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पउमचरियं
- [५३.६६ ता हणह महामेरी, लहुं पराणेह सन्दणं अनियं । दुट्ठस्स तस्स गन्तुं, करेमि इह निम्गहं घोरं ।। ९६ ॥ एव परिभासमार्ण, तार्य विन्नवइ इन्दइकुमारो । एयस्स कए सामिय!, परितप्पसि किं तुम गाढं ? ॥ ९७ ॥ उप्पइउं दूरयरं, पणट्ठजोइसगणं दलियमेरुं । पल्हत्थेमि य सयल, भण ताय ! भुयासु तेलोक्कं ॥ ९८ ॥ नाऊण तस्स चित्त, ताहे आणवइ दहमुहो पुतं । तं गेण्हिऊण दुटुं, आणेह लहुं मह समीवं ॥ ९९ ॥ नमिऊण रावणं सो, गयवरजुत्तं रह समारूढो । सन्नद्धबद्धकवओ, बलेण सहिओ महन्तेणं ॥ १० ॥ अह मेहवाहणो वि य, रणपरिहत्थो गयं समारूढो । एरावणं विलम्गो, नज्जइ इन्दो सयं चेव ॥ १०१ ॥ रहवर-तुरङ्ग-वम्गिर-संघटुट्ठन्तगयघडाडोवं । चलियं इन्दइसेन्नं, बहुतूरसहस्सनिग्धोसं ॥ १०२ ।। नाव य खणन्तरेक, ताव य सन्नद्धबद्धतोणीरं । हणुवस्स निययसेन्नं, पराइयं दप्पियामरिसं ॥ १०३ ॥ दोसु वि बलेसु सुहडा, आवडिया रहसपसरिउच्छाहा । असि-कणय-चक्क-तोमर-सएसु घायन्ति अन्नोन्नं ॥१०४॥ अह ते पवङ्गमभडा, इन्दइसुहडेहि तिबपहरेहिं । पहया विभग्गमाणा, ओसरिया मारुई जाव ॥ १०५ ॥ निययबलपरिभवं सो, दट्टणं पवणनन्दणो रुट्ठो । अह जुज्झिउं पवत्तो, समय चिय इन्दइभडेहिं ॥ १०६ ॥
पयण्डदण्डसासणा, विइण्णहेमकरणा । चलन्तकण्णकुण्डला, सुवण्णबद्धसुत्तया ।। १०७ ।। विचित्तवत्थभूसणा, सुयन्धपुप्फसेहरा । सकुङ्कुमङ्गराइया, तिरीडदित्तमोत्तिया ॥ १०८ ॥ सचक्क-खम्ग-मोग्गरा, तिसूल-चाव-पट्टिसा । जलन्तसत्ति-सबला, महन्तकुन्त-तोमरा॥१०९ ।। ससामिकजउज्जया, पवङ्गघायदारिया । विमुक्कजीयबन्धणा, पडन्ति तो महाभडा ॥ ११० ॥ सहावतिक्खनक्खया, लेसन्तचारुचामरा । पवङ्गमाउहाहया, खयं गया तुरंगमा ॥ १११ ।।
मैं जा करके उस दुष्टका घोर निग्रह करूँगा। (६६) इस प्रकार कहते हुए पितासे इन्द्रजितकुमारने बिनती की कि, हे स्वामी ! इसके लिए आप इतना अधिक क्यों दुःख उठा रहे हैं ? (६७) हे तात ! यदि आप कहें तो अति दूर उड़कर सूर्य-चन्द्र
आदि ज्योतिर्गणको नष्ट कर दूँ, मेरुको पीस डालूँ और समग्र त्रिलोकको भुजाओंसे उठाकर फेंक दूं। (८) उसका मन देखकर रावणने पुत्रको आज्ञा दी कि उस दुष्टको पकड़कर जल्दी ही मेरे पास लाओ। (६६) रावणको नमस्कार करके तैयार हो ओर कवच बाँधकर वह विशाल सेनाके साथ हाथी जुते हुए रथ पर सवार हुआ। (१००) रणमें दक्ष मेघवाहन भी हाथी पर आरूढ़ हुआ। वह ऐरावत पर बैठे हुए स्वयं इन्द्रकी भाँति मालूम होता था। (१०१) रथ, उछलते हुए घोड़े तथा हाथियों के समूहसे उठनेवाली घटाके आटोपसे युक्त तथा हजारों वाद्योंके निर्घोषसे शब्दायमान ऐसी इन्द्रजितकी सेना चली। (१०२) क्षणभरमें हनुमानकी अपनी सेना भी तैयार होकर तथा तूणीर बाँधकर दर्प एवं क्रोधसे अभिभूत हो गई । (१०३) उत्कण्ठा और उत्साहसे भरे हुए दोनों सेनाओंके सुभट जुट गये और सैकड़ों तलवार, कनक, चक्र तोमरोंसे एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे। (१०४) इन्द्रजितके सुभटोंके तीव्र प्रहारसे आहत वानर-सुभट भागते हुए जहाँ हनुमान था वहाँ आये । (१०५) अपनो सेनाका पराभव देखकर रुष्ट हनुमान इद्रजितके सुभटोंके साथ लड़ने लगा । (१०६) प्रचण्ड शासनदण्ड धारण करनेवाले, सोनेके कंकण पहने हुए, कानोंमें हिलते हुए कुण्डलवाले, सोनेके सूत्र (करधोनी) बाँधे हुए, विचित्र वस्त्रोंसे अलंकृत, सुगन्धित पुष्प मस्तक पर धारण किए हुए, कुंकुमयुक्त अंगराग किये हुए मुकुटमें मोती लगाये हुए, चक्र खड्ग और मुद्गरसे युक्त, त्रिशूल, चाप और पट्रिश (शस्त्रविशेष) धारण करनेवाले, जलती हुई शक्ति और बछेसे युक्त, बड़े भारी भाले और तोमरवाले-ऐसे अपने स्वामीके कार्यके लिए उद्यत महाभट हनुमानके प्रहारसे क्षत हो प्राणोंके बन्धनका परित्याग करके गिरने लगे। (१०७-११०) स्वाभाविक रूपसे तीक्ष्ण नाखूनोंवाले, सुन्दर चामरोंसे शोभित और हनुमानके आयुधोंसे हत हाथी और घोड़े नष्ट होने लगे। (१११) हनुमानके द्वारा छिन्नमस्तकवाले, मस्तक फटने पर दीप्त
१. महाभेरिं--प्रत्य० । २
चलन्तचारु--प्रत्य० ।
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