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________________ बिंदुओ महाधियारो [७ . बत्तीस लक्खाणि छस्सयसोलससहस्सछासट्टी । दोणि कला तिविहत्सा वासो तणइंदए होदि ॥ १२२ ३२१६६६६।२। इकतीसं लक्खाणि पणुवीससहस्सजोयणाणि पि । मणइंदयस्स संदं णादव बिदियपुढवीए ॥ १२३ ३१२५०००। तीसं विय लक्खाणि तेत्तीससहस्सतिसयतेत्तीसा । एक्ककला बिदियाए वणइंदयरुंदपरिमाणं ॥ १२४ ३०३३३३३ ।। एकोणतीसलक्खा इगिदालसहस्सछसयछासट्ठी । दोणि कला तिविहत्ता घार्दिदयणामवित्थारो ॥ १२५ २९४१६६६ । २। अट्ठावीसं लक्खा पण्णाससहस्सजोयणाणिं पि । संघातणामइंदयवित्थारो बिदियपुढवीए ॥ १२६ २८५००००। सत्तावीस लक्खा अडचण्णसहस्सतिसयतेत्तीसा । एक्ककला तिविहत्सा जिभिर्दयरुंदपरिमाणं ॥१२७.. २७५८३३३।। ... तनक नामक द्वितीय इन्द्रकका विस्तार बत्तीस लाख सोलह हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ १२२ ॥ ३३०८३३३३ - ९१६६६३ = ३२१६६६६३ । ___ द्वितीय पृथिवीमें मन नामक तृतीय इन्द्रकका विस्तार इकतीस लाख पच्चीस हजार योजनप्रमाण जानना चाहिये ॥ १२३ ॥ ३२१६६६६३ -- ९१६६६३ = ३१२५०००। द्वितीय पृथिवीमें वन नामक चतुर्थ इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण तीस लाख तेतीस हजार तीनसौ तेतीस योजन और योजनका एक तृतीय भाग है ॥ १२४ ॥ ३१२५००० - ९१६६६२ = ३०३३३३३३ । घात नामक पंचम इन्द्रकका विस्तार योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागसहित उनतीस लाख इकतालीस हजार छहसौ छयासठ योजनप्रमाण है ॥ १२५ ।। .. ३०३३३३३३ - ९१६६६१ = २९४१६६६३ । द्वितीय पृथिवीमें संघात नामक छठवे इन्द्रकका विस्तार अट्ठाईस लाख पचास हजार योजनप्रमाण है ॥ १२६ ॥ २९४१६६६२ - ९१६६६३ = २८५००००। जिल नामक सातवें इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण सत्ताईस लाख अठ्ठावन हजार तीनसौ तेतीस योजन और एक योजनके तीसरे भागप्रमाण है ॥ १२७ ॥ २८५०००० - ९१६६६३ = २७५८३३३ । १ द लक्खाणं पुणुवीस'. २ द व पण्णरस. ३ द ब दिमिदय. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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