SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६. १८] ९९.लवणं-ऽकुसजुज्झपन सयले य समक्खाए, वित्तन्ते नारओ गओ तुरियं । पुण्डरियपुरं गन्तुं, पेच्छइ लवण-ऽकुसे भवणे ॥ ३ ॥ 'संपुइओ पविट्ठो, भणइ तओ नारओ कुमारवरे । जा राम-लक्खणसिरी, सा तुभं हवउ सविसेसा ॥ ४ ॥ काऊण समालावं, खणमेकं नारओ कुमाराणं । साहेइ य वित्तन्तं, कयन्तवयणाइयं सर्व ॥ ५ ॥ तं नारयस्स वयणं, सुणिऊण लव-ऽकुसा परमरुट्टा । जंपन्ति समरसज्ज, कुणह लहुँ साहणं सर्व ॥ ६ ॥ पउमस्सुवरि पयट्टे, पुत्ते दट्टण तत्थ वइदेही । रुवइ ससंभमहियया, दइयस्स गुणे अणुसरन्ती ॥ ७ ॥ सीयाएँ समीवत्थो, सिद्धत्थो भणइ नारयं एत्तो । एस कुडुम्बस्स तुमे, भेओ काउं समाढत्तो ॥ ८ ॥ सिद्धत्थं देवरिसी, भणइ न जाणामि हं इमं कजं । नवरं पुण एत्थ गुणो, दीसइ सत्थो तुमं होहि ॥ ९ ॥ सुणिऊण य रुयमाणिं, जणणि पुच्छन्ति दोण्णि वि कुमारा । अम्मो! साहेहि लहु, केण तुम एत्थ परिभूया ॥१०॥ सीया भणइ कुमारे, न य केणइ एत्थ रोसिया अहयं । नवरं रुयामि संपइ, तुम्ह पियं सरिय गुणनिलयं ॥११॥ भणिया य कुमारेहिं, को अम्ह पिया ? कहिं वि सो अम्मो? । परिवसइ किंच नामं?, एयं साहेहि भूयत्थं ॥१२॥ जं एव पुच्छिया सा, निययं साहेइ उन्भवं सीया । रामस्स य उप्पत्ती, लक्खणसहियस्स निस्सेसं ॥ १३ ॥ दण्डारण्णाईय, नियहरणं रावणस्स वहणं च । साएयपुरिपवेस, जणाववायं निरवसेसं ॥ १४ ॥ पुणरवि कहेइ सीया, जणपरिवायाणुगेण रामेणं । नेऊण उज्झिया है, अडवीए केसरिरवाए ॥ १५ ॥ गयगहणपविटेणं, दिट्टा हं वज्जनङ्घनरवइणा । काऊण धम्मबहिणी, भणिऊण इहाणिया नयरं ॥ १६ ॥ एवं नवमे मासे, संपत्ते सवणसंगए चन्दे । एत्थेव पसूया हं, तुन्भेहिं राहवस्स सुया ॥ १७ ॥ तेणेह लवणसायर-परियन्ता वसुमई रयणपुण्णा । विज्जाहरेहि समयं, दासिब वसीकया सबा ॥१८॥ पर नारद फौरन पौण्डरिकपुर गया और भवनमें लवण एवं अंकुशको देखा (३)। पूजित नारदने प्रविष्ट होकर कुमारोंसे कहा कि राम और लक्ष्मणका जो सविशेष ऐश्वर्य है वह तुम्हारा हो। (४) एक क्षणभर बातचीत करके नारदने कुमारोंसे कृतान्तवदन आदिका सारा वृत्तान्त कह सुनाया। (५) नारदका वह कथन सुनकर अत्यन्त रुष्ट लवण और अंकुशने कहा कि यद्ध के लिए शीघ्र ही सारी सेनाको तैयार करो। (६) रामके ऊपर पुत्र आक्रमण करनेवाले हैं यह देखकर भयसे युक्त हदयवाली सीता पतिके गुणोंको याद करके रोने लगी। (७) तब सीताके समीपमें रहे हुए सिद्धार्थने नारदसे कहा कि तुम इस कुटुम्बमें भेद डालने के लिए प्रवृत्त हुए हो । (6) देवर्षि नारदने कहा कि मैं यह कार्य नहीं जानता। फिर भी इसमें शभ दिखाई पड़ता है, अतः तुम स्वस्थ हो । (६) माता को रोती सुन दोनों कुमारोंने पूछा कि, मां! तुम जल्दी ही कहो कि तुम्हारा किसने अपमान किया है ? (१०) सीताने कुमारोंसे कहा कि किसीने मुझे कुपित नहीं किया। मैं तो इस समय केवल गुणके धामरूप तुम्हारे पिता को याद करके रोती हूँ। (११) कुमारोंने पूछा कि, माता जी! हमारे पिता कौन हैं? वे कहाँ रहते हैं? उनका नाम क्या है? यह सच सच कहो। (१२) इस प्रकार पूछने पर उस सीताने अपने उद्भव और लक्ष्मण सहित रामकी उत्पत्तिके बारे में सब कुछ कहा । (१३) उसने दण्डकारण्यमें अपना अपहरण, रावणका वध, साकेतपुरीमें प्रवेश तथा लोगोंका अपवाद आदि समग्र वृत्तान्त कह सुनाया। (१४) सीताने पुनः कहा कि जन-परिवादको जानकर रामने सिंहकी गर्जनाओंसे व्याप्त जंगलमें मुझे छोड़ दिया था। (१५) हाथियोंको पकड़नेके लिए प्रविष्ट वनजंघ राजा द्वारा मैं देखी गई। धर्मभगिनी बनाकर और कहकर बादमें मैं यहाँ लाई गई। (१६) इस तरह नौ महीने पूरे होने पर श्रवण नक्षत्रके साथ जब चन्द्रमाका योग था तब रामके पुत्र तुम्हें मैंने यहाँ जन्म दिया। (१७) विद्याधरोंके साथ उन्होंने लवणसागर तक फैली हुई तथा रत्नों से परिपूर्ण सारी पृथ्वी दासीकी भाँति वशमें की है। (१८) अब लड़ाई छिड़ने पर या तो तुम्हारी या फिर रामकी अशोभनीय बात .१ संपूइओ-मुः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy