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तिलोयपण्णत्ती
वरवेदीपरिखित्ते चउगोउरमंदिरम्मि' पासादे । रम्मुज्जाणे तस्सि गंगादेवी सयं वसइ ॥ २२८ "भवणोवरि कूडम्मि य जिनिंदपडिमाओ' सासैदरिधीभो । चेति किरणमंडल उज्जोइदसयलभासाओं ॥ २२९ आदिजिणप्पडिमाओ ताओ जडमउडसे हरिल्लाओ । पडिमोवरिम्मि गंगा अभिसित्तमर्णी व सा पडदि ॥ २३० (पुष्पिदपंकजपीढा कमलोदरसरिसवण्णवरदेहा । पढमजिणप्पडिमाओ भरंति जे ताण देति णिवाणं ॥ २३१ कुंडस्स दक्खिणं तोरणदारेण णिग्गदा गंगा । भूमिविभागे वक्का होदूण गदा य रजदगिरिं ॥ २३२ रम्मायारों गंगा संकुलिदूणं पि दूरदो एसा । विजयडगिरिगुहाए "पविसदि मेदिणिबिले भुजंगी वै ॥ २३३ गंगा तरंगिणीए उभयत्तैडवेदियाण वणसंडा । असुट्टसरूवेणं संपत्तौ रजदसेलंतं ॥ २३४
वरवज्जकवाडाणं संवरणपवेसणाई मुत्तणं । सेसगुहब्भंतरयं गंगातडवेदिवणसंडा ॥ २३५ रुपfiftee गुहाए गर्मणपदेसम्मि होदि वित्थारो । गंगातरंगिणीए अटुं चिय जोयणाणि पुढं ॥ २३६
उत्तम वेदी वेष्टित, चार गोपुर एवं मन्दिरसे सुशोभित और रमणीय उद्यान से युक्त उस भवन में स्वयं गंगादेवी रहती है ॥ २२८ ॥
उस भवन के ऊपर कूटपर किरणसमूह से सम्पूर्ण दिशाओंको प्रकाशित करनेवाली, और शाश्वत ऋद्धिको प्राप्त, ऐसी जिनेन्द्रप्रतिमायें स्थित हैं ॥ २२९ ॥
वे आदि जिनेन्द्रकी प्रतिमायें जटामुकुटरूप शेखरसे सहित हैं । इन प्रतिमाओंके ऊपर वह गंगा नदी मानों मनमें अभिषेककी भावनाको रखकर ही गिरती है ॥ २३० ॥
आदिजिनेन्द्रकी प्रतिमायें फूले हुए कमलासन पर विराजमान और कमलके उदर अर्थात् मध्यभाग के सदृश वर्णवाले उत्तम शरीरसे युक्त हैं। जो भव्य जीव इनका स्मरण करते हैं उन्हें ये निर्वाण प्रदान करती हैं ॥ २३९ ॥
[ ४. २२८
गंगानदी इस कुण्डके दक्षिण तोरणद्वार से निकलकर भूमिप्रदेशमें मुड़ती हुई रजतगिरि अर्थात् विजयार्द्ध पर्वतको प्राप्त हुई है || २३२ ॥
यह रम्याकार गंगा नदी दूरसे ही संकुचित होकर विजयार्द्ध पर्वतकी गुफामें इसप्रकार प्रवेश करती है जैसे भुजंगी मेदिनीबिलमें ॥ २३३ ॥
गंगा नदीकी दोनों ही तटवेदियोंपर स्थित वनखंड अत्रुटितरूपसे विजयार्द्ध पर्वत तक, चले गये हैं ॥ २३४ ॥
गंगातटवेदी संबंधी ये वनखंड उत्तम वज्रमय कपाटोंके संवरण और प्रवेशभागको छोड़कर शेष गुफा के भीतर हैं ॥ २३५ ॥
रूपाचलकी गुफा में प्रवेश करनेके स्थानपर गंगा नदीका विस्तार आठ योजनाप्रमाण हो जाता है || २३६ ॥
१ द मंदरम्मि
२ द ब पडिमादि ३ द सासदरिदीओ, ब सासदरदीउ, ४ द सयलयसओ, ५ द ब तोउज्जदमउडपासेहरिल्लाओ. ६ द अभिसित्तूमणप्पसा, ब अभिसत्तू मणप्पसा. ८ द सरंति ९ द ब रम्मायाए. १० द ब परिसदि. ११ द व भेदाभिलेभुजंगिद्द. १३ द ब संपत्तं.
ब सयलदिसओ.
७ द व पुव्विद १२ ६ उभयंतर.
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