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तिलोयपण्णत्ती
[२.७५
तेरसएक्कारसणवसगपंचतियाणि होति गच्छाणि । सम्वत्थुत्तरमटुं सेविधणे सम्वपुढवीणं ॥ ७५ पदवगं चयपहदं दुगुणिदगच्छेण गुणिमुहजुत्तं । वडिहदपदविहीणं दलिदं जाणिज संकलिदं ॥ ७६ चत्तारि सहस्साणि य चउस्सया वीस होति पढमाए । सेढिगदा बिदियाए दुसहस्सा छस्साण चुलसीदी॥ ७७
४४२० । २६८४ । चोइससयकाहत्तरि तदियाए तह य सत्त सया । तुरिमाए सटिजुदं दुसयाणि पंचमीए णायच ॥.७४
१४७६ । ७००।२६० । सट्ठी तमप्पहाए चरिमधरित्तीए होंति चत्तारि । एवं सेढीबद्धा पत्तेकं सत्तखोणीसु ॥७९
६०।४। । चउरूबाई आदि पचयपमाणं पि अट्टरूवाई। गच्छस्स य परिमाणं हवेदि एकोणपण्णासा ॥८.
४।८।४९।
तेरह, ग्यारह, नौ, सात, पांच, और तीन; यह सब पृथिवियोंके ( पृथक् पृथक् ) श्रेणीधनको निकालनेके लिये गच्छका प्रमाण है; चय सब जगह आठ ही है ॥ ७५ ॥
पदके वर्गको चयसे गुणा करके उसमें दुगुणे पदसे गुणित मुखको जोड़ देनेपर जो राशि उत्पन्न हो उसमेंसे चयसे गुणित पदप्रमाणको घटाकर शेषको आधा करनेपर प्राप्त हुई राशिके प्रमाण संकलित धनको जानना चाहिये ॥ ७६ ॥
उदाहरण-- ( १ ३ २ x ८ ) + ( १३ x २ x २९२१) - ( ८ x १३) = ८८४ . = ४४२० प्रथम पृथिवीगत श्रेणीबद्ध बिलोंका कुल प्रमाण.
___ पहिली पृथिवीमें चार हजार बीस; और दूसरीमें दो हजार छहसौ चौरासी श्रेणीबद्ध बिल हैं || ७७ ।। ४४२०; २६८४ ।
तृतीय पृथिवीमें चौदहसौ छ्यत्तर, चौथीमें सातसौ और पांचवींमें दोसौ साठ श्रेणीबद्ध बिल हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ ७८ ॥ १४७६; ७००; २६० ।
तमःप्रभा पृथिवीमें साठ और अन्तिम अर्थात् महातमःप्रभा पृथिवीमें चार श्रेणीबद्ध बिल हैं । इसप्रकार सात पृथिवियोंमेंसे प्रत्येकमें श्रेणीबद्ध बिलोंका प्रमाण समझना चाहिये ॥ ७९ ॥ ६०; ४।
( रत्नप्रभादिक पृथिवियोंमें संपूर्ण श्रेणीबद्ध बिलोंका प्रमाण निकालनेके लिये ) आदिका प्रमाण चार, चयका प्रमाण आठ और गच्छका प्रमाण एक कम पचास होता है ।। ८० ॥
आदि ४ चय ८; गच्छ ४९ ।
१द बचयपहिदं. २ द ब मुवजुत्तं. ३ ब चट्टिहद . ४ ब छसयाण. ५ द ब पंचमिए होदि . णायव्वं. ६ द ब खोणीए.
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