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२१. सुश्वय-वज्जबाहु-कित्तिधरमाहप्पवण्णणं पत्तो य वसभदत्तो, पञ्चाइसए जिणप्पहावेणं । सुर-असुरनमियचलणो, विहरइ तित्थंकरो वसुहं ॥ २५ ॥ चम्पयदुमस्स हिढे, एवं घाइक्खएण कम्माणं । झायन्तस्स भगवओ, केवलनाणं समुप्पन्नं ॥ २६ ॥ अह सुबओ वि रज, दाऊण सुयस्स तत्थ दक्खस्स । पदइओ चरिय तवं, कालगओ पाविओ सिद्धिं ।। २७ ।। तित्थं पवत्तिऊणं, मुणिसुबयसामिओ वि गणसहिओ । सम्मेयपबओवरि, दुक्खविमोक्खं गओ मोक्खं ॥ २८ ॥
जनकराजोत्पत्तिःदक्खस्स पढ़मपुत्तो, जाओ इलबद्धणो ति नामेणं । सिरिवद्धणो कुमारी, तस्स वि य सुओ समुप्पन्नो ॥ २९ ॥ सिरिवक्खो तस्स सुओ, जाओ च्चिय संजयन्तनरवसभो । कुणिमो महारहो विय, हरिवंसे पत्थिवा बहवे ॥ ३० ॥ कालेण अइक्वन्ता केइत्थ तवेण पाविया सिद्धि । अन्ने पुण सुरलोए, उप्पन्ना निययजोएणं ॥ ३१ ॥ एवं महन्तकाले, वोलीणेसु य निवेसु बहुएसु । मिहिलाएँ समुप्पन्नो, वासबकेऊ य हरिवंसे || ३२ ।। महिला तस्स सुरूवा, नामेण इला गुणाहिया लोए । तोए गब्भम्मि सुओ, जाओ जणओ ति नामेणं ॥ ३३ ॥ जणयस्स पसूई खलु, सेणिय! कहिया मए समासेणं । निसुणेहि जत्थ बसे, उप्पन्नो दसरहो राया ॥ ३४ ॥ दशरथराजोत्पत्तिःगच्छन्ति काल-समया, तप्पन्ति तवं सुउज्जया समणा । विलसन्ति विसयलग्गा, सुस्सन्ति य अकयमुहकम्मा ॥ ३५॥ अणुयत्तन्ति य जीवा, दुक्खाणि सुहाणि जीवलोगम्मि । तेसिं परिवत्तन्ति य, वसणाणि महोच्छवा चेव ।। ३६ ॥ झायन्ति मुणी झाणं, मुक्खा निन्दन्ति रागिणो मत्ता । अभिनन्दन्ति बुहा जे, मुज्झन्ति सुरामिसासत्ता ॥ ३७॥ गायन्ति विसयमूढा, रोवन्ति य रोगपीडिया जे य । सुहिणो चेव हसन्ति य, किलिसन्तं पेच्छिऊण जणं ॥ ३८ ॥ विवदन्ति कलहसीला, बग्गन्ती तह य केवि धावन्ति । लोभवसेण वि केई, संगामं जन्ति तण्हत्ता ॥ ३९ ॥
जिनके चरणों में नमस्कार करते हैं ऐसे वे तीर्थकर वसुधा पर विहार करने एगे। (२५) इस प्रकार चम्पक वृक्षके नीचे घातिकोका क्षय होनेपर ध्यानमें स्थित भगवानको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। (२६) उधर सुत्रतने भी पुत्र दक्षको राज्य देकर प्रव्रज्या अंगीकार की और तपका आचरण करके मरनेपर मुक्ति प्राप्त की। (२७) तीर्थका प्रवर्तन करके मुनिसुव्रत स्वामीने भी समुदायके साथ सम्मेत शिखरके ऊपर दुःखका नाश करनेवाला मोक्ष प्राप्त किया। (२८)
दक्षका पहला पुत्र इलावर्द्धन नामका हुआ। उसे भी श्रीवर्द्धन नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। (२९) उसका पुत्र श्रीवृक्ष था। उससे संजयन्त राजा हुआ। उससे कुणिम और कुणिमसे महारथ हुआ। इस प्रकार हरिवंशमें बहुत-से राजा हुए। (३०) मरने पर इनमेंसे कइयोंने तप द्वारा सिद्धि प्राप्त की तो दूसरे अपने योगके अनुसार देवलोकमें उत्पन्न हुए। (३१) इस तरह बहुत समय ओर बहुतसे राजाओंके व्यतीत होनेपर मिथिलामें हरिवंशमें वासवकेतु उत्पन्न हुआ। (३२) उसकी सुन्दर और गुणों के कारण लोकमें प्रसिद्ध इला नामकी पत्नी थी। उसके गर्भसे जनक नामका पुत्र हुआ। (३३)
हे श्रेणिक ! मैंने संक्षेपसे जनकके जन्मके बारेमें कहा। जिस वंशमें दशरथ राजा उत्पन्न हुआ था उसके बारेमें भी तुम सुनी । (३४) काल समय बीतता है, उद्यमशील श्रमण तप करते हैं, विषयोंमें लगे हुए लोग विलास करते हैं, शुभ कर्म न करनेवाले लोग सूखते (दुःख उठाते) हैं, जीवलोकमें जीव सुख एवं दुःखका अनुभव करते हैं और महोत्सवों में अपने वस्त्र बदलते हैं, मुनि ध्यान करते हैं, बुद्धिशाली लोग जिसकी प्रशंसा करते हैं उसकी मूर्ख और मत्त रागी निन्दा करते हैं, मांस एवं मदिरामें आसक्त लोग मोह करते हैं, विषयमें मूढ़ लोग गाते हैं तो जो रोगसे पीड़ित हैं वे रोते हैं, दुःखी मनुष्यको देखकर सुखी लोग हँसते हैं, कलहशीलजन, विवाद करते हैं, लोभवश कोई कूदते-फाँदते हैं तो तृष्णासे पीड़ित कोई युद्ध में
१. अकयवलिकम्मा-प्रत्य।
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