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________________ -३. १७६] तिदियो महाधियारो जस्स असंखेजाऊ सो वि यसंखेजजोयणाणि पुढं। गच्छेदि एक्कसमये आगच्छदि तेत्तियाणि पि ॥ १६९ अडाइज पल्लं भाऊ देवीण होदि चमरम्मि । वइरोयणम्मि तिणि य भूदाणंदम्मि पल्लमटुंसो॥ १७० प५।३।। धरणाणंदे अधियं वेणुम्मि हुवेदि पुवकोडि त्ति । देवीण आउसंखा अदिरित्तं वेणुधारिस्स ॥ १७१ पु को ३। पत्तकमाउसंखा देवीणं तिणि वरसकोडीओ। सेसम्मि दक्खिणिंदे अदिरित्तं उत्तरिदम्मि ॥१७२ वको ३। पडिइंदोदिचउण्णं आऊ देवीण होदि पत्तेक्कं । णियणियइंदपवण्णिददेवीआउस्स सारिच्छा ॥ १७३ जेत्तियमेत्ता आऊ सरीररक्खाण होइ देवीणं । तस्स पमाणणिरूवणउवएसो णस्थि कालवसा ॥ १७४ असुरादिदसकुलेसुं सम्वणिगिट्ठाण होदि देवाणं। दसवाससहस्साणिं जहण्णआउस्स परिमाणं ॥ १७५ । आउपरिमाणं सम्मत्त। असुराण पंचवीसं सेससुराणं हुवंति दस दंडा। एस सहाउच्छेहो विकिरियंगेसु बहुभेया ॥ १७६ २५।१०। । उच्छेहो गदो। तथा जिस देवकी असंख्यात वर्षकी आयु है, वह एक समयमें असंख्यात योजन जाता है और इतनेही योजन आता है ॥ १६९ ॥ चमरेन्द्रकी देवियोंकी आयु ढाई पल्योपम, वैरोचनकी देवियोंकी तीन पल्योपम, और भूतानन्दकी देवियोंकी आयु पल्योपमके आठवें भागमात्र होती है ॥ १७० ॥ प. ५, ३, ।। धरणानन्दकी देवियोंकी आयु पल्यके आठवें भागसे अधिक, वेणुकी देवियोंकी आयु तीन पूर्वकोटि, और वेणुधारीकी देवियोंकी आयु तीन पूर्वकोटिसे अधिक है ॥१७१॥ पू. को. ३ ____ अवशिष्ट दक्षिण इन्द्रों से प्रत्येककी देवियोंकी आयु तीन करोड वर्ष और उत्तर इन्द्रोंमेंसे प्रत्येक इन्द्रकी देवियोंकी आयु इससे अधिक है ॥ १७२ ॥ वर्षकोटि ३ । प्रतीन्द्रादिक चार देवोंकी देवियों से प्रत्येककी आयु अपने अपने इन्द्रोंकी देवियोंकी कही गई आयुके सदृश होती है ॥ १७३ ॥ शरीररक्षक देवोंकी देवियोंकी जितनी आयु होती है, उसके प्रमाणके कथनका उपदेश कालके वशसे इस समय नहीं है ॥ १७४ ।। असुरादिक दश निकायोंमें सब निकृष्ट देवोंकी जघन्य आयुका प्रमाण दश हजार वर्ष है ॥ १७५॥ आयुका प्रमाण समाप्त हुआ। असुरकुमारोंकी उंचाई पच्चीस धनुष और शेष देवोंकी उंचाई दश धनुषमात्र होती है। यह जो उंचाईका प्रमाण कहा है, वह स्वाभाविक (मूल) शरीरका समझना चाहिये । विक्रियानिर्मित शरीरोंकी उंचाई अनेक प्रकार होती है ॥१७६॥ दं. २५, १०। उत्सेधका कथन समाप्त हुआ। १८२ अंदेवीग. २ द व इंदाणि. ३ बणिरिहाण. ४ द प सम्मत्ता. ५ द गदा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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