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________________ ७.२] ७. दहमुहविजासाहणं एतो हेमङ्गपुरे, भोगवईगब्भसंभवा कन्ना । हिमरायस्स य दुहिया, चन्दमई नाम नामेणं ॥ २३७ ॥ मालिकुमारेण तओ, परिणीया सा महाविभूईए । जा निययरूवजोबण-गुणेहि दूर समुबहइ ॥ २३८ ॥ पीइंकरस्स दुहिया, पीइमइसमुन्भवा विसालच्छी । पीइपुरम्मि नाया, पीइमहा सुन्दरी नाम ॥ २३९ ॥ सा वि हु सुमालिभज्जा, जाया अच्चन्तसुन्दरावयवा । लक्खणगुणोववेया, रूवेण रई विसेसेइ ॥ २४० ॥ कणयसिरीकणयसुया. कन्ना कणयावलि त्ति कणयपुरे । तं चेव मालवन्तो, परिणेइ गुणाहियं लोए ॥ २४१ ॥ जुवइसहस्ससमग्गो, संपत्तो उभयसेढिसामित्तं । आणाविसालमउलं, भुञ्जइ माली महारज्जं ॥ २४२ ॥ एयम्मि देसयाले, सुकेसि-किक्किन्धिनणियसंवेगा। पवइया खायजसा, पवंगमा रक्खसभडा य ॥ २४३ ॥ तवचरणसमग्गा दीहकालं गमित्ता, ववगयभय-सोगा नाण-चारित्तजन । जणियविमलकम्मा रक्खसा वाणरा य, सिवम यलमणन्तं सिद्धिसोक्खं पवन्ना ॥ २४४ ॥ ॥ इति पउमचरिए रक्खस-वाणरपब्वज्जाविहाणो नाम छट्टो उसओ समत्तो।। ७. दहमुहविज्जासाहणं एत्थन्तरम्मि राया, सहसारो नाम निग्गयषयावो । वसइ सया सुहियमणो, रहनेउरचक्कवालपुरे ॥१॥ तस्स य गुणाणुरूवा, अह माणससुन्दरी पवरभज्जा । तं पेच्छिऊण राया, तणुयङ्गी पुच्छए सहसा ॥ २ ॥ इधर हेमांगपुर नामक नगरमें हिमराजकी पत्नी भोगवतीके गर्भसे उत्पन्न चन्द्रमती नामकी एक पुत्री थी। (२३७) अपने रूप, यौवन एवं गुणोंसे दूर तक आकृष्ट करनेवाली उस कन्याके साथ मालीकुमारका बड़े भारी आडम्बरके साथ विवाह सम्पन्न हुआ। ( २३८) प्रियंकर राजाकी रानी प्रीतिमतोसे उत्पन्न विशाल नेत्रोंवाली प्रीतिमहा नामकी एक सुन्दर पुत्री थी। (२३९) अत्यन्त सुन्दर अवयवोंवाली, शुभ लक्षण एवं गुणोंसे युक्त तथा अपने रूपके कारण रतिसे भी बढ़चढ़कर ऐसी वह सुमालीकी पत्नी हुई । (२४०) कनकपुरमें कनकश्री तथा कनककी कनकावली नामकी पुत्री थी। लोकमें अपने गुणोंके कारण अधिक आदरणीय उसके साथ माल्यवान्का विवाह हुआ। (२४१) हजारों युवतियोंसे युक्त मालीको वैताढ्यपर्वतकी दोनों श्रेणियोंका स्वामित्व प्राप्त हुआ और इस तरह विशाल मुकुटधारी राजा जिसमें आज्ञा उठाते हैं, ऐसे महाराज्यका वह उपभोग करने लगा। (२४२-२४३) तपश्चरणके साथ दोर्घकाल व्यतीत करके, भय व प्रासक्तिसे रहित तथा ज्ञान एवं चारित्रसे युक्त वानर एवं राक्षसोंने विमलकर्मका उपार्जन करके कल्याणकारी, अचल तथा अनन्त सिद्धि-सुख प्राप्त किया । (२४४) । पद्मचरितमें राक्षस-वानर प्रवज्या विधान नामका छठा उद्देश समाप्त हुआ। ७. दशमुखकी विद्या साधना इन्द्रका जन्म इस बीच जिसका प्रताप चारों ओर फैला है ऐसा सर्वदा प्रसन्न मनवाला सहस्रार नामका राजा रथनू पुरचक्रवालपुर नामक नगरमें रहता था। (१) उसकी मानससुन्दरी नामकी एक सद्गुणी पत्नी थी। उसे अकस्मात् दुर्बल १. भयसंगा मु.। २. ममल मु.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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