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________________ ३५० पउमचरियं [५३. ४१एत्थन्तरे पवुत्ता, वयणं मन्दोयरी सुणसु बाले।। न य अत्थि वाणराणं, इमेण सरिसो महासुहडो ॥ ४१ ॥ जेण दसाणणपुरओ, वरुणेण समं कर्य महाजुझं । लद्धा अणङ्गकुसुमा, चन्दणहानन्दिणी तइया ॥ ४२ ॥ सयले वि जीवलोए, विक्खाओ वाणरद्धओ हणुओ। खिइगोयरेहि नीओ, दूयत्ते एरिसगुणो वि ॥ ४३ ॥ पडिभणइ तत्थ हणुओ, मन्दोयरि। किं न याणसि मुद्ध! । होयवं चेव सया, नरेण उवयारपरमेणं? ॥ ४४ ॥ मन्दोयरि ! गवमिणं, निस्सारं वहसि निययसोहगं । होऊण अग्गमहिसी, दूइत्तं कुणसि कन्तस्स ॥ ४५ ॥ दूयत्तणमल्लीणं, सीयाए कारणागयं एत्थ । जइ नाणइ दहवयणो, तो ते पाणेहि ववहरइ ।। ४६ ॥ मोत्तूण रावणं जे, पडिवन्ना राहवस्स भिच्चत्तं । ते मच्चुगोयरपहे, अहिट्ठिया वाणरा सबे ॥ ४७ ।। मन्दोयरीऍ वयणं, एयं सुणिऊण भणइ वइदेही । किं निन्दसि मह दइयं, खेयरि! जगविस्सुयं पउमं? ॥ ४८ ॥ वज्जावत्तधणुवरं, सुणिऊणं जस्स रणमुहे सुहडा । निस्सेसविगयदप्पा, भयजरगहिया वि कम्पन्ति ॥ १९ ॥ मेरु व धीरगरुओ, जस्स उ लच्छीहरो हवइ भाया । सो चेव समत्थो वि हु, रिऊण पक्खक्खयं काउं ॥ ५० ॥ किं नंपिएण बहुणा, संपइ रयणायरं समुत्तरिउ । एही मह भत्तारो, सहिओ चिय वाणरबलेणं ॥ ५१ ॥ पेच्छामि तुज्झ कन्तं, संगामे कइवएसु दियहेसु । मह नाहेण विणिहयं, रामेण अकिट्ठधम्मेणं ॥ ५२ ॥ सुणिऊण अकण्णसुह, वयणं मन्दोयरी तओ रुट्ठा । जुवइसहस्सपरिमिया, आढत्ता पहणिउं सीया ॥ ५३ ॥ दुबयणकरयलेहि, नाव य त उज्जया उ हन्तुं जे । हणुओ मज्झम्मि ठिओ, ताणं तुङ्गो ब सरियाणं ॥ ५४॥ निब्भच्छियाउ ताओ, समयं मन्दोयरी' गन्तूणं । हणुयं साहेन्ति फुडं, समागयं रक्खसवइस्स ॥ ५५ ॥ अह मारुईण सीया, विन्नविया भोयणं कुणसु एत्तो । संपुष्णा य पइन्ना, जा आसि कया तुमे पुर्व ॥ ५६ ॥ इस पर मन्दोदरी कहने लगी कि, हे बाले ! सुन । बानरोंमें इसके सदृश कोई महासुभट नहीं है । (४१) इसने रावणकी ओरसे वरुणके साथ महायुद्ध किया था। उस समय चन्द्रनखाकी पुत्री अनंगकुसुमा इसने प्राप्त की थी । (४२) सारे जीवलोकमें वानरश्रेष्ठ हनुमान विख्यात है। ऐसे गुणवाले इसको पृथ्वीपर भ्रमण करनेवाले मनुष्योंने दौत्यकर्म में लगाया है। (४३) तब हनुमानने कहा कि, हे मुग्धा मन्दोदरी! क्या तुम यह नहीं जानतीं कि मनुष्यको उपकार करने में सदा तत्पर रहना चाहिए। (४४) हे मन्दोदरी! अपने सौभाग्यका यह गर्व तुम व्यर्थ धारण करती हो, क्योंकि पटरानी होकर तुम अपने पतिका दौत्य करती हो । (४५) इस पर मन्दोदरीने कहा कि दूतत्वमें योजित तुम सीताके लिए यहाँ आये हो ऐसा यदि रावण जान लेगा तो तुम्हारे प्राण ले लेगा। (४६) रावणको छोड़कर जिन्होंने रामकी नौकरी स्वीकार की है वे सब वानर मृत्युके द्वारा देखे जानेवाले मार्गमें ठहरे हुए हैं। (४७) मन्दोदरीका ऐसा कथन सुनकर सीताने कहा कि अरी खेचरी! विश्वविशुत मेरे पति रामकी तुम निन्दा क्यों करती हो ? (४८) युद्ध में जिनके वावर्त धनुषकी टंकार सुनकर सारे सुभट दर्पहीन हो जाते हैं तथा भयरूपी ज्वरसे गृहीत हों इस तरह काँपते हैं। और मेरुकी भाँति धीर-गंभीर लक्ष्मण जिनका भाई है वे शत्रुओंके पक्षका विनाश करनेमें समर्थ ही हैं। (४६-५०) बहुत कहनेसे क्या ? समुद्रको अभी पार करके मेरे पति वानर सैन्यके साथ आयेंगे। (५१) धर्मका निर्विघ्न आचरण करनेवाले मेरे नाथ रामके द्वारा युद्धमें कतिपय दिनोंमें ही तेरे स्वामीका घात मैं देखती हूँ। (५२) कानोंके लिए दुःखकर ये वचन सुन हजारों युवतियोंसे घिरी हुई मन्दोदरी रुष्ट हो सीताको मारनेमें प्रवृत्त हुई। (५३) दुर्वचन एवं हाथोंसे जैसे ही वे उसे मारनेके लिए उद्यत हुई वैसे ही नदियोंके बीच स्थित ऊँचे पर्वतकी भाँति हनुमान उनके बीच खड़ा हो गया। (५४) मन्दोदरीके साथ उनकी हनुमानने भर्त्सना की। इस पर उन्होंने जा करके राक्षसपति रावणसे कहा कि हनुमान आया है। (५५) . १. जी--प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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