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________________ १००.३] १००. लवणं कुससमागमपव्वं ६७ ॥ ६८ ॥ तं रिउबलं महन्तं, संवट्टेऊण गयघडानिवहं । पविसन्ति वरकुमारा, हलहर - ऽनारायणंतेणं ॥ केसरि-नागारिधए, दट्ट्ट्ण लंब-ऽङ्कुसा रणुच्छाहा । एक्केकैमाणदोणि वि, जेट्ट-कणिट्ठाण आवडिया ॥ उट्ठियमेत्तेण रणे, लवेण रामरस' सोहघयचावं । छिन्नं रहो य भग्गो, बलपरिहत्थेण वीरेणं ॥ ६९ ॥ I अन्नं रहं विलग्गो, अन्नं धणुवं च राहवो घेत्तुं । संधेइ जाव बाणं, ताव लवेणं कओ विरहो ॥ ७० ॥ आरुहिऊण नियरहे, वज्जावत्तं गहाय धणुरयणं । रामो लवेण समयं जुज्झइ पहरोह विच्छडुडं ॥ ७१ ॥ पउमस्स लवस्स जहा, वट्टइ जुज्झं रणे महाघोरं । तह लक्खण-ऽङ्कुसाणं, तेणेव कमेण नायबं ॥ ७२ ॥ अन्ना वि जोहाणं, एवं अणुसरिसविक्कमचलाणं । नसमग्गयाण सेणिय !, आवडियं दारुणं जुज्झं ॥ एवं महन्तदढसत्तिसुनिच्छयाणं, संमाणदाणकय सामियसंपयाणं । जुझं भडाण बहुत्थपडन्तघोरं जायं निरुद्धनिवयं विमलंसुमग्गं ॥ ७४ ॥ ७३ ॥ ।।इइ पउमचरिए लवण- ऽङ्गसजुज्झविहाणं नाम नवनउयं पव्यं समत्तं ॥ १००. लवणं- कुससमागमपव्वं तो मँगहनराहिब !, जुज्झविसेसे परिष्फुडं ताणं । जुज्झं कहेमि संपइ, सुणेहि लव- रामपमुहाणं ॥ १ ॥ सिग्घं लबस्स पासे, अवट्टिओ वज्जनङ्घनरवसभो । भामण्डलो विय कुसं, अणुगच्छइ बलसमाउत्तो ॥ २॥ रामस्स कयन्तमुहो, अवट्टिओ सारही रहारूढो । तह लक्खणस्स वि रणे, विराहिओ चेव साहीणो ॥ ३ ॥ हाथियोंके समूहसे युक्त उस बड़े भारी शत्रुसैन्यको त्रस्त करके ये दोनों कुमारवर राम और लक्ष्मणके समीप आ पहुँचे । (६७) सिंह और गरुड़की ध्वजावाले राम-लक्ष्मण को देखकर युद्ध में उत्साहशील लवण और अंकुश दोनों बड़े और छोटे भाई में से एक-एकके साथ जुट गये । (६८) युद्ध में खड़े होते ही बली और वीर लवणने रामका सिंह ध्वजाके साथ धनुष काट डाला और रथ तोड़ डाला । (६६) दूसरे रथ पर सवार हो और दूसरा धनुष लेकर राम जैसे ही बारा टेकने लगे वैसे ही लवणने उन्हें रथहीन बना दिया । ( ७० ) अपने रथ पर सवार हो और धनुपरत्न वस्त्रावर्त हाथ में लेकर राम लवण के साथ जिसमें आयुधों का समूह फेंका जा रहा है ऐसा युद्ध लड़ने लगे । (७१) राम और लवणका युद्धक्षेत्र में जैसा महाभयंकर युद्ध हो रहा था वैसा ही युद्ध उसी क्रमसे लक्ष्मण और अंकुशके बीच भी हो रहा था ऐसा समझना चाहिए। ( ७२ ) हे श्रेणिक ! यशकी चाह रखनेवाले समान विक्रम और बलशाली दूसरे योद्धाओं के बीच भी दारुण युद्ध होने लगा । (७३) इस तरह महती शक्ति और दृढ़ निश्चयवाले तथा सम्मान-दान के कारण स्वामी की सम्पत्ति बढ़ानेवाले सुभटोंके बीच बहुत से शस्त्रोंके गिरनेसे भयंकर तथा राजाओं एवं निर्मल आकाशको निरुद्ध करनेवाला युद्ध हुआ । (७४) ॥ पद्मचरितमें लवण एवं अंकुशका युद्धविधान नामक निन्नानवेयाँ पर्व समाप्त हुआ || १००. हे मगध नरेश ! उधर जब विशेष रूपसे मैं विस्पष्टरूपसे कहता 1 उसे भामण्डल भी अंकुशका अनुगमन १. ०कमणा दो० – मु० । परिफुडं ते मु० | 'तुम सुनो । (१) करने लगा । (२) २. ०स सहधयं Jain Education International ५१५ लवण और अंकुशका समागम युद्ध चल रहा था तब लवण और राम आदिके बीच जो युद्ध हुआ वह लवणके पास शीघ्र ही वनजंघ राजा उपस्थित हुआ । बलसे युक्त रथ पर आरुढ़ कृतान्तवदन रामका सारथी हुआ । उसीप्रकार युद्धमें चावं - - मु० । ३. धीरेण प्रत्य० । ४. महाणरा० प्रत्य० । ५. विसेसेण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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