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प्रस्तावना
( दूसरी आवृत्ति) तिलोयपण्णत्तीके विषयमें अनुराग रखनेवाले जिज्ञासुओंने ऐसे उत्साह और उमंगके साथ इस महान् कृतिका स्वागत किया है जिससे कि हमें तिलोयपण्णत्तीका प्रथम भाग पुनर्मुद्रित करने की आवश्यकता पडी। अब हम उस ग्रंथके दोनों भागोंकी मांग अच्छी तरहसे पूरी कर सकेंगे। यह ग्रंथ प्रथमावृत्तिका केवल पुनर्मुद्रण है । ग्रंथका विषय, ग्रंथका लेखक आदि प्रमुख विषयोंकी चर्चा अंग्रेजीमें और हिंदीमें इस ग्रंथके दूसरे भागके प्रस्तावनामें की है जो पहलेहि प्रकाशित हो चुका है और इस ग्रंथके साथ उसकी मांग भी पूरी हो सकती है।
विद्वानोंने करणानुयोगके इस विषयका अत्यंत उत्साहित होकर स्वागत किया है । इस लिए हम इसी विषयके जंबूदीवपण्णत्ती, लोकविभाग, त्रैलोक्यदीपिका आदि महान् कृतिओंका प्रकाशन करनेकी व्यवस्था कर रहे हैं । इससे जैन साहित्यके इस विभागके अनेक दुर्बोध स्थलोंका इसी विषयके संबंधित अन्य भारतीय साहित्यसे तुलनात्मक अभ्यास किया जा सकता है।
समाजहितैषी ब्र. जीवराज गौतमचंदजीके हम खास आभारी है जो कि हमारे संघके मूल संस्थापक हैं । उनकी निरंतर निगाह और प्रगाढ रुचिके अभावमें इस ग्रंथका द्वितीयाविष्करण होना असंभव था। जिनवाणीके प्रति उनकी जो श्रद्धा और भक्ति है वह उनके सुयोग्य मार्गदर्शनमें कार्य करनेवाले हमारे जैसे व्यक्तियोंके लिए प्रेरकशक्ति प्रदान करती है।
___ इस आवृत्तिके प्रूफका निरीक्षण सदा जैसे श्री. डॉ. ए. एन्. उपाध्यायजी, कोल्हापुर महोदयने हि किया है जो कि इस मालाके एक सन्माननीय संपादक हैं । श्री. पं. जिनदासजी फडकुलेने हिंदी प्रूफ जाँचकर इस आवृत्तिका कार्य शीघ्र करनेमें सहायता दी है इसलिए इन सबके हम आभारी हैं।
सोलापुर २६-१-५६
वा. दे. शहा मंत्री, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर.
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