SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१.४४३ ] चउत्थो महाधियारो [१९७ अस्थि सदा मंधार ताराको तेयंगतरुगणेहि पडिहदकिरणा पुग्वं कालवसेणज पायडी जादा ॥४३५ जंबूदीवे मेरुं कुवंति पदाहिणं गहा तारा । णक्खत्ता णिचं ते तेजविणासा तमो होदि ॥१३७ सोऊण तस्स वयणं संजादा णिब्भया तदा सब्वे । अञ्चति चरणकमले थुर्णति विविहेहि भंगेहि ॥४३८ सम्मदिसग्गपवेसे अट्ठसयावहिदपल्लविच्छेदे । खेमंकरो ति कुलकरपुरिसो उप्पज्जदे तदियो ॥३९ भट्टसयचावतुंगो सहस्सहरिदेवपल्लपरमाऊ । चामीयरसमवण्णो तस्स सुणंदा महादेवी ॥४४. वग्धादितिरियजीवा कालवसा कूरभावमावण्णा । तब्भयदो भोगणरा सम्वे भचाउला जादा ॥४॥ खेमकरणाम मणू भीदाणं देदि दिग्वउवदेसं । कालस्स विकारादो एदे कूरत्तणं पत्ता ॥४४२ ता एम्हि विस्सासं पावाण मा करेज कइयो वि । तासेज कलुसवैयणा इय भणिदे णिन्भया जादा ॥४॥ अंधकार और तारागण तो सदा ही रहते हैं, किन्तु पूर्वमें तेजांग जातिके कल्पवृक्षोंके समूहोंसे वे प्रतिहतकिरण थे, सो अब आज कालके वशसे प्रकट होगये हैं ॥ ४३६ ॥ ये ग्रह, तारा और नक्षत्र जम्बूद्वीपमें नित्य ही मेरुकी प्रदक्षिणा किया करते हैं। तेजके विनाशसे ही अन्धकार होरहा है ॥ ४३७ ॥ तब कुलकरके वचनको सुनकर वे सब निर्भय हो गये और विविध प्रकारसे इसके चरणकमलोंकी पूजा और स्तुति करने लगे ॥ ४३८ ॥ सन्मति नामक इस द्वितीय कुलकरके स्वर्गारोहण करनेपर आठसौसे भाजित एक पल्यके पश्चात् क्षेमकर नामक तीसरा कुलकर पुरुष उत्पन्न हुआ ॥ ४३९ ॥ प. . इस कुलकरके शरीरकी उंचाई आठसौ धनुष, आयु हजारसे भाजित एक पल्यप्रमाण, और वर्ण सुवर्ण जैसा था। इसके सुनन्दा नामक महादेवी थी ॥ ४४० ॥ उंचाई दं. ८००, आयु प. . _ उस समय कालवश व्याघ्रादिक तिर्यञ्च जीव क्रूरताको प्राप्त हो गये थे। इस कारण सब भोगभूमिज मनुष्य उनके भयसे अत्यन्त व्याकुल हुए ॥ ४४१॥ तब क्षेमंकर नामक मनु उन भयभीत प्राणियोंको दिव्य उपदेश देते हैं कि कालके विकारसे ये तिर्यंच जीव क्रूरताको प्राप्त हुए हैं, इसलिये अब इन पापियोंका विश्वास कदापि मत करो; ये विकृतमुख प्राणी तुम्हें त्रास दे सकते हैं। उनके ऐसा कहनेपर वे भोगभूमिज निर्भयताको प्राप्त हुए ॥ ४४२-४४३ ॥ १६ तेयअंतरगतेहिं, व तेयअंगतरगतेहि. २ द पायदा. ३ द व विविहेरमंतेहिं. ४ दबस? ५८ व तम्भयदा. ६ द अम्भाउला. ७६ व अभयदाणं देहि. ८व उवएसं. ९द कइयामि. १. द व कलुववयणा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy