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________________ मुद्रित पाठ ७६ यदि शत्रु ... अथवा ७६ करके... उसके साथ ८१ मिलने वाला... चाहिए १२७ अत्यन्त... रावण ने १ करके... इन्द्र के १ आ पहुँचे १२ उत्तम विमान में २ विष एवं दात के प्रयोका ३१ गुनी होते हैं, ३५ पाँच... मनुष्य ३८ मानवभव प्राप्त ३८ तथा जो ३८ वह... है ३९ ही सर्वोत्तम ४५ वह... देता । ४६ कि कुशास्त्रोंका ५० जोगोदान ९ भारवर्ष के १२ एकत्रित करके १६ आदि पुत्रों को २. हरिणनाथ ५ जो प्राणियों के... देवोंके और उस मुनि के पास जाते हुए १२ जो दुष्ट जो रागी, दुष्ट जो पाप जनक क्रियाएँ करते हैं, १३ जो अत्यन्त असंयमी होते हैं, १९ आज्ञा का... हैं, २७ यशस्वी पुत्र ३३ जिनालयों में ५३ कहा कि मित्र को १२ कर और उत्तर Jain Education International पठितव्य पाठ दिन शत्रु द्रव्य मौर बल (सायन) में तुल्य हो अथवा करके उसके साथ । मिलने वाला राज्य सुख चैन नहीं देता । समस्त राक्षस सैन्य प्रचण्ड ताप की ऊष्मा से आकुलित हो गया तब रावण ने ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन मुद्रित पाठ १३४ पुरुषगात्र पर १३५ चपल... वे दोनों १३७ दिव्य.... राहु से करके इन्द्रके भा पहुँचे, प्रतिहार द्वारा निवेदित करने पर रावण को देखा । उत्तम उद्यान में आज्ञा देनेवाले (अधिकारी) हैं, विष एवं योगचूर्ण के प्रयोक्ता गुणी होते हैं यदि वह xमिकाल दो ही लोक में सर्वोत्तम कोई पाँच अणुव्रतों से युक्त होकर तो कोई अकामनिर्जरा से, इस प्रकार से मनुष्य मानवभव तथा देवगति प्राप्त भारतवर्ष के हरण करके पुत्रों को हरिणाम (हरिण्याम) विख्यात कीर्तिबाला पुत्र जिनालयों की उद्देश - १२ वह अत्यन्त परिश्रम करने पर भी कोई फल नहीं देता । कि कुलिंगी (पाखण्डी) और कुशास्त्रों का जो गोदान कहा कि जगत में मित्र को हे प्रति उत्तर १३७ शून्य इन्द्रने... लिया । उद्देश - १४ देवों के २७ सहस्रभानु के २८ सहस्रभानु ने ४५ असे... तुम्हारी ५१ हलों के फलों से ५३ सोना तो भारम्भ परिग्रह का ५६ निरुपम अङ्गोपांग ६१ सब देव काम ६२ जो दूसरे देव ६५ धर्म को... उद्यमशील ७८ भाँति होते ८० धीर गम्भीर ८३ चन्द्रको... बर खाते हैं। 1 [११] कृत्रिम हाथी... फेरी ९.१ चमरीगाव के... आसनवाळे १०४ वैसे ही... जाता है । १३० सुखरूपी सागर में उद्देश - १५ ७५ दान करने में ७८ स्त्री पर... बह ८३ करनेवाला तथा ९२ क्योंकि वह... नहीं है । १०० किन्तु चारों १०० भाववाले... है For Private & Personal Use Only पठितव्य पाठ अप्रिम गात्रों पर. चै निपुण एवं दक्ष ने दोनों अपने हाथी को मोड़कर रावण ने उसे शीघ्र हौ दिव्य वस्त्र से बांध लिया । उस समय वह 2 राहु शून्य हो गया । १३९ सहसमा (भग) के सहस्रभाग (भग) ने उसका अभि से जलाने का निश्चय जान कर तुम्हारी हल और कुलिकों से खोना तो भयदायी और आरम्भ परि प्रका अक्षत भङ्गोपांग सब देव कषाययुक्त और काम जो ये देव धर्म का आचरण करते हैं और उनकी प्रतिमाओं की पूजा में उद्यमशील भाँति निवर होते धीर और महान् चन्द्रको भाच्छादित कर मेघ के समान बरसने लगते हैं। हाथी, वृषभ, शरभ, केसरी चमरीगाय के चित्रों से युक्त पवा वैसे ही सभी भव में मनुष्य-भव वयकि गुणों में वह सबसे श्रेष्ठ है । रति सागर में विदारण करने में स्त्री से विरक्त होकर वह करनेवाला, कुमुद्दों को मुकुलित करता हुआ तथा जिससे वह मेरे को अथवा अन्य को सदा के लिए इष्ट नहीं होगी । चारों भागवावे धर्म में एकाग्रचित बनो। www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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