________________
पउमचरियं
[७.३३ घेत्तूण तो सरोसं, मालिनरिन्देण पज्जलन्तीए । पहओ निडालदेसे, इन्दो घोराएँ सत्तीए ॥ ३३ ॥ सत्तीपहरपरद्धो, इन्दो रत्तारविन्द-समछाओ। अत्थगिरिमत्थयत्थो, संझाराए दिणयरो च ॥ ३४ ॥ अमरिमवसंगणं रोसापरियफरन्तनयणेणं । चक्केण सिरं हिन्न, मालिनरिन्दस्स इन्देणं ॥ ३५॥ अह पेच्छिउ सुमाली, ववगयजीयं सहोयरं समरे । मुणिऊण नयविभाग, सहसा भग्गो समरहत्तो ॥ ३६ ॥ मग्गेण तस्स लग्गो, सोमो बलदप्पगबिओ सूरो । सो भिण्डमालपहओ, निहओ य सुमालिसत्थेणं ॥ ३७॥ मुच्छानिमीलियच्छो, जाव य सोमो चिरस्स आसत्थो । ताव य सुमालिराया, पायालपुरं समणुपत्तो ॥ ३८ ॥ रक्खसभडा पविट्ठा, पायालंकारपुरवरं तुरिया । अच्छन्ति भग्गमाणा, बीयं जम्मं व संपत्ता ॥ ३९॥ आसासिओ नियत्तो, सोमो पासं गओ सुरवइस्स । रहनेउरं पविट्रो इन्दो उग्घुट्टजयसद्दो ॥ ४० ॥ एवं जिणिऊण रणे, पडिसत्तं सुरवई महारज । भुञ्जन्तो चिय जाओ, इन्दो इन्दो ति लोयम्मि ॥४१॥ एत्तो सुणाहि नरवइ ! मगहाहिव! लोयपालउप्पत्ती । होऊण एगचित्तो, जहक्कम ते पवक्खामि ॥ ४२ ॥ मयरद्धयस्स पुत्तो, सोमो आइच्चकित्तिसंभूओ। जोईपुरस्स सामी, ठविओ सो लोगपालो त्ति ॥ ४३ ॥ मेहरहस्स य पुत्तो, वरुणो वरुणाएँ कुच्छिसंभूओ । मेहपुरनयरसामी, महिडिओ लोगपालो सो ॥ ४४ ॥ कणयावलीऍ पुत्तो, जाओ च्चिय सूरखेयरिन्देणं । कश्चणपुरे महप्पा, वसइ कुबेरो महासत्तो ॥ ४५ ॥ कालग्गिखेयरसुओ. सिरिप्पभाकुच्छिसंभवो वीरो। किक्किन्धिनयरराया, कयववसाओ जमो नाम ॥ ४६॥
ठविओ पुबाएँ ससी, दिसाएँ वरुणो य तत्थ अवराए । उत्तरओ य कुबेरो, ठविओ च्चिय दक्षिणाएँ जमो ॥ ४७ ॥ ललाट प्रदेशमें प्रहार किया। (३३) शक्तिके प्रहारसे आहत इन्द्रकी कान्ति लालकमलकी, तथा अस्ताचल के शिखर पर स्थित संध्याकालीन सूर्यकी भाँति प्रतीत होती थी। (३४) क्रोधके वशीभूत तथा गुस्सेसे भरी हुई और इसीलिए फड़कती
आँखोंवाले इन्द्रने चक्रसे माली राजाका सिर कलम कर दिया । (३५) युद्ध में अपने भाईको मरा हुआ देखकर तथा इस समय राजनीतिके अनुसार क्या उचित है, यह जानकर सुमाली सहसा युद्धसे भाग निकला । (३६) बल एवं दर्पसे गर्वित सोम नामके देवने उसका पीछा पकड़ा। भिन्दिमाल नामक शस्त्रसे प्रहार करनेवाले उसको सुमालीने शस्त्रसे घायल किया। (३७) मू के कारण बन्द आँखोंवाला वह चिरकालके पश्चात् जब होशमें आया तबतक तो सुमाली राजा पातालपुरमें पहुँच चुका था। (३८) राक्षस सुभटोंने भी जल्दी ही पातालालंकारपुरमें प्रवेश किया। जिनका मान भंग हुआ है ऐसे वे मानो दूसरा जन्म प्राप्त किया हो इस तरह वहाँ रहने लगे। (३९) होशमें आने पर सोम वापस लौटा और इन्द्र के पास गया। बादमें जिसकी 'जय' शब्द द्वारा उद्घोषणा हो रही है ऐसे इन्द्रने रथनू पुर नगरमें प्रवेश किया । (४०) इस प्रकार रणमें विरोधी शत्रुको जीतकर सुरपति बड़े भारी राज्यका उपभोग करने लगा और लोकमें सर्वत्र 'इन्द्र, इन्द्र' हो गया। (४१) लोकपालोंकी उत्पत्तिका वर्णन
गौतम गणधर कहते हैं कि, हे मगधनरेश श्रेणिक! तुम एकचित्त होकर जिस क्रमसे मैं कहता हूँ उस क्रमसे लोकपालोंकी उत्पत्तिके बारेमें सुनो। (४२) मकरध्वजको आदित्यकीर्ति नामकी पत्नीसे सोम नामक पुत्र हुआ। वह ज्योतिःपुरका राजा हुआ तथा लोकपालके रूपसे उसकी प्रतिष्ठा की गई। (४३) मेघरथका वरुणाकी कुक्षिसे उत्पन्न पुत्र तथा मेघपुर नगरका राजा वरुण था। वह बड़ी भारी ऋद्धिवाला लोकपाल हुआ। (४४) विद्याधरोंमें श्रेष्ठ सूर्यका कनकावलीसे उत्पन्न पुत्र महात्मा तथा महासमर्थ कुबेर कंचनपुर में रहता था। (४५) कालानि नामक विद्याधरका श्रीप्रभाकी कुक्षिसे उत्पन्न वीर एवं कृतनिश्चयी पुत्र यम किष्किन्धिनगरीका राजा हुआ। (४६) शशीकी (सोमकी) पूर्व दिशामें, वरुणकी पश्चिम दिशामें, उत्तर दिशामें कुबेरको तथा दक्षिण दिशामें यमकी स्थापना की गई। (४७) जिसका
१. रुहिरारविंदसच्छाओ-मु.। २. धीरो-प्रत्य।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org