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________________ ९२ ] तिलोयपण्णत्ती [२. २३९ चोइस दंडा सोलसजुत्ताणि दोसयाणि पव्वाणि । एक्कारसभजिदाई लोलाणामम्मि उच्छेहो ॥ २३९ . दं १४, २१६] एकोणसट्टि हत्था पण्णरस अंगुलाणि णव भागा । एक्कारसेहिं भजिदा लोलयणामम्मि उच्छेहो ॥ २५० ह ५९, अं १५ मा ९] पैण्णरसं कोदंडा दो हत्था बारसंगुलाणि च । अंतिमपडले थणलोलगम्मि बिदियाय उच्छेहो ॥ २४१ दं १५, ह २, अं १२ । एक धणू दो हत्ाँ बावीसं अंगुलाणि दो भागा । तियभजिदा णादव्वा मेघाए हाणिवुढीओ ॥ २४२ ___1, ह २, अं २२ भा २/ सत्तरसं चावाणिं चोत्तीसं अंगुलाणि दो भागा। तियभजिदा मेघाए उदओ तत्तिंदयम्मि जीवाणं ॥ २४३ ध १७, अं ३४ भा २| एक्कोणवीस दंडा अट्ठावीसंगुलाणि तिदिहाणि । सीदिंदयम्मितदियक्षोणीए णारयाण उच्छेहो ॥२४४ ध १९, अं २० लोल नामक पटलमें शरीरका उत्सेध चौदह धनुष और ग्यारहसे भाजित दोसौ सोलह अंगुलमात्र है ॥ २३९ ॥ लोल प. में दं. १४, अं. २१.६ ( १९११ ). लोलक नामक पटलमें नारकियोंके शरीरकी उंचाई उनसठ हाथ, पन्द्रह अंगुल और ग्यारहसे भाजित अंगुलके नौ भागप्रमाण है ॥ २४० ॥ लोलक प. में ह. ५९, अं. १५,९. द्वितीय पृथिवीके स्तनलोलक अन्तिम पटलमें पन्द्रह धनुष, दो हाथ और बारह अंगुलप्रमाण शरीरका उत्सेध है ॥ २४१ ॥ स्तन प. में दं. १५, ह. २, अं. १२. मेघा पृथिवीमें एक धनुष, दो हाथ, बाईस अंगुल और तीनसे भाजित एक अंगुलके दो भागप्रमाण हानि-वृद्धि जानना चाहिये ॥ २४२ ॥ दं. १, ह. २, अं. २२३ हा. वृ. मेघा पृथिवीके तप्त इन्द्रकमें जीवोंके शरीरका उत्सेध सत्तरह धनुष, चौंतीस अंगुल और तीनसे भाजित अंगुलके दो भागप्रमाण है ॥ २४३ ॥ तप्त प. में दं. १७, अं.३४३. तीसरी पृथिवीके शीत इन्द्रकमें नारकियोंका उत्सेध उन्नीस धनुष और तीनसे भाजित अट्ठाईस अंगुलमात्र है ॥ २४४ ॥ शीत प. में दं. १९, अं. २८ ( ९३ ). १ ब पणरस. २ ब पण्णरस. ३ ब घणलोलगम्मि. ४ द हत्थ. ५ द णादवो. ब णायव्वो. ६ द वड्डीओ. ७ द तिहिदाणं. ८ द तसिदिदियंमि, ब तसिदिदयमि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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