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________________ २१६ 11 ५ ॥ पउमचरियं सोऊण पवरसुमिणे, सत्थत्थविसारओ नरवरिन्दो | भणइ इमे वरपुरिसं, सुन्दरि ! पुतं निवेएन्ति ॥ ३ ॥ तयणन्तरं सुमित्ता, पेच्छइ सुमिणे निसावसाणम्मि । लेच्छो कमलविहत्था, ससि-सूरे किरणपज्जलिए ॥ अत्ताणं अइतुझे, गिरिवरसिहरे अवट्टिया सन्ती । सायरवर पेरन्तं, पेच्छइ पुइई चिय पसत्थं सूरुग्गमम्मि तो सा, गन्तूण कहेइ सुविणए पहणो । तेण वि य तीऍ सिहं, होही पुत्तो तुमं भद्दे ! ॥ ६ ॥ अवराइया कयाई, गुरुभारा सोहणे तिहि मुहुत्ते । पुत्तं चेव पसूया, वियसियवरपउमसरिसमुहं ॥ 11 जम्मूसवो महन्तो, तस्स कओ दसरहेण तुट्टेणं । नामं च विरइयं से, पउमो पाउमुप्पलदलच्छो ॥ ८ ॥ तत्तो चेव पसूया, सोमित्ती दारयं परमरुवं । तस्स वि य महाणन्दो, सविसेसो नरवईण कओ ॥ वेरियघरेसु जाया, उप्पाया दारुणा महापावा । बन्धवनयरेसु पुणो, कहेन्ति सुहसंपयं विउलं ॥ नीलुप्पलदलसामो, जेणं चिय लक्खणेसु उववेओ । तेणं गुणाणुरूवं छू चिय लक्खणो नामं ॥ अह दो वि बालया ते, रिङ्खण चंक्रमणयाइ कुणमाणा । वड्डन्ति लच्छिनिलया, आभरणविभूसियसरीरा ॥ बहुविहजम्मसिणेहा, अन्नोन्नवसाणुगा वरकुमारा । बन्धवहिययाणन्दा, रक्खिज्जन्ते पयत्तेणं ॥ अह केगई पसूया, भरहकुमारं तहेव संत्तुघणं । जम्मूसवो महन्तो, ताणं पि कओ नरवईणं अह ते कुमारसी, चत्तारि वि सत्ति - कन्ति - बलजुत्ते । कल गहण-धारणसहे, दट्ठण समाउलो राया ॥ अत्थेत्थ महानयरी, कम्पिल्ला तत्थ भग्गवो नामं । तस्सऽइराणी महिला, पुत्तो वि य अइरकुच्छी सो ॥ अइलालिओ से दूरं, अविणयकारी नणस्स अइवेसो । निद्धाडिओ पुराओ, पियरेणं अयसभीएणं ॥ १० ॥ ११ ॥ १२ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ यहाँ पर काम्पिल्य नामकी महानगरी है । पत्नी थी। अचिराकी कुक्षिसे एक पुत्र हुआ । (१६) अतिद्वेषका विषय हुआ, अतः अपयशसे डरे हुए पिताने दो वस्त्र पहना हुआ वह महानगर राजगृह में आया । वहाँ १. लच्छि कमलविहत्थं — प्रत्य• । २. सतुग्धं प्रत्य० । II सुनकर शास्त्र के अर्थ में विशारद राजाने कहा कि, हे सुन्दरी ! ये स्वप्न उत्तम पुरुष रूप पुत्रको सूचित करते हैं । (३) उसके बाद सुमित्राने रात्रिके अवसान के समय स्वममें हाथमें कमल धारण की हुई लक्ष्मी तथा किरणोंसे प्रज्वलित चन्द्र एवं सूर्य देखे । (४) पर्वतके अत्युच्च शिखर पर स्वयं स्थित होकर सागर पर्यन्त फैलो हुई प्रशात पृथ्वीको देखा । (५) सूर्योदय होने पर पति के पास जाकर स्वप्न कहे। उसने भी उसे कहा कि, हे भद्रे ! तुम्हें भी पुत्र होगा । (६) Jain Education International १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥ गर्भवती अपराजिताने कभी शुभ तिथि एवं मुहूर्त में खिले हुए उत्तम कमलके समान मुखवाले पुत्रको जन्म दिया । (७) तुष्ट दशरथने उसका बड़ा भारी जन्मोत्सव मनाया और पद्मकमलके दलकी-सी कान्तिवाले उसका नाम पद्म रखा । (८) उसके बाद सुमित्राने भी अत्यन्त रूपवान् पुत्रको जन्म दिया। उसका भी राजाने बड़ा भारी विशिष्ट उत्सव मनाया । (९) शत्रुओंके घरोंमें महापापके सूचक दारुण उत्पात हुए, जबकि मित्रोंके नगरों में विपुल सुखसम्पति कही गई । (१०) नीलकमलके दलके समान श्याम वर्णवाला वह लक्षणों से युक्त था, अतः गुणके अनुरूप उसका नाम लक्ष्मण रखा गया । (११) शोभा के धाम रूप तथा आभूषणोंसे विभूषित शरीरवाले वे दोनों बालक रेंगना, चलना आदि करते हुए बढ़ने लगे । (१२) जन्मोंसे ही स्नेह रखनेवाले, एक-दूसरे के वशवर्ती तथा वन्धुजनोंके हृदयको आनन्द देनेवाले उन उत्तम कुमारोंकी प्रयत्नके साथ रक्षाकी जाती थी । (१३) इसके बाद कैकयीने भरतकुमार तथा शत्रुघ्नको जन्म दिया। राजाने उनका भी बड़ा भारी जन्मोत्सव मनाया। (१४) शक्ति, कान्ति एवं बलसे युक्त तथा कलाओंके धारण व ग्रहणमें समर्थ उन कुमारसिंहोंको देखकर राजा व्याकुल हुआ । (१५) [२५.३ For Private & Personal Use Only वहाँ एक भार्गव रहता था । उसकी अचिरा नामकी बहुत दुलारमें पालापोसा गया वह अविनयी लोगोंके नगरसेंसे बाहर दूर निकाल दिया । ( १७ ) धनुर्वेद में अतिकुशल वैवस्वत नामका आचार्य ३. सरोसं— मु० । उसे www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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