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ग्रन्थ-समर्पण
दीक्षाग्रहणकाल से ही जो मेरे साथी बने और अद्यावधि जिन्होंने मेरा विनयपूर्वक सम्मान किया, 'सिरिपुहइचंद' (श्रीपृथ्वीचंद्र) चरितादि विविध ग्रन्थरत्नों के संपादनादिकार्य में जिन्होंने उद्यम किया तथा जो विवेकबुद्धि-संपन्न हैं ऐसे श्रीहंसविजयजी के प्रशिष्य और श्रीसंपतविजयजी के शिष्य 'पंन्यास'उपाधिधारक गुणवान मुनि श्रीरमणीकविजय के करयुगल में 'पउमचरिय' का यह द्वितीय भाग
कृतज्ञ मुनि पुण्यविजय के द्वारा समर्पित किया जाता
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