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________________ ३७२ अहिंसा-दर्शन में आता है कि कृत्रिम साधनों के प्रयोग के बिना भी सैकड़ों-हजारों कुमारिकाएँ एवं विधवाएं गर्भपात एवं भ्र णहत्याएँ करती हैं। ऐसा क्यों है ? यह अनियंत्रित एवं उद्दाम विषय-भोग की आकांक्षाओं का दुष्परिणाम नहीं तो और क्या है ? रही बात नैतिक आदर्श की, तो जिसके मूल में किसी प्रकार का भय या आतंक हो, वह और कुछ भले ही हो, नैतिक आदर्श कदापि नहीं हो सकता । और, फिर यह भय भी तो एक-तरफा ही है । महिलावर्ग कृत्रिम उपकरणों के अभाव में भले ही कुछ नियंत्रित रह ले, किन्तु पुरुषवर्ग तो इस नियंत्रण से मुक्त ही रहता है। प्रकृति ने उस पर ऐसी कोई स्थिति नियत नहीं की है, जो किसी शारीरिक परिवर्तन के भय से नियन्त्रण में रह सके । फिर, एक विशेष प्रकार के कृत्रिम साधनों से ही मनुष्य क्यों डरता है ? जीवन के पद-पद पर तो यह देखा जाता है कि मनुष्य आए दिन कृत्रिम साधनों का प्रचुर रूप में उपयोग कर अपना जीवन-पथ तय कर रहा है । उनसे यदि जीवन की स्वाभाविकता पवित्रता एवं नैतिकता नष्ट नहीं होती, तो इससे ही नष्ट हो जाएगी, ऐसी निश्चयात्मक आशंका क्यों है ? साधन का जब तक साधन के रूप में ही उपयोग होता है, तब तक तो कोई खास बुराई नहीं है, उस उपयोग की 'अति' ही बुराई है । अत: 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' की बातें ध्यान में रखनी चाहिए । अधिक-संतान जीवन के लिए घातक परिवार नियोजन के प्रश्न को एक और दृष्टि से भी सोचा जाना चाहिए कि अधिक संतान न केवल सामाजिक जीवन की अशांति का कारण है, बल्कि मातृजीवन के लिए भी घातक है। मातृजीवन की दुर्बलता, क्षीणता एवं अनेकानेक बीमारियों का कारण अधिक संतान का होना है। अधिक संतति के कारण माताएँ जल्दी ही कालकवलित हो जाती हैं। इस दृष्टि से परिवार-नियोजन के कार्यक्रम पर यदि विचार किया जाए, तो इसमें अहिंसा के साथ विरोध कहाँ है ? अपितु यह कार्यक्रम तो मातृजाति को पीड़ाओं से मुक्त करने की दिशा में अहिंसा के पक्ष में ही आता है । आगम-साहित्य की 'बहुपुत्तिया' का उदाहरण हमारे समक्ष है। अधिक संतान के कारण वह बेचारी किस दयनीय स्थिति को प्राप्त हो गई थी ! उसका कितना बुरा हाल हुआ था ! क्या यह हिंसा प्रतिकार के योग्य नहीं है ? परिवार नियोजन का सहज एवं अनुकरणीय मार्ग जैसा कि मैं पहले स्पष्ट कर चुका हूँ, जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि का समाधान करने की दिशा में परिवार नियोजन का कार्यक्रम एक व्यावहारिक कार्यक्रम है। और वह राष्ट्रहित की दृष्टि से आवश्यक भी है। किन्तु यहाँ एक बात और भी विचारणीय है, वह यह कि जीवन को शमन एवं दमन के इन कृत्रिम कार्यक्रमों पर ही आधारित न रह कर मन में कीटदंश के समान विषवमन करने वाली विषयभोग की लिप्साओं की कुछ मानसिक चिकित्सा भी होनी चाहिए। स्वस्थ चिन्तन के द्वारा कामवृत्ति का शमन अपेक्षित है। निरोध गर्भ का ही नहीं, प्रत्युत मन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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