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-३. ९८]
तिदियो महाधियारो
[ १२३ ।
सोलससहस्समेत्ता वल्लहियाभो हवंति चमरस्स। छप्पण्णसहस्साणिं सांमिलिदे सव्वदेवीओ ॥ ९३
१६०००। ५६०००। पउमापउमसिरीओ कणयसिरी कणयमालमहपउमा । अग्गमहिसीउ बिदिए विकिरियापहृदि पुग्वं वै॥ ९४ पण अगमहिसियाओ पत्तेकं वल्लभा दससहस्सा । णागिदाणं विकिरियापहदि होदि पुच्वं वै ॥ ९५
५। १००००। ४००००। ५००००। चत्तारि सहस्सा गं वल्लहियामो हवंति पत्तेकं । गरुलिंदाणं सेसं पुवं पिव एत्थ वत्तन्वं ॥ ९६
५। ४०००। ४००००। ४४०००। सेसाणं इंदाणं पत्तेकं पंच अग्गमाहिसीओ । एदेसु छस्सहस्सा ससम परिवारदेवीओ।। ९७
५। ६०००। ३००००। दीविंदप्पहुंदीणं देवीणं वरविउवणा संति । छस्सहस्सं च समं पत्तेवं विविहरूवेहिं ॥ ९८
चमरेन्द्रके सोलह हजारप्रमाण वल्लभा देवियां होती हैं। इसप्रकार चमरेन्द्रके, पांचों अग्रदेवियोंकी परिवार-देवियों और वल्लभा देवियोंको मिलाकर, सब देवियां छप्पन हजार होती हैं ॥१३॥
वल्लभा १६००० + सपरिवार अग्रमहिषी ४०००० = ५६००० ।
द्वितीय इन्द्रके पद्मा, पद्मश्री, कनकधी, कनकमाला, और महापद्मा, ये पांच अग्रदेवियां होती हैं । इनके विक्रिया आदिका प्रमाण पूर्वके समान अर्थात् प्रथम इन्द्रके समान ही जानना चाहिये ॥ ९४ ॥
नागेन्द्रोंमेंसे (भूतानन्द और धरणानन्दमेंसे) प्रत्येकके पांच अग्रदेवियां और दश हजार वल्लभायें होती हैं । शेष विक्रिया आदिका प्रमाण पहिले जैसा ही है ॥ ९५ ॥
अग्रदेवी ५, वल्लभा १००००, सपरिवार अग्रदेवी ४००००, समस्त ५००००।
गरुडेन्द्रों से प्रत्येकके चार हजार वल्लभायें होती हैं । शेष कथन पूर्वके समान ही यहांपर भी करना चाहिये ॥ ९६ ॥
अ. दे. ५, वल्लभा ४०००, सपरिवार अ. दे. ४००००, समस्त ४४००० ।
शेष इन्द्रों से प्रत्येकके पांच अग्रदेवियां, और उनमें से प्रत्येकके अपनेको सम्मिलित कर छह हजार परिवार-देवियां होती हैं ।। ९७ ॥ अ. दे. ५, परि. दे. ६००० ४५ = ३०००० ।
द्वीपेन्द्रादिकोंकी देवियोंमेंसे प्रत्येकके मूल शरीरके साथ विविधप्रकारके रूपोंसे छह हजारप्रमाण विक्रिया होती है ॥ ९८ ।।
१द वा. २ द वा. ३ दब गरुणिंदाणं... ४ दबदेविंद. ५ द वरविवणा, ब वारविव्वणा.
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