मादिक (धर्म, शान्ति, कुंथु ) तीन तीर्थङ्कर सर्वार्थसिद्धिसे अवतीर्ण हुए थे; अभिनन्दन और अजितनाथ विजयसे; चन्द्रप्रभ वैजयंतसे; अर, नमि, मल्लि और नेमिनाथ, ये चार तीर्थकर अपराजित नामक विमानसे; सुमति जयन्त विमानसे; पुष्पदन्त और शीतल क्रमशः आरणयुगलसे; अनन्त, श्रेयांस और वर्द्धमान, ये तीन तीर्थंकर पुष्पोत्तर विमानसे; विमल शतार कल्पसे; सुव्रत और पार्श्वनाथ क्रमशः आनत एवं प्राणत कल्पसे; संभव, सुपार्श्व और पद्मप्रभ, ये तीन महापुरुष क्रमशः अधोग्रैवेयक, मध्यप्रैवेयक और ऊर्ध्वग्रैवेयकसे; तथा वासुपूज्य जिनेन्द्र महाशुक्र कल्पसे अवतीर्ण हुए थे ॥ ५२२-५२५ ॥
४ द ब वेइसायणो.
५ द ब सुहइ.
१ ब सुभोम्मो. २ ब °जयसेणो. ३ द व भवण. ६ द सहारापाणद. ७ द ब महसुक्के. ८ द ब जिणा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org