SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुद्रित पाठ १३ जिनदर्शनमें...आसक्त मैं २१ आ...वृत्तान्त २६ अब्रह्मण्यं...उस २८ मोरनी ३३ हमारी...जीवन २ विमान, हाथी २ साथ चले। १. उतरकर...किया । १७ चिघाट ८ हिन्दी अनुवाद संबोधन पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ ... पठितव्य पाठ उद्देश-७८ जिन दर्शन के प्रसंग में मैं ३९ पास....हूँ। पास शीघ्रगामी दूत भेजे जा रहे हैं। तुम्हारे पुत्र के पास जाकरके मैं १७ आकाशमें...सब विभीषण की आज्ञा से आकाश में . वृत्तान्त स्थित सब अधर्म करनेवाले उस सिहिनी १८ सब शिल्पियोंने सब दक्ष शिल्पियोंने समाचार देकर तुमने हमारी माताओं ५० विशाल xनिकाल दो को जोवन ५. ऐसे मण्डप ऐसे विस्तीर्ण मण्डप उद्देश-७९ विमान, रथ, हाथी, १८ तथा...बन्दीजनोंकी तथा वाद्यों को आवाज और बन्दीसाथ साकेतपुरी को चले । जनों को जहाँ रूपवतों के पिता सम्यगृहाधि हुई एक दूसरे की बातचीत भी १८ हुई...थे। राजा कुलिशकणे रहते हैं। नहीं सुन सकते थे। उतरकर भरतने हर्ष के साथ उनको भर्घ दिया । ३. जीव...विशाल जीव देवों का अति अद्भुत और चिंघाड विशाल उद्देश-८० xनिकाल दो। . शय्यागृहमें...आसन सिंह को धारण करनेवाली शय्या थी और आसन लक्ष्मण के वैभषके विस्तारके बारेमें १२ करोड़ से...कुल करोड़ से अधिक कुल धन एवं रत्नों तुम चेष्टा पूर्वक सुनो। से परिपूर्ण होकर साकेतपुरा में लक्ष्मणके नन्द्यावर्त २४ किपाक...हैं । किपाकफल के समान भोग हैं। आवास स्थान था । ५२ पद्यावती...मन पद्मावती आदि युवतियों मन. उनका निवास ६१ वनों को बाजार को प्रासाद जैसा था, ऊँचा था और सब दिशाओं ६२ दर्पका...दूसरे दर्पसे आच्छादित होकर दूसरे का अवलोकन करने वाला था। ६. हाथी...स्मरण हाथी प्रशान्त हृदयसे अतीत जन्म उसमें पर्वतसदृश ऊँचा वर्द्धमान नामक का स्मरण विचित्र प्रेक्षागृह या ७. यह...ब्रह्मलोमें यह ब्रह्मोत्तर कल्प में उद्देश-८१ जवसे क्षुब्ध होकरके वह हाथी शान्त हुभा है तबसे उद्देश-८२ वह तापस उसकी रक्षा करेगा । १०६ सफेह सफेद (वसु और पर्वतक की श्रुति से !) ११३ धैर्य मुख गर्भसे लोगों का आनन्द रूप वह ११९ चन्द्र कुलकर चन्द्र, कुलंकर विभू नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । १२० क्षुब्ध जोर से शुन्ध कभी तपश्चरण करके उस १२० लोहे के खम्मे को बाँधने के खेमे को १ विशाल शोभावाले १ लक्ष्मण के बारे में २ तुम सुनो। २ लक्ष्मणने...नन्द्यावर्त २ प्रासाद बनवाया । १ यह प्रासाद ५ बेसा....थी। ५ उसमें...था ८ जबसे...तबसे ३१ वह बच जायगा । ३३ ऋक्... श्रुति से ६८ गर्भसे... गया । १.२ कभी मरकर उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy