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रोजी, रोटी और अहिंसा
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इसीलिए उन्होंने गृहस्थ का मार्ग सिखा दिया। बात तो ठीक ही है, सभी विचारक कृषि को गृहस्थ का मार्ग या संसार का मार्ग कहते हैं। कौन कहता है कि वह मोक्ष का मार्ग है ? परन्तु प्रश्न तो नीति और अनीति का है। गृहस्थ की आजीविका दोनों तरह से चलती है। कोई गृहस्थ न्याय-नीति से अपना जीवननिर्वाह करता है, और कोई अनीति से-जुआ खेल कर, कसाई खाना खोल कर, शिकार करके, चोरी करके, या ऐसा ही कोई दूसरा अनैतिक धन्धा करके निर्वाह करता है। आप इनमें से किसे अपेक्षाकृत अच्छा समझते हैं ?
जहाँ न्याय और नीति है, वहाँ पुण्य है। भगवान् ने तो संसार को नीति ही सिखाई, अनीति नहीं । यदि शिकार खेलना सिखा देते तो वह भी एक आजीविका का मार्ग था, परन्तु वह अनीति का मार्ग है। अतएव भगवान् ने जनता को अन्याय का मार्ग जान-बूझ कर नहीं सिखाया ।
जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति-सूत्र में, जहाँ युगलियों की जीवन-लीला का वर्णन है, और उसी में यह उल्लेख भी है कि-भगवान् ने उन्हें तीन कर्म सिखलाए; साथ ही यह भी कहा है कि ये सभी प्रजा के हित के लिए, उनके कल्याण के लिए ये सब कलाएँ सिखलाई हैं।८
भगवान् के द्वारा उन कलाओं का सिखाया जाना 'रपट पड़े की हरगङ्गा' नहीं था। एक बूढ़ा, सर्दी के मौसम में गंगा के किनारे-किनारे जा रहा था। उसका पैर फिसल गया और वह गंगा में गिर पड़ा। जब गिर पड़ा तो कहने लगा-'हरहर गंगा, हरहर गंगा।' इसी को 'रपट पड़े की हर गंगा' कहते हैं। सर्दी के कारण गंगा-स्नान करने की इच्छा नहीं थी, किन्तु जब गंगा में गिर ही पड़े तो गंगा-स्नान का नाटक खेलने लगे।
भगवान् के द्वारा इस तरह बिना समझे-मुझे कलाएं नहीं सिखाई गईं। उन्होंने विवेक को साथ में ले कर और विचार के मापक से नीति को सही दृष्टिकोण से नापकर प्रजा के कल्याण की कल्पना की थी। लोगों को नरक के द्वार पर पहुँचाने के लिए नहीं, वरन् कल्याण के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए; मानव को दानव बनाने के लिए नहीं, वरन् इंसान की इंसानियत को कायम रखने के लिए, कृषि आदि आदर्श कलाओं का सशिक्षण दिया था । रोजी-रोटी में अहिंसा की कसौटी
उसी रोटी और रोजी में आनन्द आता है, जो चुनौतियों से भरी हो, जिसमें मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं के लिए स्वयं मेहनत करनी पड़े । जहाँ दूसरों का शोषण करके या दूसरों पर अन्याय, अत्याचार करके, धोखेबाजी से रोटी और रोजी
८ “पयाहियाए उवदिसइ ।”
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