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________________ ८२] तिलोयपण्णत्ती [२. १८४ अट्ठाणउदी जोयणचउदालसयाणि छस्सहस्सधणू । धूमप्पहपुढवीए सेढीबद्धाण विचालं ॥ १८४ ४५९८ । दंड ६०००। अट्टाणउदी णवसयछसहस्सा जोयणाणि मघवीए । दोणि सहस्साणि धणू सेढीबद्घाण विच्चालं ॥१८५ ६९९८ । दंड २०००। णवणउदिसहिदणवसयतिसहस्सा जोयणाणि एक्ककला । तिहिदा य माधवीए सेढीबद्धाण विच्चालं ॥१८६ ३९९९ । । सटाणे विच्चालं एदं जाणिज तह परहाणे । जे इंदयपरठाणे भणिदं तं एत्थ वत्तव्वं ॥ १८७ णवरि विसेसो एसो ललंकयअवधिठाणविच्चाले । जोयणयद्वच्छब्भागूणं सेढिबद्धाण विच्चालं ॥१८८ । सेढीबद्धाण विश्वाल समत्तं । छक्कदिहिदेकणउदीकोसोणा छसहस्सपंचसया । जोयणया धम्माए पइण्णयाणं हवेदि' विच्चालं ॥ १८९ ६४९९ । को १।१७ । णवणउदीजुदणवसयदुसहस्सा जोयणाणि वंसाए । तिण्णिसयदंडयाण उड्डेण पइण्णयाण विच्चालं ॥ १९० २९९९ । दंड ३००। धूमप्रभा पृथिवीमें श्रेणीबद्ध बिलोंका अन्तराल चवालीससौ अटानबै योजन और छह हजार धनुष है ।। १८४ ॥ ४४९८ यो. ६००० दण्ड । मघवी पृथिवीमें श्रेणीबद्ध बिलोंका अन्तराल छह हजार नौसौ अटानबै योजन और दो हजार धनुष है ॥ १८५ ॥ ६९९८ यो. २००० दण्ड । __माधवी पृथिवीमें श्रेणीबद्ध बिलोंका अन्तराल तीन हजार नौसौ निन्यानबै योजन और एक योजनके तीसरे भागप्रमाण है ॥ १८६ ॥ ३९९९१ यो.। यह जो श्रेणीबद्ध बिलोंका अन्तराल है उसे खस्थानमें समझना चाहिये। तथा परस्थानमें जो इन्द्रक बिलोंका अन्तराल कहा जाचुका है, उसीको यहां भी कहना चाहिये। किन्तु विशेषता यह है कि लल्लंक और अवधिस्थान इन्द्रकके मध्यमें जो अन्तराल कहा गया है उसमेंसे अर्ध योजनके छह भागोंमेंसे एक भाग कम यहां श्रेणीबद्ध बिलोंका अन्तराल जानना चाहिये ॥ १८७-१८८ ॥ इसप्रकार श्रेणीबद्ध बिलोंका अन्तराल समाप्त हुआ। धर्मा पृथिवीमें प्रकीर्णक बिलोंका अन्तराल, इक्यानबैमें छहके वर्गका भाग देनेपर जो लब्ध आवे, उतने कोस कम छह हजार पांचसौ योजनप्रमाण है ॥ १८९ ॥ यो. ६५०० - (११x१) = यो. ६४९९, को. ११४ वंशा पृथिवीमें प्रकीर्णक बिलोंका ऊर्ध्वग अन्तराल दो हजार नौसौ निन्यानबै योजन और तीनसौ धनुषप्रमाण है ॥ १९० ॥ २९९९ यो. ३००० दण्ड । १ ब अठाणणउदी. २ द इंदयपरणाणे, ब इंदयवरठाणे. ३ द ब जोयणयाचं. ४ ब सम्मत्तं. ५द हुवेदि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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