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________________ -४. ३१] चउत्यो महाधियारो [ १४५ .तिविहाभो वावीओ णियहंददसंसमेत्तमवगाढा । कइमारकमलकुवलयकुमुदामोदेहिं परिपुण्णा ॥ २४ २०।१५।१०। पायारपरिगदाई वरगोउरदारतोरणाई पि । भभंतरम्मि भागे महोरगाणं च चेट्रति ॥ २५ पाठान्तरम् । जयरेसं रमणिज्जा पासादा होति विविहविण्णासा। अभंतरचेत्तरयों णाणावरस्यणणियरमया ॥ २६ दिप्पंतरयणदीवा समंतदो विविहधूवघडजुत्ता । वजमयवरकवाडा वेदीगोउरदुवारजुदा ॥ २७ पणुहत्तरि चावाणि उत्तंगा सयधणूणि दीहजुदा । पण्णासदंडरुंदा होति जहण्णम्मि पासादा ।। २८ । ७५ । १०० । ५० । पासादावारेसुं बारस चावाणि होति उच्छेहो । पत्तेकं छण्णाहं अवगाढं तं पि चत्तारि ॥२९ । १२।६।४। पणुवीसं दोणि सया उच्छेहो होदि जिट्टपासादा । दीहं तिसयधणूणि पत्ते सद्ध विक्खंभो ॥ ३० २२५। ३००।१५०। ताण दुवारुच्छेहो दंडा छत्तीसे होदि पत्तेकं । भट्टारस विक्खंभो बारस णियमेण अवगाढं ॥३१ तीनों ही तरहकी बावड़ियां अपने अपने विस्तारके दशवें भागप्रमाण गहरी और कैरव ( सफेद कमल ), कमल, नील कमल एवं कुमुदोंकी सुगन्धसे परिपूर्ण हैं ॥ २४ ॥ वेदीके अभ्यन्तरभागमें प्राकारसे वेष्टित एवं उत्तम गोपुरद्वार व तोरणोंसे संयुक्त ऐसे महोरग देवोंके ( भवन ) स्थित हैं ॥ २५ ॥ पाठांतर । ____ नगरोंमें विविधप्रकारकी रचनाओंसे युक्त, अनेक उत्तमोत्तम रत्नसमूहोंसे निर्मित, अभ्यन्तरभागमें चैत्यतरुओंसे सहित, चारों ओर प्रदीप्त रत्नदीपकोंसे सुशोभित, विविधप्रकारके धूपघटोंसे युक्त, वज्रमय कपाटोंसे संयुक्त, और वेदी व गोपुरद्वारोंसे सहित रमणीय प्रासाद हैं ॥ २६-२७ ॥ ये प्रासाद जघन्यरूपसे पचहत्तर धनुष ऊंचे, सौ धनुष लंबे और पचास धनुषप्रमाण विस्तारयुक्त हैं ॥ २८ ॥ उंचाई ७५; लंबाई १००; विस्तार ५० धनुष । ___ इन प्रासादोंके द्वारोंमें प्रत्येककी उंचाई बारह धनुष, व्यास छह धनुष, और अवगाढ़ चार धनुषप्रमाण है ॥ २९ ॥ उंचाई १२; व्यास ६; अवगाढ़ ४ धनुष । ___ उत्कृष्ट प्रासादोंमें प्रत्येककी उंचाई दोसौ पच्चीस धनुष, लम्बाई तीनसा धनुष और विष्कंभ इससे आधा अर्थात् एकसौ पचास धनुषप्रमाण है ॥३०॥ उं२२५;लं. ३००; वि. १५० ध. । ___ उत्कृष्ट प्रासादोंके द्वारोंमें प्रत्येक द्वारकी उंचाई छत्तीस धनुष, विष्कंभ अठारह धनुष और अवगाढ़ नियमसे बारह धनुषप्रमाण है ॥ ३१ ॥ उं. ३६; वि. १८; अव. १२ ध.। १ द ब २५. २ दर परिमदाई. ३ द व अभंतचेत्तरया. ४ दवणूण. ५ बचावालणिं. ६ व तिसयधणूणं. ७द सव्वविक्संभो. ८ दब दुवारच्छेहो. ९ब बत्तीस. TP. 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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