SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६] तिलोयपण्णत्ती [ ३. ११३ इंदादीपंचण्णं सरिसो आहारकालपरिमाणं । तणुरक्खप्पहुदीणं तस्सि उवदेस उच्छिपणो॥ ११३ चमरदुगे उस्सासं पण्णरसदिणाणि पंचवीसदलं । पुह पुह मुहुर्तयाणि भूदाणंदादिछक्कम्मि ॥ ११४ दि १५। मु २५ । बारसमुहुत्तयाणि जलपहपहुदीसु छस्सु उस्सासा । पण्णरसमुहत्तदलं अमिदगदिप्पहुदिछण्णं पि ॥११५ मु १२ । १५। दसवरुससहस्साऊ जो देवो तस्स भोयणावसरो । दोसु दिवसेसु पंचसु पल्लपमाणाउजुत्तस्स ॥ ११६ जो यजुदाऊ देवो उस्सासा तस्स सत्तपाणेहिं । ते पंचमुहुत्तेहिं पलिदोवमभाउजुत्तस्स ॥ ११७ पडिइंदादिचउणं इंदस्सरिसा हुवंति उस्सासा । तणुरक्ख पहुदीसु उवएसो संपइ पणट्ठो ॥ ११८ सब्वै असुरा किण्हा हुवंति जागा वि कालसामलया। गरुडा दीवकुमारा सामलवण्णा सरीरेहिं ॥ ११९ उदधित्थणिदकुमारा ते सब्वे कालसामलायारा । विज्जू विज्जुसरिच्छा सामलवण्णा दिसकुमारा ॥ १२० इन्द्रादिक ( इन्द्र, प्रतीन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश और पारिषद ) पांचके आहारकालका प्रमाण समान है। इसके आगे तनुरक्षकादि देवोंके आहारकालके प्रमाणका उपदेश नष्ट होगया है ॥ ११३ ॥ __चमरेन्द्र और वैरोचन इन्द्रके पन्द्रह दिनमें, तथा भूतानन्दादिक छह इन्द्रोंके पृथक् पृथक् पच्चीसके आधे अर्थात् साढ़े बारह मुहूर्तोमें उच्छ्वास होता है ॥ ११४ ॥ दि. १५ । मुहूर्त ३। जलप्रभादिक छह इन्द्रोंके बारह मुहूर्तोंमें, और अमितगति आदि छह इन्द्रोंके पन्द्रहके आधे अर्थात् साढे सात मुहूर्तोंमें उच्छ्वास होता है ।। ११५ ॥ मु. १२ । १५ ।। ___ जो देव दश हजार वर्षकी आयुवाला है, उसके दो दिनों, और पल्योपमप्रमाण आयुसे युक्त देवके पांच दिनमें भोजनका अवसर आता है ॥ ११६ ॥ __ जो देव अयुत अर्थात् दश हजार वर्षप्रमाण आयुवाला है, उसके सात श्वासोच्छ्वासप्रमाण कालमें, और पल्योपमप्रमाण आयुसे युक्त देवके पांच मुहूर्तोंमें उच्छ्वास होते हैं ॥ ११७ ॥ प्रतीन्द्रादिक चार देवोंके उच्छ्वास इन्द्रोंके समान ही होते हैं। इसके आगे तनुरक्षकादि देवोंमें उच्छ्वासकालके प्रमाणका उपदेश इस समय नष्ट हो गया है ॥ ११८ ॥ सब असुरकुमार शरीरसे कृष्ण, नागकुमार कालश्यामल, और गरुड़कुमार व द्वीपकुमार श्यामलवर्ण होते हैं ॥ ११९ ।। सम्पूर्ण उदधिकुमार और स्तनितकुमार कालश्यामल आकारवाले, विद्युत्कुमार विजलीके सदृश, और दिक्कुमार श्यामलवर्ण होते हैं ॥ १२० ॥ १ द रक्खपहूदीणं. २ द ब उवदेस उच्छिण्णा. ३ ब पणरस'. ४ ब मुहुत्तयाणं. ५ द पमाणाबजुलस्स. ६ द देओ. ७ द व पलिदोवमयावजुत्तस्स. ८ द ब उदधिंधणिद°. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy