________________
अहिंसा-दर्शन
नहीं भरेगा । मारने के लिए ही किसी को नहीं मारेगा, धर्म के नाम पर किसी निर्दोष की हिंसा नहीं करेगा, और इसी प्रकार की अन्य हिंसा भी नहीं करेगा। इस कथन की पुष्टि के लिए एक पाश्चात्य दार्शनिक का अभिमत प्रस्तुत किया जा सकता है ।
__ रस्किन ने, जो पश्चिम का एक बड़ा दार्शनिक था, उपदेशक एवं वकील आदि धन्धे की आलोचना की है। उसकी एक पुस्तक का 'सर्वोदय' नाम से महात्मा गाँधी ने अनुवाद किया है । उसमें रस्किन कहता है-"सिपाही का आदर्श यह है कि वह स्वयं किसी को मारने नहीं जाता, किन्तु देश की रक्षा के लिए जब वह खड़ा होता है तब उससे किसी का कत्ल हो जाता है और कभी खुद भी कत्ल हो जाता है।"
अभिप्राय यह है कि कत्ल करना उसकी मुख्य दृष्टि नहीं है, बल्कि उसका प्रधान लक्ष्य तो रक्षा करना है और रक्षा करते-करते सम्भव है, वह दूसरे को मार दे या खुद भी मर जाए।
कुछ लोग कहते हैं कि जैन-धर्म की अहिंसा पंगु है, उसने देश को गुलाम बनाया है और देश को बिगाड़ दिया है । इस प्रकार सारी बुराइयों का उत्तरदायित्व जैन-धर्म पर डाला जाता है। परन्तु जैन-धर्म में प्रतिपादित 'अहिंसा' के वर्गीकरण का तथा उसकी विभिन्न श्रेणियों और भूमिकाओं का यदि गहराई के साथ अध्ययन किया जाए तो उन्हें ऐसा कहने का मौका नहीं मिलेगा । दुर्भाग्य से दूसरों ने तो क्या, स्वयं जैनों ने भी जैन-धर्म की अहिंसा को समझने में भयंकर भूल की है और उसे समझने का पूरी तरह प्रयत्न नहीं किया है। चूंकि उन्होंने जैन-धर्म को समझा नहीं है, तभी तो यह सब गड़बड़ हुई है और नित्य प्रति हो रही है। रावण के अत्याचार के खिलाफ राम का युद्ध जायज था या नहीं ?
मर्यादा-पुरुषोत्तम रामचन्द्रजी की पत्नी सीता को रावण चुरा ले गया । रावण उस पर अत्याचार करना चाहता था, उसके सतीत्व को भंग करने के लिए प्रस्तुत हो रहा था। तब राम ने लंका पर आक्रमण करने के लिए सेना तैयार की । भारतीय रणनीति के अनुसार युद्ध आरम्भ करने से पहले अंगद आदि के द्वारा समझौते का सन्देश भी भेजा । रावण समझौता करने को बिल्कुल तैयार नहीं हुआ। सीता को लौटाना उसने कथमपि स्वीकार नहीं किया । ऐसी परिस्थिति में राम जैन-धर्म से पूछे कि-'मैं क्या करूँ ? एक तरफ सीता की रक्षा का प्रश्न है ! अत्याचारी के आक्रमण पर प्रत्याक्रमण का प्रश्न है ! अन्याय, अत्याचार और बलात्कार के प्रतीकार का प्रश्न है ! और दूसरी तरफ युद्ध का प्रश्न है !!' यह तो स्पष्ट ही है कि युद्ध तो युद्ध ही है
और जब युद्ध होगा तो हजारों माताएं पुत्रहीना हो जाएंगी, हजारों पत्नियाँ अपने पति गंवा बैठेगी, और हजारों पुत्र पिताओं से हाथ धो बैठेगे । हजारों घरों के दीपक बुझ जाएंगे, देश के कोने-कोने में हाहाकार मच जाएगा। इस प्रकार कुछ के लिए तो सारी जिन्दगी के लिए रोना शुरू हो जाएगा । ऐसी स्थिति में राम को क्या करना चाहिए?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org