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________________ ८०] तिलोयपण्णत्ती [२. १७०ऐक्को हवेदि रज्जू छब्बीससहस्सजोयणविहीणा । थणलोलुगस्स तत्ता इंदयदो हादि विचाले ॥ १७० ७। रिण २६०००। तिणि सहस्सा दुसया जोयणउणवण्ण तदियपुढवीए । पणतीससयधणूणि पत्तेकं इंदयाण विञ्चालं ॥ १७१ ३२४९ । दंड ३५००। एक्को हवेदि रज्जू बावीससहस्सजोयणविहीणा । दोणं विचालमिणं संपजलिदारणामाणं ॥ १७२ । रिण जो २२०००। तिणि सहस्सा छस्सयपण्णैटीजोयणाणि पंकाए। पण्णत्तरिसयदंडा पत्तेकं इंदयाण विच्चाले ॥ १७३ ३६६५ जो। दंड ७५००। एक्को हवेदि रज्जू अट्ठारससहस्सजोयणविहीणा । खलखलतमिदयाणं दोणं विचालपरिमाणं ॥ १७४ रिण जो १८...। चत्तारि सहस्साणि चउसयणवणवदिजोयणाणि पि । पंचसयाणि दंडा धूमपहाइंदयाण विञ्चालं ॥ १७५ ४४९९ । दंड ५००। चोइससहस्सजोयणपरिहीणा होदि केवलं रज्जू । तिमिसिंदयस्स हिमइंदयस्स दोषणं पि विञ्चाले ॥ १७६ ७॥रिण जो १४०००। ___ वंशा पृथिवीके अन्तिम इन्द्रक स्तनलोलुकसे मेघा पृथिवीके प्रथम इंद्रक तप्तका अंतराल छब्बीस हजार योजन कम एक राजुप्रमाण है ॥ १७० ॥ २६००० यो. कम १ रा.।। . तीसरी पृथिवीके प्रत्येक इन्द्रक बिलका अन्तराल तीन हजार दो सौ उनचास योजन और पैंतीससौ धनुषप्रमाण है ॥ १७१ ॥ ३२४९ यो. ३५०० दण्ड । तृतीय पृथिवीका अन्तिम इंद्रक संप्रज्वलित और चतुर्थ पृथिवीका प्रथम इंद्रक आर, इन दोनों बिलोंका अन्तराल बाईस हजार योजन कम एक राजुप्रमाण है ॥ १७२ ॥ २२००० यो. कम १ रा. पंकप्रभा पृथिवीके इन्द्रक बिलोंका अन्तराल तीन हजार छहसौ पैंसठ योजन और पचहत्तरसौ दण्डप्रमाण है ॥ १७३ ॥ ३६६५ यो. ७५०० दण्ड । चतुर्थ पृथिवीका अन्तिम इन्द्रक खल-खल और पांचवीं पृथिवीका प्रथम इन्द्रक तम, इन दोनों बिलोंके अन्तरालका प्रमाण अठारह हजार योजन कम एक राजु है ॥ १७४ ।। १८००० यो. कम १ रा.। धूमप्रभाके इन्द्रक बिलोंका अन्तराल चार हजार चारसौ निन्यानबै योजन और पांचसौ दण्डप्रमाण है ॥ १७५ ॥ ४४९९ यो. ५०० दण्ड । ___ पांचवीं पृथिवीका अन्तिम इन्द्रक तिमिश्र और छठी पृथिवीका प्रथम इन्द्रक हिम, इन दोनों बिलोंका अन्तराल चौदह हजार योजन कम एक राजुप्रमाण है ॥ १७६ ॥ १४००० यो. कम. १ रा.। १ ब एका. २ द ब धणलोलुगस्स तत्तिं. ३ द ब छस्सट्टी. ४ द ब जोयणाविहीण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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