________________
१५०]
तिलोयपण्णत्ती
[ ४. ६६
जगदीबाहिरभागेदाराणं होदि अंतरपमाणं । उणसीदिसहस्साणं बावण्णा जोयणाणि भदिरेगो ॥ ६६ सत्त सहस्साणि धण पंचसयाणि हवंति बत्तीसं । तिणि चिय पचाणि तिणि जवा किंचिददिरित्ता॥६७
७.९०५२।ध ७५३२। ३। ज ३। जगदीअभंतरए परिही लक्खाणि तिण्णि जोयणया। सोलससहस्सइगिसैयबावण्णा हॉति किंचूणा ॥ ६८
३१६१५२। जगदीभन्भंतरए दाराणं होदि अंतरपमाणं । उणसीदिसहस्साणं चउतीसं जोयणाणि किंचूर्ण ॥ ६९
विक्खंमद्धकदाओ विगुणा बट्टे दिसंतरे दीवे । वग्गो पणगुणचउभजिदो होदि धणुकरणी ॥ ७० सत्तरिसहस्सजोयण सत्त सया दसजुदो य अदिरित्तो । जगदीअभंतरए दाराणं रिजुसमाणविञ्चालं ॥ ७॥
उणसीदिसहस्साणि छप्पण्णा जोयणाणि दंडाई । सत्त सहस्सा पणसयबत्तीसा होति किंचूणा ॥ ७२
७९०५६ । दं ७५३२ ।
जगतीके बाह्यभागमें द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण उन्यासी हजार बावन योजनसे अधिक है ॥ ६६ ॥ ७९०५२।
सात हजार पांचसौ बत्तीस धनुष, तीन अंगुल और कुछ अधिक तीन जौ, इतने प्रमाणसे उपर्युक्त द्वारों के अन्तरालका प्रमाण अधिक है ॥ ६७ ॥ ध. ७५३२, अं. ३, जौ ३ ।
जगतीके अभ्यन्तरभागमें जम्बूद्वीपकी परिधि तीन लाख सोलह हजार एकसौ बावन योजनसे कुछ कम है ॥ ६८ ॥ ३१६१५२ ।
___ जगतीके अभ्यन्तरभागमें द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण उन्यासी हजार चौतीस योजनसे कुछ कम ह ॥ ६९ ॥ ७९०३४ ।
विष्कम्भके आधेके वर्गका दुगुणा वृत्ताकार द्वीपकी चतुर्थांश परिधिरूप धनुषकी जीवाका वर्ग होता है, इस वर्गको पांचसे गुणा कर चारका भाग देनेपर धनुषका वर्ग, तथा उसका मूल धनुषका प्रमाण होता है।॥ ७० ॥
उदाहरणः-विष्कम्भ १००००० यो. । चतुर्थांश धनुषकी जीवाका वर्ग ५००००x २=५०००००००००; धनुषका वर्ग ५०००००००००४ ५ =६२५००००००४; जीवाका प्रमाण V५००००००००० = ७०७१. यो. धनुषका प्रमाण V६२५००००००० = ७९०५६ यो. ७५३२ ध.।
जगतीके अभ्यन्तरभागों द्वारोंका सीधा अन्तराल सत्तर हजार सातसौ दश योजनोंसे अधिक है ।। ७१ ॥ ७०७१० । . उक्त विजयादि द्वारोंका अन्तराल उन्यासी हजार छप्पन योजन और सात हजार पांचसौ बत्तीस धनुषसे कुछ कम है ॥ ७२ ॥ यो. ७९०५६, दं, ७५३२ ।
१ द ब भागो. २ द पंचाणि. ३ द इगिस्सयं. ४ ब धणुक्करणी.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org