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पउमचरियं
[२. ११९:
बरकमलनिबद्धा निम्गयालीसमत्ता, महुरसरनिनायाच्चन्तरम्मा पदेसा । तरुपवणवलम्गा पुष्फरेणुं मुयन्ता, विमलकिरणमन्ताइच्चभासा विसुद्धा ॥ ११९ ।। ॥ इय पउचरिए सेणियचिन्ताविहाणो नाम बिईयो समुदेसओ समत्तो ।
३. विज्जाहरलोगवण्णणं मेणिकस्य गौतमपार्श्व गमनम् , पृच्छा च
अत्थाणिमण्डवत्थो, सबालंकारभूसियसरीरो । सामन्तमउडमोत्तिय–किरणसमुज्जलियपावीढो ॥१॥ सो तत्थ मगहराया, मुणिदरिसणकारणे कउच्छाहो। आरुहइ वरगइन्दं, परिहत्थं लक्खणपसत्थं ॥ २ ॥ अह निग्गओ पुराओ, गयवररहजोहतुरयपरिकिण्णो । वच्चइ नरिन्दवसहो, जत्थऽच्छइ गोयमो भयवं ॥ ३ ॥ पत्तो य तं पएसं, मुणिवरगणसङ्घमज्झयारम्मि। पेच्छइ गणहरवसह, सरयरविं चेव तेएणं ॥ ४ ॥ ओयरिय गयवराओ, काऊण पयाहिणं मुणिं राया। पणमइ पहट्ठमणसो, अञ्जलिमउलं सिरे काउं ॥ ५॥ दिन्नासीस च्चिय सो, उवविट्ठो मुणिवरस्स पामूले। देहकुसलाइ सबं, पुच्छइ परमेण विणएणं ॥ ६ ॥ नाऊण य पत्थावं, पुणरवि विणओवयारसंजुत्तो। संसयतिमिरावहरं, - अह पुच्छइ गोयमं राया ॥ ७ ॥ पउमचरियं महायस !, अहयं इच्छामि परिफुडं सोउं । उप्पाइया पसिद्धी, कुसत्थवादीहि विवरीया ॥ ८॥ जइ रावणो महायस!, निसायरो सुरवरो व अइविरिओ। कह सो परिहूओ चिय, वाणरतिरिएहि रणमझे ॥९॥
रामेण कणयदेहो. सरेण भिन्नो मओ अरण्णम्मि । सुग्गीवसुतारत्थं, छिद्देण विवाइओ वाली ॥ १० ॥ वृक्ष पुष्पोंकी रज विखेर रहे थे और बिमल किरणोंवाले सूर्य के प्रकाशसे वह प्रदेश विशुद्ध प्रतीत होता था । ( ११९ ।
॥ पद्मचरितमें श्रेणिकचिन्ताविधान नामक दूसरा समुद्देशक पूर्ण हुआ ॥
३. विद्याधरलोकका वर्णन श्रेणिकका गौतमके पास जाना और पृच्छा
राजदरबारमें बैठा हुआ, सब प्रकारके अलंकारोंसे भूपित शरीरवाला तथा सामन्तोंके मुकुटोंकी मणियोंकी किरणोंसे जिसका पादमठ उज्ज्वल हो रहा है और जो मुनिवर भगवान् महावीरके दर्शनमें अत्यन्त उत्साहशील है ५सा मगधराज श्रेणिक चतुर एवं उत्तम लक्षणोंसे युक्त गजराज पर जा कर बैठा। (१-२) हाथी, रथ, योद्धा एवं घोड़ोंसे (अर्थात् चतुर्विध सेनासे । घिरा हुआ राजा नगरसे बाहर निकला और जहाँ भगवान् गौतम गणधर थे वहाँ पहुँचा । (३) वहाँ पर पहुँच कर उसने तेजमें शरत्कालीन सूर्य जैसे और गगधरोंमें श्रेष्ठ ऐसे गौतम गणधरको साधुओंके संघके मध्यमें देखा। (४) हाथी परसे नीचे उतरकर प्रसन्नमना राजाने प्रदक्षिणा देकर ओर मस्तक पर अंजलि जोड़कर मुनिवरको प्रणाम किया। (५)
आशीर्वाद प्राप्त करनेके पश्चात् वह मुनिवरके पैरों के पास जा बैठा और अत्यात विनयके साथ उनके शरीरको कुशलता आदि पूछने लगा। (६) 'अब श्रारम्भ करनेका समय है-ऐसा जानकर विनय एवं उपचारसे युक्त राजाने संशयरूपी अन्धकारको दूर करनेवाले गौतम गणधरसे फिर पूछा-“हे महायश ! मैं अत्यन्त स्पष्टरूपसे पद्मकी कथा सुनना चाहता हूँ, क्योंकि कुशास्त्रोंके उपदेशकोंने सत्यसे विपरीत रूपमें इसकी प्रसिद्धि की है। (७८) हे महाशय ! यदि रावण इन्द्र के तुल्य अत्यन्त बलशाली था तो बन्दर एवं तियचों द्वारा युद्धमें कैसे पराजित हुआ? (९) रामने सोनेकी देहवाले मृगको अरण्यमें अपने बाणसे क्यों मारा? सुग्रीव और सुताराके लिये रामने बालीको कपटसे क्यों मारा ?(१०) स्वगंमें जाकर और वहाँ युद्ध में
१. पादपीठः । २. कृतोत्साहः । ३. दक्षम् । ४. परियरियो-प्रत्य० । ५. पदमूले । ६. मृगः ।
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