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________________ ८८ ] तिलोय पण्णत्ती [ २.२१६ सत्ततिछदंडद्दत्थं गुलाणि कमसो हवंति धम्माए । चरिमिंदयम्मि उदभो दुगुणो दुगुणो य सेसपरिमाणं ॥ २१६ दं ७, ६३, अं ६ । दं १५, ह २, अं १२ । दं ३१, ६ १ । दं ६२, ह २ । दं १२५ । दं २५० | दं ५०० । रयणप्पहपुत्थीए उदओ सीमंतणामपडलम्मि | जीवाणं इत्थतियं सेसेसुं हाणिवडीओ ॥ २१७ ह ३ | आदी अंते सोहिय रूऊणिदाहिदम्मि हाणिचया । मुहसहिदे खिदिसुद्धे नियणियपदरेसु उच्छेहो ॥ २१८ हाणियाण पमाणं धम्माए होंति दोण्णि हत्थाई । अहंगुलाणि अंगुलभागो दोहिं विद्दत्तो यै ॥ २१९ ह २ । अं ८ । भा १ एकधणुमेक्कहत्थो सत्तरसंगुलदलं च णिरयम्मि । इगिदंडों तियहत्था सत्तरसं अंगुलाणि रोरुगए ॥ २२० दं १, ह १, अं १७ । दं १, ह ३, अं १७ 9217 २ घर्मा पृथिवीके अन्तिम इन्द्रकमें नारकियोंके शरीरकी उंचाई सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल है । इसके आगे शेष पृथिवियोंके अन्तिम इन्द्रकोंमें रहनेवाले नारकियों के शरीरकी उंचाईका प्रमाण उत्तरोत्तर इससे दुगुणा दुगुणा होता गया है ॥ २१६ ॥ धर्मा पृ. में शरीरकी उंचाई दं. ७, ह. द. ३१, ह. १, अंजना दं. ६२, ६. २; अरिष्टा दं. ३, अं. ६; वंशा दं. १५, ह. २, अं. १२; मेघा १२५; मघवी दं. २५०; माघवी दं. ५०० । रत्नप्रभा पृथिवीके सीमन्त नामक पटलमें जीवोंके शरीरकी उंचाई तीन हाथ है । इसके आगे शेष पटलोंमें शरीरकी उंचाई हानि-वृद्धिको लिये हुए है ॥ २१७ ॥ सीमंत उंचाई हृ. ३ । अन्तमेंसे आदिको घटाकर शेषमें एक कम अपने इन्द्रकके प्रमाणका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना प्रथम पृथिवीमें हानि-वृद्धिका प्रमाण है । इसे उत्तरोत्तर मुखमें मिलाने अथवा भूमि से कम करनेपर अपने अपने पटलों में उंचाईका प्रमाण ज्ञात होता है || २१८ ॥ उदाहरण - अन्त ७ धनु. ३ हा. ६ अं; आदि ३ हा ; इसे हाथोंमें परिवर्तित करके ३११ - ३ ( १३ - १ ) = २ हा ८३ अं. हानि-वृद्धि | - घर्मा पृथिवीमें इस हानि - वृद्धिका प्रमाण दो हाथ, आठ अंगुल और एक अंगुलका दूसरा भाग ( ३ ) है ॥ २१९ ॥ हा. २, अं. ८३ । प्रथम पृथिवीके निरय नामक द्वितीय पटल में एक धनुष एक हाथ और सतरह अंगुल के आधे अर्थात् साढ़े आठ अंगुलप्रमाण, तथा रौरुक पटलमें एक धनुष, तीन हाथ और सत्तरह अंगुल प्रमाण शरीरकी उंचाई है ॥ २२० ॥ Jain Education International नरक प. में दं. १, हा. १, अं. १, रौरुक प. में दं. १, ह. ३, अं. १७ । ; द सेसचरिमाणं. २ द ओदओ. ३द दोहि वित्थो य. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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