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________________ ५५४ पउमचरियं [१०५. २२कस्सइ कालस्स तओ, विहरन्तो समणसङ्घपरिकिण्णो । अह नन्दिवद्धणमुणी, सालिग्गामं समणुपत्तो ॥ २२ ॥ तं चेव महासमणं, उज्जाणत्थं जणो निसुणिऊणं । सालिग्गामाउ तओ, वन्दणहेउं विणिप्फिडिओ ॥ २३ ॥ तं अग्गि-बाउभूई. द? पुच्छन्ति कत्थ अइपउरो । एसो जाइ जणवओ, सबाल-वुड्डो अइतुरन्तो ? ॥ २४॥ अन्नेण ताण सिटुं, उज्जाणे आगयस्स समणस्स । वन्दणनिमित्तहेडं, तस्स इमो जाइ गामजणो ॥ २५ ॥ अह ते जेट्ट-कणिट्टा, वायत्थी उवगया मुणिसयासं । जंपन्ति दोणि वि जणा, मुणीण पडिकुट्टवयणाई ॥२६॥ भो भो तुब्मे स्थमुणी!. जइ जाणह किंचि' सत्थसंबन्धं । तो भणह लोयमज्झे, अइरा मा कुणह वक्खेवं ॥२७॥ एक्कण मुणिवरेणं, भणिया तुब्भेहि आगया कत्तो ? । जंपन्ति आगया वि हु, सालिग्गामाओ अम्हेहिं ॥ २८ ॥ पुणरवि मुणोण भणिया, कवणाओ भवाओ आगया सुब्भे । एयं माणुसनम्मं ?, कहेह नइ अत्थि पण्डिच्चं ॥२९॥ तं ते अयाणमाणा, अहोमुहा लज्जिया ठिया विप्पा । ताहे ताण परभवं, कहिऊण मुणी समाढत्तो ॥ ३० ॥ गामस्स वणथलीए, इमस्स तुब्भे हि दोणि वि सियाला । आसि च्चिय परलोए, मंसाहारा बहुकिलेसा ॥३१॥ एत्थेव अत्थि गामे, पामरओ करिसओ गओ छेत्तं । मोत्तण य उवगरणं, तत्थ पुणो आगओ सगिह ॥३२॥ ते दो वि सियाला तं, उवगरणं खाइऊण कालगया । कम्मवसेणुप्पन्ना, पुत्ता वि हु सोमदेवस्स ॥ ३३ ॥ अह सो पभायसमए, पामरओ पत्थिओ नियं खित्तं । पेच्छइ दोण्णि सियालो, उवगरणं खाइऊण मए ॥३४॥ दिविए काऊण तओ, दोण्णि वि ते पत्थिओ निययगेहं । पामरओ कालगओ, जाओ गब्भम्मि सुण्डाए ॥३५॥ सरिऊण पुबनाई, मूगलं कुणइ तत्थ सो बालो । कह वाहरामि पुत्तं, तायं सुण्डं च जणणी हं ? ॥ ३६ ॥ जइ नत्थि पच्चओ मे, तो तं वाहरह एत्थ पामरयं । एयं चिय वित्तन्तं, जेण असेसं परिकहेमि ॥ ३७ ॥ वाहरिओ य मुणीणं, भणिओ जो आसि वच्छ पामरओ। सो हु तुमं दुकएणं, जाओ गब्भम्मि सुण्हाए ॥३८॥ धर्मके विरोधी थे। (२१) कुछ कालके बाद श्रमणसंघके साथ विहार करते हुए नन्दिवर्धनमुनि शालिग्राममें पधारे । (२२) वे महाश्रमण उद्यानमें ठहरे हैं ऐसा सुनकर लोग वन्दनके लिए उस शालिग्राममेंसे बाहर निकले । (२३) उस मानव-समूहको देखकर अग्निभूति और वायुभूतिने पूछा कि आबालवृद्ध यह अतिविशाल जनसमुदाय जल्दी-जल्दी कहाँ जा रहा है ? (२४) किसीने उनसे कहा कि उद्यानमें पधारे हुए श्रमणको वन्दन करने के लिए ये नगरजन जा रहे हैं। (२५) तब शास्त्रार्थकी इच्छावाले वे दोनों ज्येष्ठ और कनिष्ठ भाई मुनिके पास गये। वे दोनों ही मुनिसे प्रतिकूल वचन कहने लगे कि, अरे मुनियों! यदि तुम कुछ भी शास्त्रकी बात जानते हो तो लोगोंके बीच बोलो। अन्यथा बाधा मत डालो। (२६-२७) एक मुनिने उनसे पूछा कि तुम कहाँसे आये हो ? उन्होंने कहा कि हम शालिग्रामसे आये हैं । (२८) पुनः मुनिने उनसे पूछा कि किस भवमेंसे इस मनुष्यभवमें आये हो यह, यदि पाण्डित्य है तो, कहो । (२६) उसे न जाननेसे वे ब्राह्मण लज्जित हो मुँह नीचा करके खड़े रहे। तब उन्हें मुनि परभव कहने लगे । (३०) इस गाँवकी वनस्थलीमें तुम दोनों परभवमें मांसाहारी और बहुत दुःखी सियार थे। (३१) इसी गाँवमें प्रामरक नामका एक किसान रहता था। वह खेत पर गया और वहाँ उपकरण छोड़कर पुनः अपने घर पर आया । (३२) वे दोनों सियार उस उपकरणको खाकर मर गये। कर्मवश वे दोनों सोमदेवके पुत्र रूपसे उत्पन्न हुए। (३३) सुबह के समय वह प्रामरक अपने खेत पर गया और उपकरणको खाकर मरे हुए दोनों सियारोंको देखा । (३४) उन दोनोंका प्रेतकर्म करके वह अपने घर पर गया। मरने पर प्रामरक अपनी पुत्रवधूके गर्भ में उत्पन्न हुआ। (३५) पूर्वजन्म याद करके उस बालकने मौन धारण किया कि मैं पुत्रको पिता और पुत्रवधूको माता कैसे कहूँ ? (३६) यदि तुम्हें विश्वास नहीं है तो उस प्रामरकको यहाँ बुलाओ जिससे यह सारा वृत्तान्त मैं कह सुनाऊँ। (३७) मुनिने उसे बुलाया और कहा कि, हे वत्स! जो प्रामरक था वही तुम दुष्कृतकी वजहसे पुत्रवधूके गर्भसे पैदा हुए हो। (३८) राजा भृत्य होता है और भृत्य राजत्व पाता है। १..चि अस्थ.-प्रत्य० । २. गओ खित्तं-प्रत्य० । ३. तो दो-मु.। ४. जणणीयं-प्रत्य०। ५. •कहेइ-प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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