________________
--२. २९१ ]
बिदुओ महाधियारो
[ ९९
चउवीस महत्ताणि सत्त दिणा एक पक्ख मासं च। दोचउछम्मालाई पढमादो जम्ममरणअंतरयं ॥ २८७
मु २४, दि , दि १५, मा १, मा २, मा ४, मा ६ ।
। जम्मणमरणाणतरकालपमाणं सम्मत्तं । स्यणादिणारयाणं णियसंखादो यसंखभागमिदा । पडिसमयं जायंते तेत्तियमेत्तों य मरंति पुढं ॥ २८८
२३ । १२२ । १०३ । ६२ । ३२ । ५२।(?)
। उप्पणमरणाण परिमाणवण्णणा सम्मत्ता । णिकता णिरयादो गन्भेसुं कम्मसंणिपजत्ते । णरतिरिएK जम्मदि "तिरियचिय चरमपुढवीए ॥ २८९ वालेसुं दादीसु पक्खीसुं जलचरेसु जाऊणं । संखेजाउगजुत्ता तेई णिरएसु वच्चंति ॥२९० केसवबलचकहरा ण होति कइयावि णिरयसंचारी। जायते तित्थयरा तदीयखोणीय परियंतं ॥ २९१
चौबीस मुहूर्त, सात दिन, एक पक्ष, एक मास, दो मास, चार मास और छह मास यह क्रमसे प्रथमादिक पृथिवियोंमें जन्म-मरणके अन्तरका प्रमाण है ॥ २८७ ।।
प्र. पृ. में मुहूर्त २४; द्वि. पृ. दि. ७; तृ. पृ. दि. १५, च. पृ. मा. १; पं. पृ. मा. २;ष. पृ. मा. ४; स. पृ. मा. ६।
इसप्रकार जन्म-मरणके अन्तरकालका प्रमाण समाप्त हुआ।
रत्नप्रभादिक पृथिवियोंमें स्थित नारकियोंके अपनी संख्याके असंख्यातवें भागप्रमाण नारकी प्रत्येक समयमें उत्पन्न होते हैं और उतने ही मरते भी हैं ॥ २८८ ॥
• इसप्रकार एक समयमें उत्पन्न होनेवाले व मरनेवाले जीवोंका कथन समाप्त हुआ।
नरकसे निकले हुए जीव गर्भज, कर्मभूमिज, संज्ञी, एवं पर्याप्त ऐसे मनुष्य और तियंचोंमें ही जन्म लेते हैं। परन्तु अन्तिम पृथिवांसे निकला हुआ जीव केवल तिर्यंच ही होता है, अर्थात् मनुष्य नहीं होता ॥ २८९ ॥
नरकोंसे निकले हुए उनमेंसे कितने ही जीव व्यालों (सादिकों) में, डाढों अर्थात् तीक्ष्ण दांतोंवाले व्याघ्रादिक पशुओंमें, गृद्धादिक पक्षियोंमें, तथा जलचर जीवोंमें जाकर और संख्यात वर्षकी आयुसे युक्त होकर पुनः नरकोंमें जाते हैं ।। २९० ॥
नरकमें रहनेवाले जीव वहांसे निकलकर नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र और चक्रवर्ती कदापि नहीं होते। तीसरी पृथिवीतकके नारकी जीव वहांसे निकलकर तीर्थंकर हो सकते हैं ॥२९१ ॥
१ द सम्मत्ता. १ द तेत्तियमेत्ताए. ३ द ३२५५२।. ४ द ब उपज्ज, ६ द बवालीसुं. ७द दालीसुं.
५ द तिरियचिय.
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org