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________________ ३७२ पउमचरियं अक्कोस-सारणाणं, जुझं सुय-सारणाण अभिट्ट । असि-कणय-चक्क-तोमर-संघट्टट्ठन्तजालोहं ॥ ८॥ निहओ च्चिय संतावो, मारीजिभडेण नन्दणेण जरो। पहओ सोहकडीणं, विग्यो उद्दामकित्तीणं ॥९॥ एए रणम्मि सुहडा, सोऊण विवाइया सभज्जाओ। रोवन्ति जाव कलुणं, ताव य अत्थंगओ सूरो ॥ १० ॥ सूरुग्गमम्मि पुणरवि, समुट्ठिया उभयसेन्नसामन्ता । सन्नद्धबद्धचिन्धा, गहियाउह-पहरणा-ऽऽवरणा ॥ ११ ॥ वज्जक्खो खवियारी, मइन्ददमणो विही य सम्भू य । हवइ सयंभू य तहा, चन्दको वजउयरो य ॥ १२ ॥ कोहभडेण रणमुहे. सहसा आयारिओ य खवियारी । अह सो मयारिदमणो, बाहुबलीणं समाहूओ ॥ १३ ॥ वजोयरेण निहओ, सद्लो गरुयसत्तिषहरेणं । कोवेण य खवियारी, सम्भू घाएइ य विसालं ॥ १४ ॥ विजओ य जट्ठिपहओ, मरणं चिय पाविओ सयंभूणं । एवं अन्ने वि भडा, घाइज्जन्ते निसियरेहि ॥ १५ ॥ वाणरकेऊण बलं, अवसीयन्तं रणे पलोएउं । सयमेव पवणपुत्तो, समुट्टिओ रहवरारूढ़ो ॥ १६ ॥ एन्तं दट्टण रणे, हणुयं जंपन्ति रक्खसा भीया । अज्ज इमो विहवाओ, काहिइ बहुयाउ महिलाओ ॥ १७ ॥ हणुयस्स सवडहुत्तो, समुट्ठिओ रक्खसुत्तमो माली । सरनिवहं मुञ्चन्तो, मेहो इव सलिलधाराओ॥ १८ ॥ सुणिसियखुरुप्पछिन्न, तं सरनिवहं खणेण काऊणं । भाइ मालिनरिन्दं, हणुओ सीहो इव गइन्दं ॥ १९ ॥ पविसरमुहो निरुद्धो, सहसा वज्जोयरेण पवणसुओ। छिन्नध्य-छत्त-कवओ, सो विय विरहो कओ सिग्धं ॥ २० ॥ अन्नं रहं विलग्गो, जुज्झन्तो सत्ति-सबल-सरेहिं । हणुयन्तेण रणमुहे, सो वि य वज्जोयरो निहओ ॥ २१ ॥ दट्टण तं विवन्नं, रुट्ठो लङ्काहिवस्स अङ्गरुहो । नामेण जम्बुमाली, आयारइ पवणपुत्तं सो ॥ २२ ॥ उट्ठियमेत्तेण तओ. रावणपुत्तेण अद्धयन्देणं । हणुयस्स कणयदण्डो, वाणरचिन्धो धओ च्छिन्नो ॥ २३ ॥ और सारणके बीच तथा शुक ओर सारणके बीच तलवार, कनक, चक्र व तोमरोंके संघर्षसे उठनेवाली ज्वालाओंसे व्याप्त ऐसा युद्ध होने लगा। (5) मारीचि भटने सन्तापको और नन्दनने ज्वरको मार डाला। उद्दाम कीर्तिवाले सिंहकटिने विघ्नको मार डाला । (९) युद्धमें इन सुभटोंका मारा जाना सुनकर उन उनकी भार्याएँ करुण स्वरमें जब रोने लगी तब सूर्य भी अस्त हो गया। (१०) सूर्योदय होने पर पुनः दोनों सैन्योंके सामन्त तैयार हो और ध्वजा फहराकर तथा आयुध, प्रहरण एवं कवच धारण करके उठ खड़े हुए। (११) वज्राक्ष, क्षपितारि, मृगेन्द्रदमन, विधि, शम्भु, स्वयम्भू, चन्द्रार्क, वञोदर-ये राक्षस सुभट युद्धके लिए तैयार हुए। (१२) युद्धमें क्रोधभटने सहसा क्षपितारिको ललकारा और बाहुबलीने मृगारिदमनका आहवान किया। (१३) शक्तिके भारी प्रहारसे वज्रोदरने शार्दूलको मार डाला। क्रोधभटने क्षपितारिका तथा शम्भुने विशालका घात किया । (१४) स्वयम्भूके द्वारा लाठीसे पीटा गया विजय मर गया। इस प्रकार दूसरे भी सुभटोंको राक्षसोंने मारा। (१५) वानरकेतु सुग्रीवके सैन्यका रणमें विनाश देख रथ पर आरूढ़ पवनपुत्र हनुमान स्वयं लड़नेके लिए तैयार हुआ। (१६) युद्ध में हनुमानको आते देख भयभीत राक्षस कहने लगे कि आज यह बहुत-सी स्त्रियोंको विधवा बनावेगा। (१७) बादलमेंसे गिरनेवालीं जलधाराओंकी भाँति बाणसमूह छोड़ता हुआ राक्षसोत्तम माली हनुमानके सम्मुख उपस्थित हुआ। (१८) तीक्ष्ण बाणोंसे उस बाणसमूहको क्षणभरमें छिन्न-भिन्न करके, जिस तरह सिंह हाथीका विनाश करता है उस तरह हनुमानने माली राजाका विनाश किया। (१६) सैन्यके आगे स्थित हनुमान सहसा वमोदरके द्वारा रोका गया। ध्वजा, छत्र और कवच जिसके छिन्न हो गये हैं ऐसा वह भी शीघ्र ही रथहीन बना दिया गया । (२०) दूसरे रथ पर सवार हो शक्ति, सव्वल और बाणोंसे युद्ध करते हुए उस वस्रोदरको हनुमानने युद्ध में मार डाला । (२१) उसे मरा देख लंकाधिप रावणके जम्बूमाली नामके पुत्रने क्रुद्ध हो हनुमानको ललकारा। (२२) उपस्थित होते ही रावणके पुत्रने अर्धचन्द्र बाणसे हनुमानकी सोनेके दण्ड तथा वानरचिह्नवाली ध्वजा काट डाली। (२३) उसका भी ध्वजदण्ड काटकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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