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________________ १२.२] ६२. सीयाजिणपूयाडोहलपव्वं ४८३ अट्ठाइज्जा उ सया, लक्खणपुत्ताण गुणमहन्ताणं । साहेमि ताण मज्झे, कइवइयाणं तु नामाइं॥ १९ ॥ वसहो धरणो चन्दो, सरहो मयरद्धओ मुणेयबो । हरिणाहो य सिरिधरो, तहेव मयणो कुमारवरो ॥ २० ॥ अह ताण उत्तमा जे, अट्ठ जणा सिरिधरस्स अङ्गरुहा । जाण सहावेण जणो, गुणाणुरत्तो धिई कुणइ ॥ २१ ॥ भह सिरिधरो त्ति नाम, दोणघणसुयाएँ नन्दणो वीरो । पुत्तो रूवमईए, पुहईतिलओ तिलयभूओ ॥ २२ ॥ कल्लाणमालिणीए, मङ्गलंनिलओ सुओ पवररूवो । विमलप्पहो त्ति नाम, पुत्तो पउमावईए वि ॥ २३ ॥ पुत्तो वणमालाए, अज्जणविक्खो त्ति नाम विक्खाओ। अइविरियस्स सुयाए, तणओ वि य हवइ सिरिकेसी ॥ २४ ॥ नामेण सबकित्ती, अभयमइसुओ सुरो ब रूवेणं । इयरो सुषासकित्ती, मणोरमाकुच्छिसंभूओ ॥ २५ ॥ सो वि रूवमन्ता, सबे बलविरियसत्तिसंपन्ना । पुहइयले विक्खाया, पुत्ता लच्छीहरस्सेए ॥ २६ ॥ ते देवकुमारा इव, अन्नोन्नवसाणुगा घणसिणेहा । साएयपुरवरीए, अच्छन्ति सुहं अणुहवन्ता ॥ २७ ॥ अह अद्धपञ्चमाओ, कोडीओ सबनिवइपुत्ताणं । सोलस चेव सहस्सा, राईणं बद्धमउडाणं ॥ २८ ॥ एवं तिखण्डाहिवइत्तणं ते, पत्ता महारज्जसुहं पसत्थं । गमेन्ति कालं वरसुन्दरीसु, सेविजमाणा विमलप्पहावा ॥२९॥ ॥ इइ पउमचरिए राम-लक्खणविभूइदसणं नाम एकाणउयं पव्वं समत्तं ।। ९२. सीयाजिणपूयाडोहलपव्वं अह अन्नया कयाई, भवणत्था महरिहम्मि सयणिज्जे । सीया निसावसाणे, पेच्छइ सुविणं नणयधूया ॥ १ ॥ सा उग्गयंमि सूरे, सबालंकारभूसिया गन्तुं । अंत्थाणिमण्डवत्थं, पुच्छइ दइयं कयषणामा ॥ २ ॥ कतिपयके नाम कहता हूँ। (१६) वृषभ, धरण, चन्द्र, शरभ, मकरध्वज, हरिनाथ, श्रीधर तथा कुमारवर मदनको तुम जानो । (२०) ढाई सौमेंसे लक्ष्मणके ये आठ उत्तम कुमार थे जिनके स्वभावसे गुणानुरक्त लोग धीरज धारण करते थे। (२१) द्रोणघनकी पुत्री विशल्याका श्रीधर नामका वीर पुत्र था। रूपमतीका पुत्र पृथ्वीतिलक तिलकरूप था। (२२) कल्याणमालाका पुत्र मंगलनिलय अत्यन्त रूपवान् था। पद्मावतीका विमलप्रभ नामका पुत्र था। (२३) वनमालाका विख्यात पुत्र अर्जुनवृक्ष था। अतिवीर्यकी पुत्रीका लड़का श्रीकेशी था। (२४) अभयवतीका सर्वकीर्ति नामका पुत्र रूपमें देव जैसा था। दूसरा मनोरमाकी कुक्षिसे उत्पन्न सुपार्श्वकीर्ति था। (२५) लक्ष्मणके ये सभी पुत्र रूपवान्, बल, वीर्य एवं शक्तिसे सम्पन्न तथा पृथ्वीतल पर विख्यात थे। (२६) एक दूसरेका अनुसरण करनेवाले और अत्यन्त स्नेहयुक्त वे देवकुमार जैसे सुखका अनुभव करते हुए साकेतपुरीमें रहते थे। (२७) सब राजाओंके साढ़े चार करोड़ पुत्र और मुकुटधारी सोलहहजार राजा वहाँ रहते थे। (२८) इस प्रकार तीन खण्डोंका आधिपत्य और विशाल राज्यका उत्तम सुख प्राप्त करके सुन्दर स्त्रियों द्वारा सेवा किये जाते तया विमल प्रभाववाले वे काल व्यतीत करते थे। (२६) ॥ पद्मचरित में राम एवं लक्ष्मणकी विभूतिका दर्शन नामक इक्यानवेवाँ पर्व समाप्त हुआ। एक दूसरेका अनुसरण कम हजार राजा वहाँ रहत करते हुए साकेतपुरीमें रहने ९२. जिनपूजाका दोहद __ कभी एक दिन महलमें रही हुई जनकपुत्री सीताने महाघ शैया में रात्रिके अवसानके समय एक स्वप्न देखा । (१) सूर्योदय होने पर सव अलंकारों से विभूषित उसने जा करके और प्रणाम करके सभामण्डपमें स्थित पतिसे पूछा कि हे नाथ! १. लतिलओ-प्रत्य० । २. ०पहासा-मु०। ३. अत्थाणम० --प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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