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________________ सांस्कृतिक क्षेत्र में अहिंसा की दृष्टि विषय- तृष्णा का भी होना चाहिए। नसबंदी मात्र प्रजनन अवयव की ही नहीं, प्रत्युत मन की तृष्णाओं की मी होनी चाहिए। इसके लिए जनता में नैतिक आदर्शों की भावना को जगाने की अनिवार्य अपेक्षा है । ब्रह्मचर्य का पालन, ब्रह्मचर्य की दृष्टि से ही नहीं, अपितु अहिंसा की दृष्टि से भी परमावश्यक है - यह आदर्श जनसामान्य के सामने आना चाहिए । किन्तु आदर्श के अहं में यथार्थ को भी नहीं भुलाया जा सकता । मस्तक आकाश में ऊँचा उठा रहे, कोई आपत्ति नहीं; किन्तु पैरों के नीचे की धरती भी तो देखनी ही चाहिए कि वह कितनी ठोस है ? कितना भार सहन कर सकती है ? आदर्श के साथ यथार्थ को और यथार्थ के साथ आदर्श को मिलाते रहना चाहिए । इस प्रकार अहिंसा के सम्यक् एवं समुचित विकास की दृष्टि से परिवार नियोजन को अनुपयुक्त नहीं कहा जा सकता। इसलिए कि यह जन-जीवन की पीड़ा, क्षोभ, अशांति, विक्षिप्तता, दरिद्रता एवं अशिक्षा को कम करने में किसी न किसी रूप में सहायक होता है । हाँ, हमें परिवार नियोजन के साथ ही नैतिक आदर्श की भावना भी समानरूप से जागृत करनी चाहिए, ताकि उसके खतरे कम हो सकें, और हमारा राष्ट्र अपने जीवनपथ को सरलता के साथ मंजिल का रूप दे सके । आज मानव के लिए यह एक सर्वथा अपरिहार्य एवं अनिवार्य बात हो गई है कि वह मानसिक संकीर्णता की काल कोठरी से निकल कर चिन्तन के उन्मुक्त एवं विस्तीर्ण धरातल पर खड़ा हो, तथा, युगबोध एवं युग की मांग पर पूरी सहानुभूति एवं सहृदयता से विचार करे। जीवन की इस विस्तीर्ण भावभूमि पर पहुँचने पर यह अपने आप प्रत्यक्ष हो जाएगा कि वर्तमान परिस्थिति में परिवार नियोजन मूलतः अहिंसा का ही एक आवश्यक पहलू है । Jain Education International For Private & Personal Use Only ३७३ www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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