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________________ ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन मुद्रित पाठ . २३ सुन्दर चैवर ३३ करते है। पठितव्य पाठ संभाषण करके तथा विकसित नयनवाले ५ अमोघविद्या .९ प्रसन्नता के साथ ३८ जीभ...भौति फल की भांति नहीं हैं...करें ? हाथीरूपी ३ पुत्रों के वैरियों को ८ ग्रामसमूह ३२ मन्दोदरीने मन्त्री से xनिकाल दो नामके मन्त्रीने जताया कि २ देवोंको...जो ५ रामसे कहा ५ आप...पकड़ें। १६ उन्हे ललचाओ। २३ भयसे...पद्मखण्डमें पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ सुन्दर श्वेत चंवर ३५ सम्भाषण करनेवाली करता है। ४० तपा...मुखवाले उद्देश-६५ अमोघविजया सामूहिक रूप से १२ नहीं है... करे? जीभ वसूले से काटे गये ढीले ४६ मद...हाथीरूपी उद्देश-६६ सोये हुए वैरियों को ३२ यमदण्डनामकी ग्राम के मुखिये, ३५ नामको मन्दोदरीने यमदण्डनामक मन्त्रोपे ३५ जताया गया कि उद्देश-६७ देवोंका भी भंजन करनेवाली जो ४४ किया...अनुकम्पा रामसे इस प्रसंग में। १६ वशमें... नहीं साधता? आप सहसा ही पकड़ लें। उन्हें आन्दोलित कर दो। भयसे अन्य महिला मनमें जल्दी करती हुई भी अपने बड़े बड़े नितम्बों के कारण बड़ी मुश्किल से, पद्मखण्ड में तुम मेरी एक बात सुनो। ४७ आप...देखे। उद्देश-६८ ध्वनि के साथ चल पडें । २९ हाथ में...विशुद्ध कक्ष (खण्ड) में २९ । (२८) उन्होंने स्पर्श करते हुए तथा वाणीसे ३. वह माला उस उस कुमार ने उसके हाथ से अक्ष- ३. । (२९-३०) माला को छीन कर उसे तोड़ डाला, ३४ पीटने लगा। फिर शीघ्र ही उसे जोड़ दी और ५. छड़कर ...गया । हँसते हुए वापिस लौटा दो । (२८) उद्देश-६९ मुनिसुव्रत __ ५१ करने लगे। अपने अपने वेत्रासनों पर बैठे जो सुवर्णमय थे तथा श्रेष्ठ छोटे छोटे गहों और चादरों सहित थे । ५५ शृङ्गार रसमें ऐसा सोचकर ५८ कान्ति से . उद्देश-७० वलय, कुण्डल ३३ तब उसने ऐसा कहा हो यदि भरत राजा के जैसा भी हो ३४ पुरुषवर, पुण्डरीक आय, फिर ४५ कृशोदरी किया है और तुम उसके ऊपर अनुकम्पा अन्यथा (अब भी) अत्यन्त दर्पयुक्त दशवदन साधा नहीं (वशमें नहीं किया) जाता है, फिर बहुरूपिणी विद्या के अपने वश में आ जाने के बाद तो कैसे (साध्य होगा)? आप देखते रहें। १. तुम...सुनो। हाथ में वह विशुद्ध ३ ध्वनि से...थे। १. दरवाजे में १७ छ छ...वाणी से ३८ ...... कण्ठी को उस पीड़ित करने लगा। छोड़कर वह अनद राम के सभा क्षेत्र में चला गया । - मुनि सुव्रत १४ अपने अपने...पर बैठे । करने लगे । बड़े बड़े वृक्ष टूटने लगे और पहाड़ों के शिखर गिरने लगे । (५१) वीर रसमें कीर्ति से १२ ऐसा कहकर २ सोने के कुण्डल, १५ हो...फिर ऐसा कहने पर उसने कहा पुरुषवरपुण्डरीक कृशोदरी ! तुम उठो, हे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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