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________________ पउमचरियं [५.६१. उप्पन्ना य गणहरा, नवई समणा नवोणयं लक्खं । संनम-सीलधराणं, गुणरिद्धिविसेसपत्ताणं ॥ ६१ ।। सगरचक्रिचरितम्तियसंजयस्स पुत्तो, बीओ चिय विजयसायरो नामं । तस्स वि य होइ भज्जा, सुमङ्गला रूवसंपन्ना ॥ ६२ ॥ तीए गब्भम्मि सुओ. जाओ सगरो त्ति नाम विक्खाओ। चोदसरयणाहिवई, संपत्तो चक्कवट्टित्तं ॥ ६३ ॥ एयन्तरम्मि सेणिय ! जं वत्तं तं सुणेहि एगमणो । अत्थि इहं वेयड्डे, रहनेउरचक्कवालपुरं ॥ ६४ ॥ विजाहराण राया. पण्णघणो नाम तत्थ विक्खाओ । अह मेघवाहणो से, पुत्तो गुणरूवसंपन्नो ॥ ६५ ॥ उत्तरसेढीऍ ठियं, नयरं चिय गयणवलहं नाम । परिवसइ तत्थ राया, सुलोयणो खेयराहिवई ॥ ६६ ॥ तस्स य सहस्सनयणो, पुत्तो धूया य रूवसंपन्ना । तं चेव पवरकन्नं, पुण्णघणो मग्गए पयओ॥ ६७ ॥ बहुसो जाइज्जन्ती, न य दिन्ना तेण तस्स सा कन्ना । नेमित्तियवयणेणं, सगरनरिन्दस्स उद्दिट्टा ॥ ॥ ६८ ॥ कन्नानिमित्तहेर्ड, पुण्णघण-सुलोयणाण आभिट्ट । जुझं महन्तघोरं रहवर-गय-तुरय-पाइक्कं ।। ६९ ॥ नाव य पहरसमिद्धं, दोण्ह वि जुझं उइण्णसेण्णाणं । ताव य सहस्सनयणो, घेत्तृण सहोयरी नट्ठो ॥ ७० ॥ हन्तूण समरमज्झे, सुलोयणं पविसिऊण नयरम्मि । कन्नं अपेच्छसाणो, पुण्णघणो आगओ सपुरं ॥ ७१ ॥ ताव य सहस्सणयणो, अपहुप्पन्तो बलेण परिहीणो । अच्छइ अरण्णमझे. कालक्खेवं पडिक्खन्तो ।। ७२ ।। ताव य आसेण हिओ, चक्कहरो आणिओ तमुद्देसं । तस्स चिय निययभइणी, सहस्सनयणेण से दिन्ना ॥ ७३ ॥ महिलारयण मणहरं, दहण नराहिवो सुपरितुद्यो । विज्जाहरस्स निययं, देइ समिद्धं महारज्जं ॥ ७४ ॥ महाप्रातिहार्य भी पैदा हुए । (६०) उनके नब्बे गणधर तथा संयम एवं शोलधारी और गुणी व विशेष ऋद्धिवाले एक लाखमें नौ कम अर्थात् ९९,९९१ साधु थे। (६१) सगर चक्रवर्तीका वर्णन त्रिदशंजयके दूसरे पुत्रका नाम विजयसागर था। उसकी रूपसंपन्न पत्नीका नाम सुमंगला था। (६२) उसके गर्भसे सगर नाकका एक सुविख्यात पुत्र हुआ। चौदह रत्नोंके अधिपति उसने चक्रवर्ती पद प्राप्त किया । (६३) हे श्रेणिक ! इस बीच जो कुछ घटित हुआ वह तुम एकाग्र मनसे सुनो। इस वैतान्य पर्वतमें रथनूपुर-चक्रवालपुर नामका एक नगर है। (६४) वहाँ विद्याधरोंका पूर्णचन नामका एक प्रख्यात राजा था। उसका गुण एवं रूपसे सम्पन्न मेघवाहन नामका एक पुत्र था। (६५) वैताव्यपर्वतकी उत्तरश्रेणीमें गगनवल्लभ नामका एक नगर था और उसमें खेचराधिपति सुलोचन नामका राजा रहता था। (६६) उसका पुत्र सहस्रनयन था और उसे एक रूपवती पुत्री भी थी। पूर्णघनने उस उत्तम कन्याकी मँगनी को। (६७) बहुत याचना करनेपर भी उसने वह कन्या उसे नहीं दी और ज्योतिषियोंके कथनके अनुसार सगर राजाको देनेका सोचा । (६८) कन्याके कारण पूर्णघन और सुलोचनके बीच रथ, हाथी, अश्व एवं पैदल सैन्यके साथ अत्यन्त घोर युद्ध हुआ। (६९) विजय रूपी फल प्राप्त करनेकी इच्छावाले दोनों सैन्योंके बीच इधर एक प्रहरतक युद्ध होता रहा, उधर सहस्रनयन अपनी बहनको लेकर भाग गया। (७०) लड़ाई में सुलोचनको मारकर नगरमें प्रवेश करनेपर पूर्णघन कन्याको न देखकर अपने नगरको लौट आया । (७१) इधर असमर्थ एवं बलसे (शक्ति अथवा सेनासे) हीन सहस्रनयन भी अवसरकी प्रतीक्षा करता हुआ अरण्यमें रहने लगा । (७२) एक दिन अश्वके द्वारा ले जाया गया चक्रवर्ती सगर उस प्रदेशमें आ पहुँचा। सहस्रनयनने भी अपनी बहन उसे दी। (७३) राजा मनोहर महिलारत्नको देखकर अत्यन्त सन्तुष्ट हुआ। बदले में उसने भी एक समृद्ध महाराज्य विद्याधरको दिया । (७४) १. बहुसो वि जाइजंती-प्रत्य.। २. पुणो वि सो आगो सघरं-प्रत्य.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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