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________________ २८३ ३६.४०] ३६. वणमालापव्वं दट्ठ ण अप्पवीय, विहसन्ती लक्षणं भणइ सीया । किं चन्देण समाणं, कुमार! जणिओ य समवाओ? ॥ २५ ॥ कह जाणसि वइदेही!, भणिया रामेण जंपई सोया । चेट्टाएँ नवरि सामिय! अहयं जाणामि निसुणेहि ॥ २६ ॥ नोव्हाएँ समं चन्दो, जम्मि य वेलाएँ उम्गओ गयणे । तबेलम्मिह पत्तो, सहिओ बालाएँ सोमित्ती ॥ २७ ॥ जह आणवेसि भद्दे !, एव इमं जपिऊण सोमित्ती । वणमालाए सहिओ, उवविट्ठो सन्निगासम्मि ॥ २८ ॥ ते तत्थ समल्लावं. वणमालासंसियं पकुबन्ता । अच्छन्ति सुरसरिच्छा, नग्गोहदुमस्स हेम्मि ॥ २९ ॥ ताव य वणमालाए, सहीओ निदक्खए विउद्धाओ। दट्टण ताऍ सयणं, सुन्नं ताहे गवेसन्ति ॥ ३० ॥ सद्देण ताण सुहडा, समुट्टिया विविहपहरणविहत्था । पायालबलसमग्गा, ते वि गवसन्ति वणमालं ॥ ३१ ॥ दिट्ठा य भमन्तेहिं, वणमाला राम-लक्खणा य तहिं । परिमुणियकारणेहिं, नरेहि सिट्टा महिहरस्स ॥ ३२ ॥ दिट्ठा नरवइ विद्धी, तुह सामिय ! सयलबन्धुसहियस्स । इह लक्खणो य रामो, समागया पुरिसमीवम्मि ॥ ३३ ॥ सा तुज्झ सामि! दुहिया, वणमाला अप्पयं विवायन्ती । रुद्धा य लक्खणेणं, सा च तहिं अच्छई बाला ॥ ३४ ॥ सुणिऊण वयणमेयं, ताण धणं देइ नरवई तुट्ठो । चिन्तेइ य दुहियाए, जं इट्टसमागमो जाओ ॥ ३५ ॥ सबाण वि जीवाणं. इह इट्टसमागमो सुहावेइ । जो पुण हवेज सहसा, सो सुरलोगं विसेसेइ ॥ ३६ ॥ एवं महीहरनिवो, भज्जाए परिजणेण समसहिओ । गन्तूण रामदेवं, अवगृहइ लक्खणसमग्गं ।। ३७ ॥ सीया य समालत्ता, कुसलं परिपुच्छिया सरीराइ । तत्थेव ण्हाण-भोयण-आभरणविही कया ताण ॥ ३८ ॥ पडपडह-तूरसद्दो, महूसवो कारिओ नरवईणं । नच्चन्तवरविलासिणि-जणेण बहुमङ्गलाडोवो ॥ ३९ ॥ कुङकुमकयङ्गरागा, सीयासहिया रहेसु आरूढा । नयरं महीहरेणं. पवेसिया जण-धणाइण्णं ॥ ४० ॥ साथ कैसा सम्बन्ध हुआ है ! (२५) वैदेही ! तुम कैसे जानती हो ?- इस तरह रामके द्वारा पूछी गई सीताने कहा कि, हे स्वामी ! केवल चेष्टासे ही मैं जानती हूँ। आप सुनें । (२६) जिस समय आकाशमें ज्योत्स्नाके साथ चन्द्रमाका उदय हुआ उसी समय कन्याके साथ लक्ष्मण यहाँ आये । (२७) हे भद्रे ! जैसी आज्ञा-इस प्रकार उसे कहकर वनमालाके साथ लक्ष्मण पासमें आकर बैठा । (२८) वनमालाके लिए अभिलपित वार्तालाप करते हुए देवसदृश वे उस बरगदके पेड़के नीचे बैठे रहे । (२९) उस समय निद्रा पूर्ण होनेपर वनमालाकी जागृत सखियाँ उसकी शैया खाली देखकर उसे खोजने लगी । (३०) उनकी आवाजसे सुभट भी जग गये। हाथमें विविध शस्त्र धारण किये हुए वे भी पैदल सेनाके साथ वनमालाको खोजने लगे । (३१) घूमते हुए उन्होंने वनमाला तथा राम-लक्ष्मणको वहाँ देखा। कारण सुनकर लोगोंने राजासे कहा कि, हे राजन् ! भाग्यसे आपकी सब बन्धुजनोंके साथ वृद्धि हो। हे स्वामी ! यहाँ नगरके समीप ही राम एवं लक्ष्मण पधारे हैं। (३२-३) हे स्वामी ! अपने आपकी हत्या करनेवाली आपकी पुत्री वनमालाको लक्ष्मणने रोका है। वह बाला वहाँ बैठी हुई है । (३४) यह कथन सुनकर सन्तुष्ट राजाने उन्हें धन दिया। वह सोचने लगा कि लड़कीको इष्टका समागम हुआ है। (३५) इस संसारमें सभी जीवोंको इष्टकी प्राप्ति सुख देती है और यदि वह अचानक हो तो स्वर्गसे भी विशेष होती है । (३६) ऐसा सोचकर भार्या एवं परिजनके साथ जाकर राजाने लक्ष्मणके साथ रामका आलिंगन किया। (३७) शरीर आदिका कुशल पूछकर सीताके साथ भी बातचीत की। वहीं पर उनकी स्नान, भोजन एवं आभरण विधि की गई (३८) दुन्दुभि एवं वाद्योंकी सुन्दर ध्वनिसे युक्त और नृत्य करती हुई सुन्दर वारांगनाओंके कारण अनेक मंगलाचारोंके आटोपसे सम्पन्न ऐसा बड़ा भारी उत्सव मनाया गया । (३९) कुंकुमके अंगरागवाले तथा रथोंमें सीताके साथ आरूढ़ उनका राजाने जन एवं धनसे आकीर्ण नगरमें प्रवेश कराया। (४०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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