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________________ ७०] तिलोयपण्णत्ती सगतीस लक्खाणि छासट्ठिसहस्सछसयछासट्ठी । दोणि कला तियभजिदा रुंदो तत्तिंदये होदि ॥ ११६ .. ३७.६६६६६ । २। .. छत्तीसं लक्खाणं जोयणया पंचहत्तरिसहस्सा । तसिदिदयस्स रुंदं णादव्य पढमपुढवीए ॥ ११७... १६७५००० पणतीसं लक्खाणिं तेसीदिसहस्सतिसयतेत्तीसा । एक्ककला तिविहत्ता रुंदं वक्रतणामम्मि ॥ ११८ ३५८३३३३।१। चउतीसं लक्खाणि ईगिणउदिसहस्सछसयछासट्ठी । दोण्णि कला तियभजिदा एस यवकंतणामम्मि ॥ ११९ ३४९१६६६ । २। ... चोत्तीसं लक्खाणि जोयणसंखा य पढमपुढवीए । विकंतणामइंदयवित्थारो एत्थ णादवो ॥ १२० रा एक्या " .. ३४०००००। तेत्तीसं लक्खाणि असहस्साणि तिसयतेत्तीसा । एककला बिदियाए थणेइंदयरुंदपरिमाणं ॥ १२१ ३३०८३३३ ।। तप्त नामक नववे इन्द्रकका विस्तार सैंतीस लाख छयासठ हजार छहसौ छयासठ योजन और योजनके तीन भार्गोमेंसे दो भाग है ॥ ११६ ॥ ३८५८३३३१-९१६६६३ = ३७६६६६६२ । प्रथम पृथिवीमें त्रसित नामक दशवें इन्द्रकका विस्तार छत्तीस लाख पचहत्तर हजार योजनप्रमाण जानना चाहिये ॥ ११७ ॥ ३७६६६६६२ - ९१६६६२ = ३६७५००० । वक्रान्त नामक ग्यारहवें इन्द्रकका विस्तार पैंतीस लाख तेरासी हजार तीनसौ तेतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे एक भाग है ॥ ११८ ॥ ३६७५००० -- ९१६६६३ = ३५८३३३३३ । अवक्रान्त नामक बारहवें इन्द्रकका विस्तार चौंतीस लाख इक्यानबै हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागों से दो भागप्रमाण है ॥ ११९॥ ३५८३३३३३ - ९१६६६३ = ३४९१६६६३ । प्रथम पृथिवीमें विक्रान्त नामक तेरहवें इन्द्रकका विस्तार चौंतीस लाख योजनप्रमाण जानना चाहिये ॥ १२० ॥ ३४९१६६६३ - ९१६६६२ = ३४००००० । द्वितीय पृथिवीमें स्तन नामक प्रथम इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण तेतीस लाख आठ हजार तीनसौ तेतीस योजन और योजनके तीन भागोंमेंसे एक भाग है ॥ १२१ ।। __ ३४००००० - ९१६६६३ = ३३०८३३३३ । ___ १ द बासटि. २ द इगणउदि'. ३ द ब विक्कतंणामाइयवित्थारो. ४ द ठिदियाए. ५ द यलहंदय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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