________________
४१८
हरिवंशपुराणे
आकर्ण्यष्टसुतप्रियासुचरितं चामुत्र चेहात्र च
प्राप्तः संमदमुन्नतं जिनमतश्रीशंसनो यादवः ॥१७४॥
Jain Education International
इत्यरिष्टनेमिपुराणसंग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृती कं सोपाख्यानबलदेववासुदेवदेवकीतनयागारचरितवर्णनो नाम त्रयस्त्रिशः सर्गः ||३३||
तो पूर्ववत् बनाये रखी परन्तु उसमें उपेक्षा का भाव आ गया। वे अपने आठों पुत्र तथा प्रिया देवकी के पूर्वभव एवं वर्तमान भव सम्बन्धी चरितको सुनकर अत्यधिक हर्षको प्राप्त हुए ।। १७४।।
इस प्रकार अरिष्टनेमिपुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंशपुराण में कंसका उपाख्यान तथा बलदेव, वासुदेव और देवकीके अन्य पुत्रोंके गृह चरितका वर्णन करनेवाला तैंतीसवाँ सर्ग समाप्त हुआ ॥३३॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org