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________________ १०६ पउमचरियं [.. १३किं कुबन्तिह सूरा, सामन्ता भाणुकण्णमाईया ? । जत्थ रिउछिद्दधाई, अदिद्वपुवो हरइ कन्नं ॥ १३ ॥ अह रावणो वि तइया, वत्तं सुणिऊण आगओ रुट्ठो । घेत्तूण चन्दहासं, तस्स वहत्थं अह पयट्टो ॥ १४ ॥ चलणेसु पणमिऊणं. ताव य मन्दोयरी भणइ कन्तं । अन्नस्स होइ अरिहा. कन्ना लोगदिई एसा ॥ १५॥ विज्जाहराण सामिय!, भिच्चाणं तस्स चोद्दस सहस्सा । बलदप्पगबियाणं, रणकण्डू उबहन्ताणं ॥ १६ ॥ जुज्झम्मि समावडिए, अवस्स दुट्ठो तुमे निहन्तबो । भत्तारम्मि विवन्ने, होही विधवा विगयसोहा ॥ १७ ॥ आइच्चरयस्स सुयं, चन्दोयरखेयरं विवाडेउं । तुज्झ कुलवंसनिलए, पायालपुरे परिवसइ ॥ १८ ॥ सत्तुभडाण रणमुहे, भयमुबेयं न जामि निमिसं पि । तुज्झ वयणेण सुन्दरि !, नवरि ठिओ सासयसहावो ॥ १९ ॥ अह अन्नया कयाई, चन्दोयरपत्थिवम्मि कालगए । महिला तस्सऽणुराहा, सयणविहूणा भमइ रणे ॥ २० ॥ अह गुरुभरखीणङ्गी, मणिकन्तमहीहरस्स कडयम्मि । सा दारयं पसूया, नामेण विराहियकुमारं ॥ २१॥ गब्भट्टियस्स जस्स उ. कओ विरोहो सया रिउजणेणं । तेणं विराहिओ सो. भण्णइ धणभोगपरिहीणो ॥ २२ ॥ परिवडिओ कमारो. जाओ बल-रुव-जोबणापण्णो । परिभमइ सयलवसुह, अइसयदेसेसु रम्मेसु ॥ २३ ॥ रावणस्य वालिना सह युद्धम्अह रावणेण तइया, वालिनरिन्दस्स पेसिओ दूओ। गन्तूणं किक्किन्धि, वालिसहं पत्थिओ सहसा ॥ २४ ॥ काऊण सिरपणाम, दूओ अह भणइ वाणराहिवई । निसुणेहि मज्झ वयणं, जे भणियं निययसामीणं ॥ २५ ॥ घातमें रहनेवाला जहाँ कन्याका अपहरण करे वहाँ देव, सामन्त तथा भानुकर्ण आदि करें भी क्या ? (१३) तब यह वृत्तान्त सुनकर गुस्से में आया हुआ रावण लौटा और चन्द्रहास नामकी तलवार लेकर उसके वधके लिये प्रवृत्त हुआ। (१४) तब मन्दोदरीने चरणों में प्रणाम करके अपने स्वामोसे कहा कि यह लोककी रूढ़ि है कि कन्या दूसरेके लिए होती है। (१५) बल एवं दर्पसे गर्वित और लड़ाईकी खुजली जिन्हें हो रही है ऐसे चौदह हजार विद्याधर भृत्योंका वह खरदूषण स्वामी है। (१६) युद्ध होने पर उस दुष्टको तुम अवश्य मारोगे और पतिकी मृत्यु होने पर वह चन्द्रनखा शोभाहीन विधवा हो जायगी। (१७) आदित्यरजाके पुत्र चन्द्रोदर खेचरको हरा कर तुम्हारे कुल एवं वंशके निलय पातालपुरमें वह रहता है। (१८) इस प्रकार मन्दोदरीके कहने पर रावणने कहा कि, हे सुन्दरी ! मैं यद्यपि युद्धक्षेत्रमें शत्रुके सुभटोंका तनिक भी भय या उद्वेग नहीं जानता, फिर भी तेरे कहनेसे मैं अपने स्वभावमें आता हूँ-शान्त रहता हूँ। (१९) विराधितका जन्म बादमें किसी समय चन्द्रोदर राजाका निधन होने पर स्वजनसे वियुक्त उसकी अनुराधा नामकी स्त्री अरण्यमें घूमती थी। (२०) गर्भके भारसे क्षीण अंगवाली उसने मणिकान्त राजाके शिविरमें विराधितकुमार नामके पुत्रको जन्म दिया । (२१) जिसके गर्भमें रहने पर शत्रुओंने सदा विरोध किया था, अतः धन एवं भोगसे विहीन वह विराधित नामसे कहा जाने लगा । (२२) बड़ा होने पर बल, रूप एवं यौवनसे परिपूर्ण वह कुमार समग्र पृथ्वी पर आये हुए अत्यन्त रमणीय देशोंमें घूमने लगा । (२३) बाली और रावणका युद्ध उस समय रावणने वाली राजाके पास अपना दूत भेजा। किष्किन्धिमें पहुंचकर वह वालीके पास सहसा उपस्थित हुआ । (२४) सिरसे प्रणाम करके दूत कहने लगा कि, हे वानराधिपति ! तुम मेरे वचन, जो कि मेरे स्वामीके कहे हुए हैं, सुनो। (२५) तुम उत्तम कुलमें पैदा हुए हो, उत्तम शक्तिसे युक्त हो तथा विनयसे सम्पन्न हो। अतः अत्यन्त. प्रेमपूर्वक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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